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    मिड-डे मील का कागजी मेन्यू… सवा पांच रूपए में कैसे खिलाया जाए हलवा-पूरी

  • December 06, 2022

    भोपाल। स्कूली बच्चों की सेहत का ध्यान रखते हुए सरकार ने स्कूलों में मिड-डे-मील की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत सोमवार से शनिवार तक पौष्टिक आहार का मैन्यू बनाया गया है। सोमवार को रोटी के साथ तुअर की दाल, चने व टमाटर की सब्जी, मंगलवार को पूरी के साथ हलवा, मूंगबड़ी, आलू टमाटर की सब्जी, बुधवार को रोटी के साथ चने की दाल एवं मिक्स सब्जी, गुरुवार को सब्जी वाला पुलाव और पकौड़े वाली कढ़ी, शुक्रवार को रोटी के साथ दाल और चने/ मटर की सब्जी और शनिवार को पराठे के साथ मिक्स दाल और हरी सब्जी मेन्यू में शामिल किया गया। विडंबना यह है कि इसके लिए सरकार ने प्रतिदिन और प्रति छात्र के हिसाब से मात्र 5.14 रूपए का बजट रखा है। स्व सहायता समिति को इतने रुपए में खाना बनाकर बच्चों को मैन्यू के अनुसार देना होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। समिति उपलब्धता के अनुसार बच्चों को खाना बनाकर देती है। अभी हालही में राजधानी से करीब 50 किलोमीटर दूर सरकारी स्कूल में मिड-डे मील का खाना खाने के बाद 17 बच्चे बीमार पड़ गए। उन्हें बदबू वाला खाना दिया गया था। इसके बाद जांच और खाने वाली समिति को ब्लैकलिस्ट करने से लेकर शाला प्रभारी को सस्पेंड तक कर दिया गया। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।



    बजट बढऩे का आदेश नहीं आया
    बैरसिया के मिड डे मील प्रभारी योगेश सक्सेना ने बताया कि पहली से पचवीं क्लास तक के बच्चों को स्व सहायता समूह द्वारा खाना दिया जाता है। इसके लिए समूह को प्रति व्यक्ति 5.14 रुपए दिए जाते हैं। इसके साथ 100-100 चावल और गेहूं दिया जाता है। 6वीं से 8वीं क्लास के बच्चों के लिए 7.14 रुपए प्रति बच्चे दिया जाता है। इसमें चावल और गेहूं प्रति छात्र 150-150 ग्राम दिया जाता है। समिति को स्कूल परिसार में ही खाना बनाना होता है। अभी शायद बजट बढ़ा दिया गया है, लेकिन आदेश नहीं आए हैं।

    किचन शेड पर 2 लाख तक खर्च किए
    स्कूल शिक्षा विभाग ने मिड-डे मील का खाना बनाने के लिए स्कूल परिसर में ही किचन शेड बनवाए हैं। इसके लिए हर शेड पर विभाग ने 2 लाख रुपए खर्च किए। यह वर्ष 2018-19 में बनाए गए, लेकिन हकीकत यह है कि शेड में खाना बनाया ही नहीं गया। बैरसिया की ग्रांड रिपोर्ट के दौरान यह सामने आया था कि किचिन शेड घटिया होने के बाद वह कभी खुले ही नहीं। ऐसे में पुराने और गंदे जगह पर खाना बनाया जा रहा है।

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