देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून यहां एक फौजी का परिवार ट्रांसफर होकर आया था. परिवार में पति-पत्नी और तीन बच्चे थे. पिता अमरपाल सिंह भारतीय सेना में फौजी थे. वो एक शाम 8 साल के बेटे गौरव को साथ लेकर बाजार आए. यहां भीड़ में गौरव का हाथ उनसे छूट गया और नन्हा बालक अपने पिता से कहीं जुदा हो गया. 16 साल तक अमरपाल ने 50 से अधिक शहरों के मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद और पुलिस स्टेशन से लेकर अस्पताल और पोस्टमॉर्टम हाउस कहां नहीं खोजा, लेकिन बच्चा नहीं मिला.
अमरपाल और उनकी बीवी ने उम्मीद भी छोड़ दी कि अब उनका बेटा उन्हें कभी मिल भी पाएगा. लेकिन 16 साल बाद अचानक से अमरपाल का फोन बजा. फोन एक अंजान नंबर से आया था. अमरपाल ने फोन उठाते ही कहा- Hello. सामने से जवाब आया- पापा मैं गौरव. यह सुनते ही अमरपाल मानो सन्न रह गए. इससे पहले कि वो कुछ और कह पाते सामने से आवाज आई- पापा मैं जिंदा हूं, मुझे आपके पास वापस आना है.
बस फिर क्या था. अमरपाल बेटे की आवाज सुनते ही खुशी से झूम उठे. दोनों ने मिलने की जगह और समय तय किया. फिर 16 साल बाद जब अमरपाल अपने बेटे गौरव से मिले तो उनकी आंखों से आंसू छलक आए. उन्होंने देखते ही बेटे को सीने से लगा लिया. मां भी अपने बेटे को देख खुशी से झूम उठी. छोटा भाई सौरभ और बहन अंजलि भी दौड़ते हुए आए और भाई के सीने से लग गए. परिवार का यह मिलन दिल को छू लेने वाले दृश्य सा था.
गौरव ने बताया कि वह दिल्ली में दुकान चला रहा है. उसे दिल्ली के ही एक परिवार ने अपना लिया था. नम आंखों से अमरपाल ने कहा- फौज में रहते हुए 16 वर्ष पहले उनकी पोस्टिंग देहरादून में थी. परिवार में दो बेटे गौरव, सौरभ व बेटी अंजलि हैं. गौरव सबसे बड़ा है. देहरादून के एक मार्केट से गौरव उनके बीच से बिछड़ गया. उसे उत्तराखंड, यूपी, बिहार के 50 से अधिक शहरों में तलाशा पर कुछ पता नहीं चला. बस भगवान से बच्चे को वापस पाने की कामना करते रहे. अपने बेटे को पाने के लिए उसकी मां प्रत्येक सोमवार व्रत रखती थी और हर रोज भगवान से बेटे के लिए प्रार्थना करती थी.
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