इंदौर। लगातार टलते आ रहे और कोर्ट-कचहरी का भी शिकार बने पंचायतों (Panchayats) के साथ नगरीय निकायों (urban bodies election) के चुनाव भी अब मई-जून में ही हो सकेंगे, क्योंकि राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण का जो नया कार्यक्रम घोषित किया है जिसमें परिसीमन के आधार पर मतदाता सूची बनाने को कहा है। पिछले दिनों पंचायत चुनाव ऐन वक्त पर सारी तैयारियों के बाद निरस्त करना पड़े, तो नगर निगम के चुनाव तो बीते दो सालों से ही टलते आ रहे हैं और पार्षदों-महापौर की बजाय प्रशासन द्वारा निगम चलाया जा रहा है।
23 हजार से अधिक पंचायतों और 457 नगरीय निकायों के चुनाव लम्बित पड़े हैं, जिसमें 16 नगर निगम भी शामिल है। इंदौर नगर निगम भी इनमें से एक है, जहां पर दो सालों से प्रशासक राज ही चल रहा है। हालांकि इससे नेतागिरी और दखल भी कम है। नतीजतन निर्णय भी फटाफट हो रहे हैं और स्वच्छता सहित कई मामलों में नगर निगम ने अपनी एक अलग साख बनाते हुए कई उपलब्धियां भी हासिल कर ली है। दूसरी तरफ राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव बीएस जामोद ने कल पंचायतों के आगामी निर्वाचन के संबंध में मतदाता सूची के वार्षिक पुनरीक्षण का कार्यक्रम घोषित किया, जिसमें 1 जनवरी 2022 की स्थिति के आधार पर फोटोयुक्त मतदाता सूची बनाई जाएगी और नवीन परिसीमन के आधार पर क्षेत्र विभाजन का चिन्हांकन करते हुए पंचायतवार वार्ड विभाजन के आधार पर पत्रक तैयार करने की समय सीमा आज 16 मार्च रखी गई, तो मतदान केन्द्रों के चिन्हांकन और युक्तियुक्तकरण के लिए 23 मार्च तथा 1 अप्रैल तक सूची को तैयार करने और डुप्लीकेट सूची प्रदाय करने तथा 4 अप्रैल को ग्राम पंचायत व अन्य निर्धारित स्थानों पर प्रारुप मतदाता सूची के सार्वजनिक प्रकाशन और फिर 11 अप्रैल तक दावे-आपत्तियों को प्राप्त करने और 16 अप्रैल तक उनके निराकरण के पश्चात 21 अप्रैल तक अंतिम मतदाता सूची को वेबसाइट पर अपलोड करना होगा और 25 अप्रैल तक मतदाता सूची सभी रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों को उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उसका सार्वजनिक प्रकाशन और विक्रय के लिए भी उसे उपलब्ध करवाना होगा। यानी इसके पश्चात ही चुनाव हो सकेंगे।
सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी की भी आखिरकार हो गई नियुक्ति
लम्बे समय से खाली पड़े मध्यप्रदेश राज्य सहकारी प्राधिकरण के चेयरमैन के पद पर आखिरकार सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एमबी ओझा की नियुक्ति कर दी गई है, जो कि मुख्यमंत्री के विश्वसनीय अधिकारियों में गिने जाते हैं। दरअसल पिछले दिनों सेवानिवृत्त हुए सहकारिता आयुक्त नरेश पाल और पूर्व आयुक्त आबकारी रजनीश श्रीवास्तव भी इस दौड़ में शामिल थे। मगर सहकारिता विभाग में रहते हुए दागी गृह निर्माण संस्थाओं पर प्रभावी कार्रवाई ना करने और कई भूमाफियाओं को बचाने के आरोप भी पूर्व सहकारिता आयुक्त श्री पाल पर लगे, जिसके चलते उनका नाम चेयरमैन की दौड़ से कट गया। अब तीन हजार सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।
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