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    पंचायत चुनाव में लेटलतीफी

  • December 07, 2020

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों का कार्यकाल इसी माह 25 तारीख तक खत्म हो जाएगा लेकिन चुनाव फरवरी-मार्च से पहले होने के आसार नहीं हैं। अभीतक यह भी तय नहीं है कि ग्राम प्रधानों का कार्यकाल बढ़ाया जाएगा या सचिव और एडीओ पंचायत को प्रशासक बनाया जाएगा। प्रशासन स्तर पर इसपर निर्णय नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश में 58758 ग्राम पंचायतें, 12 हजार न्याय पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें और 75 जिला पंचायतें हैं। पंचायत चुनाव को लेकर जिस गंभीरता का परिचय दिया जाना चाहिए था, वैसा फिलहाल दिख नहीं रहा है। प्यास लगने पर कुआं खोदने की प्रवृत्ति पंचायतों के विकास पर भारी पड़ सकती है।

    हालांकि स्नातक और शिक्षक कोटे के एमएलसी चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने संकेत दिया है कि सरकार और संगठन की सक्रियता इसबार पंचायत चुनावों में भी दिखेगी। जाहिर है कि अन्य दल भी पंचायत चुनाव में उसी तरह की दिलचस्पी लेंगे। ऐसे में इसबार ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायतों के चुनाव में राजनीतिक सरगर्मी भी उच्च स्तर की रहेगी। उत्तर प्रदेश के 49 जिलों में 01 दिसंबर से आंशिक परिसीमन हो रहा है। ये वे जिले हैं जहां नगर पंचायत, पालिका परिषद या नगर निगम का विस्तार हुआ है। एक जनवरी 2016 के बाद से इन जिलों के नगरीय निकायों में अनेक गांव समाहित हो चुके हैं, इसलिए भी ऐसा करना जरूरी है।

    प्रदेश भर के गांवों में अभीतक मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम पूरा नहीं हो सका है।आरक्षण सूची भी तय नहीं है, इसलिए पंचायत चुनाव लड़ने की चाहत रखने वालों की नजर उस सूची पर भी है। हर कोई यह जानने को बेताब है कि आखिर उनके गांव में आरक्षण की स्थिति क्या होगी? राजस्व ग्रामों की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की स्थिति तय होनी है। इतना तो तय है कि गांवों में आरक्षण की जो मौजूदा स्थिति है, उसमें बदलाव लगभग तय है।

    अनुसूचित जाति की कुल आरक्षित 21 प्रतिशत सीटों में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित होंगी। जबकि शेष सीटों पर महिला या पुरुष दोनों चुनाव लड़ सकेंगे। पिछड़े वर्ग की 27 फीसदी सीटों में एक तिहाई सीटें इस वर्ग की महिला के लिए आरक्षित की जाएंगी। बाकी इस वर्ग की महिला या पुरुष दोनों के लिए अनारक्षित रहेंगी। महिलाओं के लिए सीटें अलग होंगी सो अलग।

    अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज की मानें तो दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक जिलों में ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायत के निर्वाचन क्षेत्रों (वार्डों) में आंशिक परिवर्तन पूरा हाे जाएगा। ग्राम पंचायतों का आंशिक परिसीमन का पूरा कर लिया है। अब अगले चरण में वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 2015 के शासनादेश के अनुसार अक्षरश: त्रिस्तरीय वार्डों का पुनर्गठन होना है। 2015 के पंचायत चुनाव में गोंडा, संभल, मुरादाबाद व गौतमबुद्धनगर में परिसीमन नहीं हुआ था। इन चारों जिलों में 9 नवंबर से परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। इन चारों जिलों में 7 से 13 दिसंबर के बीच ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन कर निदेशालय स्तर से अधिसूचना जारी होनी है। ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायत के निर्वाचन क्षेत्रों की अंतिम सूची का प्रकाशन 29 दिसंबर से 2 जनवरी 2021 के बीच होना है। इससे पहले 1 से 7 दिसंबर तक ग्राम पंचायतवार जनसंख्या की अवधारणा सुनिश्चित होनी है और 8 से 17 दिसंबर तक त्रिस्तरीय पंचायतों के निर्वाचन क्षेत्रों की प्रस्तावित सूची तैयार की जानी है। 18 से 22 दिसंबर तक इनपर आपत्ति लेने और 23 से 28 दिसंबर तक इनका निस्तारण करने की प्रशासनिक तैयारी है।

    जाहिर है कि इन स्थितियों में 25 दिसंबर तक चुनाव तो होने से रहे। फरवरी या मार्च में यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटर की परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में इस अवधि में पंचायत चुनाव होना संभव नहीं लगता। जाहिर-सी बात है कि अगर ग्राम प्रधानों का कार्यकाल नहीं बढ़ता है तो इतने समय तक पंचायती सरकार रामभरोसे ही रहेगी।

    सरकार को भी पता है कि ग्राम पंचायतों के प्रधानों का कार्यकाल कबतक है, इसके बाद भी लेटलतीफी समझ से परे है। 25 दिसम्बर के बाद ग्रामप्रधानों के पास भुगतान आदि का अधिकार नहीं रह जाएगा। ऐसे में ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी व एडीओ पंचायत के पास ही बजट खर्च करने की जिम्मेदारी आ जाएगी। अगर ऐसा होता है तो बजट के दुरुपयोग की आशंकाओं को भी नकारा नहीं जा सकता। हालांकि ग्राम प्रधानों के संगठन ने सरकार से ग्राम प्रधानों का कार्यकाल बढ़ाए जाने की मांग की है। सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है, यह देखने वाली बात होगी।

    अब भी कई ग्राम पंचायतें ऐसी हैं, जहां लाखों रुपए के बिल का भुगतान होना है। प्रधानों का कार्यकाल खत्म होने के बाद भुगतान की दिक्कत हो जाएगी। उनको तरह-तरह की कमियां बताकर परेशान किया जाएगा। ऐसी स्थिति में अभी से ही लोग दौड़भाग करने लगे हैं। दूसरी ओर अनेक ग्राम पंचायतों में बहुत बजट है, जिसे जल्द से जल्द खर्च करने को लेकर प्रधान जुट गए हैं। इस आपाधापी में पैसा खर्च होने पर अनियमितताएं भी होंगी, सरकार को इन स्थितियों पर भी विचार करना होगा।

    उत्तर प्रदेश में भले अभी पंचायत चुनाव की तारीख घोषित नहीं हुई है लेकिन इसकी तैयारियां तेज हो गई हैं। जिला प्रशासन और चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार दोनों तैयारियों में जुट गए हैं। सोनभद्र जिले में प्रशासन ने अबतक 54 लाख से ज्यादा के मतपत्र भी छपवा लिए हैं। मतपत्रों के स्वरूप आदि में अगर प्रशासन ने जरा भी बदलाव किया तो इस पूरे छपाई व्यय पर पानी फिरा ही समझा जाना चाहिए।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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