काबुल. पाकिस्तान सरकार लगातार तालिबान (Taliban) के साथ संबंधों से इनकार कर रही है, लेकिन इसी बीच पाक की ISI के प्रमुख फैज हामीद के काबुल दौरे ने चर्चाएं बढ़ा दी हैं. कहा जा रहा है कि हामीद के साथ पाकिस्तान के कई सैन्य अधिकारी भी मौजूद हैं.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब नहीं है जब खुफिया एजेंसी के प्रमुख और तालिबान नेतृत्व के बीच मुलाकात की खबरें आई हैं. कुछ ही समय पहले अफगानिस्तान में नए शासन के मुखिया माने जा रहे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Mullah Abdul Ghani Baradar) के साथ उनकी तस्वीर सामने आई थी.
राजदूत से मिलने की बात
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार का अभी औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है. ऐसे में काबुल में ISI की मौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पाकिस्तानी अधिकारियों के दल ने दावा किया है कि वे काबुल राजदूत से मुलाकात करने पहुंचे हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी इशारों-इशारों में तालिबान के बढ़ते प्रभाव का समर्थन कर चुके हैं. 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तान के पीएम खान ने कहा था कि समूह ‘गुलामी की बेड़ियों को तोड़ रहा है.’
छिपी नहीं है संबंधों की बात!
आंतरिक मंत्री शेख राशीद ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि पाकिस्तान तालिबान का ‘संरक्षक’ रहा है. हम न्यूज कार्यक्रम के ‘ब्रेकिंग पॉइंट विद मलिक’ में पहुंचे राशीद ने कहा, ‘हम तालिबान के नेताओं के संरक्षक हैं. हमने लंबे समय तक उनका ख्याल रखा है. पाकिस्तान में उन्हें आश्रय, शिक्षा और घर मिला. हमने उनके लिए सबकुछ किया है.’ दो दशकों के बाद तालिबान के सत्ता हासिल करने के बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि अफगानिस्तान की इस नई सरकार में पाकिस्तान भी बड़ी भूमिका निभा सकता है.
अमेरिका और भारत की है पाकिस्तान की हरकतों पर नजर
भारत की तरफ से तालिबान को लेकर शुक्रवार को प्रतिक्रिया आई थी. विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला ने कहा था कि भारत और तालिबान के बीच संपर्क फिलहाल ‘सीमित’ है. साथ ही उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान में हो रहे बदलावों के बीच अमेरिका भी पाकिस्तान की गतिविधियों पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. इस दौरान उन्होंने ताजा घटनाक्रमों पर भारत को भी सतर्क रहने की बात कही थी.
पाकिस्तान का तालिबान को समर्थन
कई जानकारों ने कहा है कि पाकिस्तान की ISI अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन कर रही है. 1980 में सोवियत के खिलाफ मुजाहिद्दीन की शुरुआत से ही पाकिस्तान अफगान मुजाहिद्दीन के समर्थन में अमेरिका के साथ खड़ा रहा. सोवियत बलों के खिलाफ हुई जीत के बाद तालिबान अफगानिस्तान में सबसे ताकत सैन्य समूह के रूप में उभरा और थोड़े समय के लिए मुल्क पर शासन भी किया. 9/11 हमले के बाद जब अमेरिका ने तालिबान को निशाना बनया, तो पाकिस्तान ही विद्रोही समूह के लड़ाकों के लिए पनाहगाह बना था. पुरानी अफगान सरकार ने आरोप लगाया है कि तालिबान को पाकिस्तान से आर्थिक और सैन्य मदद मिलती थी.
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