इस्लामाबाद। पाकिस्तान के साथ सदाबहार दोस्ती के बल पर अफगानिस्तान में बड़े मंसूबे पाल रहे तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान को तालिबान ने बड़ा झटका दिया है। तालिबान ने सोमवार को तुर्की से कहा कि वह नाटो सदस्य देश होने के नाते अफगानिस्तान को छोड़ दे। तालिबान के इस आदेश के बाद अब तुर्की की सेना और तालिबान के बीच जंग का खतरा मंडराने लगा है। यही नहीं एर्दोगान का अफगानिस्तान में ‘खलीफा’ बनने का सपना भी टूट सकता है।
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि तुर्की को अमेरिका के साथ 29 फरवरी, 2020 को हुए समझौते के तहत निश्चित रूप से अपनी सेना को वापस बुलाना होगा। शाहीन ने बीबीसी से कहा, ‘सभी विदेशी सेनाओं, ठेकेदारों, सलाहकारों और प्रशिक्षकों को अफगानिस्तान से वापस लौट जाना चाहिए।’ शाहीन का इशारा सितंबर की डेडलाइन की ओर था। तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि तुर्की एक बड़ा मुस्लिम देश है और अफगानिस्तान का तुर्की के साथ ऐतिहासिक संबंध है।
एर्दोगान अफगानिस्तान में देख रहे थे सपना
शाहीन ने कहा कि हमें आशा है कि भविष्य में अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद तुर्की के साथ रिश्ता और ज्यादा मजबूत हो जाएगा। दरअसल, तुर्की ने खुद से ही अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के इंटरनैशनल एयरपोर्ट की सुरक्षा संभालने का जिम्मा लिया हुआ है। इसके पीछे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान की एक महत्वाकांक्षा छिपी हुई है। दरअसल, तुर्की आर्थिक मोर्चे पर बदहाली झेल रहा है। यही नहीं कानून व्यवस्था की स्थिति भी बहुत खराब है।
ऐसे में एर्दोगान तुर्की की जनता को एक सफलता की कहानी पेश करना चाह रहे हैं। इसी वजह से एर्दोगान अफगानिस्तान में टिकना चाह रहे हैं। अपने इस मिशन के लिए एर्दोगान ने दोस्त पाकिस्तान से मदद भी मांगी थी। तुर्की की सेना के प्रमुख पिछले दिनों पाकिस्तान भी आए थे। उन्होंने अफगानिस्तान में पाक की मदद मांगी थी लेकिन अब सुहैल शाहीन के बयान से तुर्की को बड़ा झटका लगा है।
तालिबान का पाकिस्तान को करारा जवाब
इस बीच अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने के बाद तालिबान के साथ मिलकर अपनी मनमानी करने का ख्वाब देख रहे पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। तहरीक-ए-तालिबान अफगानिस्तान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने दो टूक कहा है कि पाकिस्तान संगठन पर तानाशाही नहीं चला सकता और न ही अपने विचार थोप सकता है। वहीं, शाहीन ने भारत से इस मामले में निष्पक्ष रहने की अपेक्षा जताई है और अफगानिस्तान के लोगों का साथ देने की अपील की है, न कि ‘किसी थोपी हुई सरकार का।’
पाकिस्तान के जियोन्यूज को दिए इंटरव्यू के दौरान शाहीन से उन रिपोर्ट्स के बारे में पूछा गया था जिनके मुताबिक तालिबान पाकिस्तान की नहीं सुनना चाहता। इस पर शाहीन ने कहा, ‘हम भाईचारे का रिश्ता चाहते हैं। वे शांति प्रक्रिया में हमारी मदद कर सकते हैं लेकिन हम पर तानाशाही नहीं चला सकते और न विचार थोप सकते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के खिलाफ है।’
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