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    वोट बैंक की खातिर आतंकी संगठनों का सहारा ले रहे पाकिस्‍तानी प्रधानमंत्री, जानें टीएलपी से बैन हटाने के पीछे का खेल

  • November 15, 2021

    इस्लामाबाद। पाकिस्तानी सरकार (Pakistani government) और चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक-पाकिस्तान Tehreek-e-Labbaik-Pakistan (TLP) के बीच हाल ही में हुआ समझौता पर्यवेक्षकों की नजर में देश में आतंकवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद का ही हिस्सा है। पाकिस्तान(Pakistan) में अक्सर मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां आतंकी समूहों से गठबंधन कर लेती हैं और अपने राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, ये गठबंध लंबे समय में नुकसान का कारण बनते हैं।
    पाकिस्तान(Pakistan) के डॉन न्यूज में छपे लेख के मुताबिक, अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक पॉल सैंटिलन (American political scientist Paul Santillon) ने जर्नल ऑफ कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन(Journal of Conflict Resolution) के 2015 के अंक में लिखा है, इन अदूरदर्शी रणनीतियों ने हमेशा लंबे समय तक नुकसान पहुंचाया है। पाकिस्तान के लिए यह पहली बार नहीं जब मौजूदा सरकार और टीएलपी के बीच गठबंधन हुआ हो। टीएलपी का गठन साल 2015 में हुआ था। यह चरमपंथी संगठन खुद को ईशनिंदा कानून का सबसे बड़ा रखवाला बताता है। कई मौकों पर इस संगठन ने सड़कों पर अपनी ताकत दिखाई है और यह भी साबित करने की कोशिश की है कि वह बड़ी राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है।



    इसके अलावा अखबार ने लिखा है कि मुख्यधारा में शामिल करने के इस प्रोजेक्ट से कुछ आतंकी और इस्लामी संगठनों को चुनाव में शामिल करने में सफलता जरूर मिली है लेकिन इस प्रोजेक्ट के समर्थक से ज्यादा आलोचक हैं।
    सैंटीलन ने इस बात पर जोर दिया है कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां तब ही आतंकी संगठनों से पूरी तरह रिश्ता तोड़ सकती है, जब संसद में उनके पास पूर्ण बहुमत हो, क्योंकि तब पार्टी आतंकी संगठनों के साथ अपने गठबंधन को जारी रखने के लिए तैयारी नहीं होगी, बल्कि इसकी बजाय वह इन्हें एक खतरे के रूप में देखना शुरू कर देगी।
    पाकिस्तानी अखबार के मुताबिक, यही कारण है कि मौजूदा पीटीआई यानी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार ने इस साल की शुरुआत में टीएलपी को प्रतिबंधित किया। साल 2018 के चुनाव से पहले टीएलपी को पीएमएल-एन के वोटों को हड़पने वाले के रूप में पीटीआई ने ही बढ़ावा दिया था। टीएलपी ने पीटीआई के लिए वह काम किया भी और पार्टी चुनाव में जीती। लेकिन 2020 आते-आते, टीएलपी ने पीटीआई के वोटों में भी सेंध लगानी शुरू कर दी, जो उपचुनावों में देखने को मिला।

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