– आर.के. सिन्हा
अब यह तय हो चुका है कि उस इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटने को कोई रोक नहीं सकता, जिसकी ननिहाल भारत के जालंधर शहर में थी। उनकी मां शौकत खानम जालंधर की लड़की थीं। क्रिकेटर से सियासत में आए और फिर सेना के कंधे पर चढ़कर प्रधानमंत्री बन गए इमरान खान अपने ही जाल में फंस गए हैं। उन्होंने अपने मुल्क की जनता को तमाम सपने दिखाए थे। पाकिस्तान को जन्नत बनाने का वादा किया था। जनता के सामने जन्नत की हकीकत कुछ और ही सामने आई। वे महंगाई पर काबू पाने में पूरी तरह नाकामयाब रहे। उनकी एक दंभी और घमंडी इंसान की छवि बनी रही। वे अपने सियासी प्रतिद्वंद्वियों जैसे नवाज शरीफ, उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और उनके पुत्र बिलाल भुट्टो के ऊपर लगातार घटिया और छिछोरे वार करते रहे। इमरान खान को इन नेताओं को चोर से लेकर डाकू बताने में कोई लज्जा नहीं आई। हालांकि, वे यह नहीं बता पाते कि अगर ये सब इतने खराब थे तो उन्होंने इनके खिलाफ पिछले साढ़े तीन साल के दौरान क्या एक्शन लिया? उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा? ये ही सवाल पाकिस्तानी जनता उनसे पूछ रही है कि वे दावा करते थे कि वे करप्ट नेताओं को जेल भेजेंगे। पर वे क्यों यह सब नहीं कर पाए। बेशक, बिलाल को छोड़कर ये सब नेता पाक साफ तो नहीं हैं।
कहते हैं कि इंसान की पहचान इस बात से होती है कि उसके मित्र किस तरह के हैं या वह किनके साथ रहता है। इमरान खान के दो सबसे करीबी साथी हैं गृहमंत्री शेख राशिद और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी । कश्मीरी मूल के शेख राशिद रावलपिंडी के उसी गॉर्डन कॉलेज में पढ़े हैं जिसमें सशक्त अभिनेता बलराज साहनी और उनके अनुज तथा महान कथाकार भीष्म साहनी पढ़ते थे। शेख राशिद वैसे बेहद हल्के इंसान हैं। उनकी किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखकर उनके स्तर का अंदाजा लग जाता है। उनके तीन ही काम हैं। वे या तो शरीफ बंधुओं को कोस रहे होते हैं या वे जरदारी और उनके पुत्र बिलाल भुट्टो को पाकिस्तान के ताजा खराब हालातों के लिए दोष दे रहे होते हैं या फिर वे इसके अलावा भारत को परमाणु युद्ध की धमकी देते रहते हैं। फवाद चौधरी भी शेख राशिद वाला ही काम करते हैं। अब आप सोचिए कि क्या इमरान खान इस तरह के लुंज-पुंज लोगों के साथ मिलकर देश की किस्मत बदलेंगे? असंभव। ये दोनों मसखरे नुमा नेता ही इमरान खान के हक में आजकल मीडिया से लेकर सियासी तकरीरों में माहौल बनाते घूम रहे हैं। फवाद चौधरी तो यह भी कह रहे हैं इमरान खान तो फकीर आदमी है, आज नहीं तो कल चला जाएगा। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इमरान खान अपना पांच सालों का कार्यकाल पूरा करने में सफल होंगे या नहीं । इसपर लोगों को भरोसा नहीं दिखता।
हां, इमरान खान की ईमानदारी पर कोई शक नहीं कर सकता। इस मोर्चे पर उनका अभी तक का जीवन बेदाग सा ही रहा है। इसके साथ ही उन्होंने क्रिकेट की दुनिया में भी कई अहम उदाहरण पेश किए। एक दौर था जब पाकिस्तान में विदेशी टीमें खेलने से पहले दस बार सोचा करती थीं। क्योंकि, सबको पाकिस्तान के अम्पायरों की हकीकत पता थी। वे अपनी टीम के खिलाड़ियों को आउट देने से कतराते थे। तब इमरान खान ने पहल की कि उनके मुल्क में जो टीम खेलेगी उसे एक विदेशी अंपायर भी मिलेगा।
बहरहाल, माना जा रहा है कि इमरान खान के पास अब सदन में बहुमत तो नहीं रहा है। बहुमत के लिए 172 का आंकड़ा होना जरूरी है। पाकिस्तानी मीडिया में यह कहा जा रहा है कि 39 सांसदों ने इमरान खान का साथ छोड़ दिया है। उनकी दिक्कतें इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि पाकिस्तान की सेना ने भी उनसे किनारा कर लिया है। हालात यह बन गए हैं कि पाकिस्तान में कोई सरकार सेना के आशीर्वाद के बगैर नहीं चल सकती। इन हालातों में माना जा सकता है कि अब इमरान खान की प्रधानमंत्री दफ्तर से छुट्टी होना तय है। उसे कोई रोक नहीं सकता। पर इमरान खान बार-बार यह कह रहे हैं कि वे 5 साल तक सरकार चलाते ही रहेंगे। कभी भी वे इस्तीफा नहीं देंगे। समझ नहीं आ रहा है कि वे यह दावा किस आधार पर कर रहे हैं।
ताजा सूरत-ए- हाल तो उन्हें आने वाले कुछ दिनों के भीतर ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री बनाने जा रहा है। हां, ये सच है कि उनकी रैलियों में खूब भीड़ जुट रही है। पाकिस्तान की जनता उनका पक्ष भी सुन रही है। इन रैलियों में वे विपक्षी नेताओं पर जोरदार हमले बोल रहे हैं। लेकिन, अब फैसला जनता नहीं, चुने हुए सांसद ही करने वाले हैं। अब एक सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि इमरान खान के बाद कौन? मतलब पाकिस्तान में इमरान खान के बाद कौन प्रधानमंत्री बन सकता है। नवाज शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ के नाम पर विपक्ष में आम सहमति हो सकती है। उन्हें आसिफ अली जरदारी और बिलावल भुट्टो भी समर्थन दे सकते हैं। शाहबाज शरीफ पाकिस्तान के सबसे अहम पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। पर उन पर भी करप्शन के अनेक आरोप हैं। वे हजारों करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्ति के मालिक भी हैं।
देखा जाए तो उनमें और उनके बड़े भाई नवाज शरीफ में कोई बहुत फर्क तो नहीं है। नवाज शरीफ सन् 2013 में पाकिस्तान के वजीरे आजम की कुर्सी पर फिर से बैठे थे। यह तब हुआ था जब नवाज शरीफ और शाहबाज शरीफ पर करप्शन के अनेकों केस थे। शरीफ परिवार के लिए कहा जाता है कि इनके लिए पाकिस्तान ही इनका खानदान है। इनका बड़ा औद्योगिक समूह भी है। ये जनता को झूठे सब्जबाग दिखा कर ही अबतक चुनाव जीतते रहे हैं। ये घनघोर रूप से पतित इंसान हैं। नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कभी भी कोई सघन प्रयास नहीं किए। इनके समय में भी पाकिस्तान में मुद्रास्फीति से अवाम का बुरा हाल था और देश में विदेशी निवेश नहीं आ रहा था। अब उन्हीं शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा हो रही है। यह वास्तव में पाकिस्तान की जनता के साथ तो अन्याय ही हो रहा है। शाहबाज शरीफ की इमेज मुहाजिर विरोधी भी रही है। उन्होंने एक बार मुहाजिरों पर एक सभा में तंज करते हुए कहा था कि वे (जो उत्तर प्रदेश-बिहार से 1947 में पाकिस्तान शिफ्ट हुए थे) पान खाने वाले कराची की तरह लाहौर को भी खूबसूरत बना देंगे। जाहिर है, पान खाने वालों से उनका इशारा मुहाजिरों से था। अब जरा सोचिए कि किस खराब स्थिति में पाकिस्तान पहुंच चुका है।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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