डेस्क: पाकिस्तान के दोस्त तुर्की ने भी अब शहबाज का साथ छोड़ दिया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है. बैठक के दौरान एर्दोगन ने गाजा युद्ध को लेकर इजरायल के खिलाफ जमकर हमला बोला, लेकिन कश्मीर का नाम तक नहीं लिया. साल 2019 के बाद से यह पहली बार है, जब एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर से किनारा कस लिया. इसके पहले एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र में लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र में तुर्की ने पाकिस्तान को ऐसे समय में धोखा दिया है, जब शहबाज शरीफ महासभा के भीतर कश्मीर का राग अलापने की तैयारी कर रहे हैं. इस भाषण में एर्दोगन ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को हिटलर करार दिया. जानकारों का मानना है कि इस बार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव का मुद्दा उठा सकते हैं. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, शहबाज शरीफ न्यूयॉर्क पहुंच गए हैं और जल्द ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देने वाले हैं. शहबाज शरीफ इस बार इस्लामोफोबिया और फिलिस्तीन का भी मुद्दा उठाएंगे. पिछले साल पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि कश्मीर का मुद्दा भारत-पाकिस्तान में शांति के लिए अहम है.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद पाकिस्तान दुनिया भर के मंचों पर कश्मीर का मुद्दा पूरी ताकत लगाकर उठा रहा है, लेकिन इस समय पाकिस्तान की आवाज कोई सुनने वाला नहीं है. पाकिस्तान को अब उसके दोस्त तुर्की से भी झटका लगा है. इसके पहले तुर्की पाकिस्तान को अधिक तरजीह देते हुए कश्मीर का मुद्दा लगातार उठाता रहा है. साल 2023 के भाषण में तुर्की ने कहा था कि संवाद के माध्यम से कश्मीर का मुद्दा हल किया जा सकता है. जिसके बाद कश्मीर में शांति बहाल होगी और वहां के लोगों में स्थिरता और समृद्धि आएगी.
संयुक्त राष्ट्र के भीतर साल 2020 के भाषण में तुर्की ने कश्मीर के मुद्दे को ज्वलंत मुद्दा कररा दिया था. साथ ही अनुच्छेद 370 को दोबारा से लागू करने की मांग की थी. इस बीच पाकिस्तान और तुर्की के बीच नजदीगी बढ़ती जा रही है. तुर्की भारी मात्रा में पाकिस्तान को सैन्य हथियार और किलर ड्रोन की सप्लाई कर रहा है. जानकारों का कहना है कि तुर्की ब्रिक्स का सद्सय बनना चाहता है और इसके लिए उसे भारत की जरूरत पड़ेगी. यदि भारत ने सहमति नहीं दी तो उसके ब्रिक्स का सदस्य बनने का रास्ता बंद हो जाएगा, जिसकी वजह से भारत के प्रति तुर्की नरम रवैया अपना रहा है.
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