नई दिल्ली । पाकिस्तान (Pakistan) के सिंध प्रांत (Sindh Province) में एक नहर (Canal) को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। आलम यह है कि देश के दक्षिण में पड़ने वाले इस प्रांत में लोगों ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Prime Minister Shehbaz Sharif) के शासन वाले गठबंधन को धमकाना तक शुरू कर दिया है। यहां रहने वालों को डर है कि पाकिस्तान सरकार के नए प्रोजेक्ट की वजह से देश के दक्षिणी हिस्से में पानी की जबरदस्त समस्या खड़ी हो सकती है।
दरअसल, पाकिस्तान ने कुछ समय पहले ही देशभर में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए छह नहरों के निर्माण प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी। हालांकि, अब इन्हीं में से एक नहर उसके गले की फांस बन गई है। यह नहर कहां है? लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? पाकिस्तान ने आखिर रेगिस्तान में नहर बनाने की योजना क्यों रखी है? आइये जानते हैं इन सब सवालों के जवाब…
क्या है पाकिस्तान की कृषि परियोजना?
बता दें कि मौजूदा समय में पाकिस्तान में कृषि क्षेत्र जीडीपी में 25 फीसदी का योगदान देता है। इतना ही नहीं यह क्षेत्र देश में 37 फीसदी रोजगार के लिए भी जिम्मेदार है। इन्हीं आंकड़ों के मद्देनजर पाकिस्तान सरकार ने इसी साल फरवरी में हरित पाकिस्तान पहल (ग्रीन पाकिस्तान इनीशिएटिव) लॉन्च किया।
इस इनीशिएटिव के तहत 3.3 अरब डॉलर की एक परियोजना लॉन्च की गई। पाकिस्तान सरकार ने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की मौजूदगी में इस परियोजना की शुरुआत की थी। तब मुनीर ने पंजाब को पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र का पावरहाउस बताया था और कहा था कि सेना देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना जारी रखेगी।
इस हरित पाकिस्तान पहल के तहत पड़ोसी मुल्क अपने लोगों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना चाहता है। पाकिस्तान इस परियोजना के तहत आने वाले क्षेत्रों में कॉरपोरेट फार्मिंग शुरू कराना चाहता है। योजना के मुताबिक, पाकिस्तान कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए ड्रोन्स के प्रयोग और उच्च-पैदावार वाले बीजों और फर्टिलाइजर्स के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहा है।
रेगिस्तान में पानी पहुंचाने की योजना का विरोध क्यों?
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने पिछले साल जुलाई में ही इस योजना की मंजूरी दे दी थी। इस चोलिस्तान नहर का नामकरण भी हो चुका है और इसे बनने के बाद महफूज शहीद नहर के नाम से जाना जाएगा। हालांकि, सिंध प्रांत के लोगों ने इसका सख्त विरोध शुरू कर दिया है।
दरअसल, इंडस वॉटर ट्रीटी (हिंद जल समझौता) के तहत भारत उत्तरी नदियों- सतलुज, रावी और ब्यास के पानी को नियंत्रित करता है, जबकि पाकिस्तान का पश्चिमी नदियों- झेलम, चेनाब और इंडस नदी के पानी पर नियंत्रण है।
पाकिस्तान सरकार का दावा है कि चोलिस्तान नहर में पानी पंजाब की नदियों और सतलुज नदी में बाढ़ की वजह से आने वाले अतिरिक्त पानी से भरा जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से कई नदियां दक्षिण क्षेत्र में स्थित सिंध मे पहुंचती हैं। ऐसे में अगर पंजाब की नदियों का पानी चोलिस्तान रेगिस्तान में स्थित नहर को भरने में लगाया जाता है तो इससे सिंध को मिलने वाला पानी कम हो जाएगा और सिंध को पानी की कमी से भी जूझना पड़ सकता है।
वहीं, एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि भारत की सतलुज से आने वाले अतिरिक्त पानी (जो कि बाढ़ के पानी के रूप में या अतिरिक्त वर्षा के बाद आता है) पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। इस्लामाबाद के पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ नासीर मेमन ने एक मीडिया ग्रुप को बताया कि भारत की तरफ से पूर्वी नदियों से आने वाला अतिरिक्त पानी भी अब भारत की तरफ से बनाए जाने वाले बांधों और जलवायु परिवर्तन के चलते आना कम हो चुका है।
उन्होंने डाटा सामने रखते हुए बताया कि अगर 1976 से 1998 के बीच के आंकड़े देखे जाएं तो सामने आता है कि 9.35 मिलियन एकड़-फीट (एमएएफ) पानी भारत की नदियों से आता था। वहीं 1999 से 2022 के बीच यह आंकड़ा घटकर 2.96 एमएएफ रह गया है।
पाकिस्तान में किस हद तक बढ़ चुका है विवाद?
पाकिस्तान में रेगिस्तान में बनने वाली इस नहर को लेकर विवाद इस कदर गहरा चुका है कि राजनीतिक दलों से लेकर लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, स्टूडेंट्स और यहां तक की धार्मिक हस्तियां भी सरकार के इस प्रोजेक्ट के विरोध में उतर आई हैं। इन सभी पक्षों ने नहर की वजह से सिंध प्रांत में पानी की कमी को लेकर चिंता जताई है।
बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेतृत्व वाली सिंध सरकार ने प्रांतीय विधानसभा में इसके खिलाफ एकमत से एक प्रस्ताव पारित किया है। इसमें मांग की गई है कि पंजाब के रेगिस्तान में नहर बनाने का प्रोजेक्ट रोक दिया जाए। इस मामले में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, जो कि खुद सिंध प्रांत से आते हैं और पीपीपी के सह-अध्यक्ष रहे हैं, उनकी जमकर आलोचना हो रही है।
बीते हफ्ते पीपीपी ने सिंध के सभी बड़े शहरों और कस्बों में प्रदर्शन शुरू कर दिए। इसके अलावा पाकिस्तान की एक और पार्टी जाय सिंध महाज (जेएसएम), जो कि एक अहम राष्ट्रवादी दल है, ने भी सिंधु नदी के किनारे पर बसे कोटरी में प्रदर्शन किए। जेएसएम के नेता रियाज चांदियो ने कहा कि उन्हें (शहबाज सरकार) को इस फैसले को पलट देना चाहिए, क्योंकि सिंध के लोग पहले ही कई क्षेत्रों में पानी की कमी से जूझ रहे हैं और अगर नई नहरें बनती हैं तो सिंध को सूखे से गुजरना पड़ सकता है।
दूसरी तरफ निक्केई एशिया से बातचीत में कराची के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता शहाब उस्तो ने कहा कि पंजाब में नहर बनाने से आने वाले वर्षों में सिंध में 30 से 40 फीसदी पानी की कमी देखने को मिल सकती है। उन्होंने कहा, “सिंध में मौजूदा समय में 70 फीसदी अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। नया नहर प्रोजेक्ट रहन-सहन को खतरे में डाल सकता है, जिससे लोगों के भड़कने की भी आशंका है।”
पाकिस्तान में पानी के बंटवारे को देखने वाली सिंध की नियामक संस्था- इंडर रिवर सिस्टम अथॉरिटी (आईआरएसए) के प्रतिनिधि एहसान लेघारी ने भी चोलिस्तान में बन रही नहर का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इससे सिंधु नदी के पानी को पंजाब की नहर की तरफ मोड़ना होगा, जो कि सिंध के लोगों के साथ पक्षपात होगा। लेघारी ने कहा कि सिंधु नदी बेसिन से प्रांत को मिलने वाले पानी का इस्तेमाल मौजूदगी से ज्यादा हो चुका है। यह पहले ही संकट की स्थिति है। ऐसे में आगे पीने और सिंचाई के लिए पानी न मिलना मुश्किलें पैदा करेगा। हालांकि, इस प्राधिकरण ने पिछले महीने ही एक प्रमाणपत्र जारी कर चोलिस्तान नहर के लिए सिंधु में अतिरिक्त पानी होने की बात पर मुहर लगाई थी।
…तो पाकिस्तान पर शासन कर रही शहबाज सरकार खतरे में आ सकती है?
इस बीच पाकिस्तान में इस बात की भी चर्चाएं हैं कि पीपीपी, जो कि फिलहाल शहबाज शरीफ की संघीय सरकार में साझेदार है, वह गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले सकती है। मौजूदा समय में पीएम शहबाज की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) को पीपीपी का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में पीपीपी का गठबंधन से बाहर जाने से शहबाज शरीफ की सरकार गिर सकती है।
पाकिस्तान में 22 सीटें रिजर्व हैं, जबकि एक सीट मौजूदा समय में खाली है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिंध का प्रांत पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का गढ़ है। अगर संघीय सरकार नहरों पर अपना फैसला नहीं पलटती है तो हो सकता है कि पीपीपी गठबंधन तोड़ दे। इससे संघीय सरकार के गिरने की संभावना बढ़ जाएगी। दरअसल, पाकिस्तान की 336 सासंदों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत का आंकड़ा 169 है। इस वक्त पीएमएल-एन के पास 111 सीटें हैं, जबकि पीपीपी 69 सीटों के साथ उसकी सबसे बड़ी साझेदार है। इसके अलावा इस गठबंधन के पास छोटे-मोटे राजनीतिक दलों को मिलाकर 36 सीटें और हैं। यानी अगर पीपीपी ने संघीय सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो पाकिस्तान में सरकार गिरने की संभावना बढ़ जाएगी।
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