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    गलत नीतियों से पाकिस्तान तबाही के कगार पर

    January 14, 2023

    – डॉ. अनिल कुमार निगम

    शासकों की गलत नीतियों के चलते आज पाकिस्तान तबाही के मुहाने पर खड़ा है। महंगाई आसमान छू रही है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। वह विदेशी कर्ज तले दबा हुआ है। जनता रोजी और रोटी के लिए न केवल तरस रही है बल्कि एक दूसरे की जान लेने पर अमादा है। पड़ोसी देश श्रीलंका की तरह ही पाकिस्तान के कंगाली में डूबने से भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। अगर पाकिस्तान की स्थिति और खराब होती है तो यहां पर चीन सहित अन्य वैश्विक शक्तियों का हस्तक्षेप बढ़ सकता है, और अगर ऐसा होता है तो यह भारत के लिए प्रतिकूल स्थिति होगी। इसलिए भारत को इस स्थिति से कूटनीतिक तरीके से निबटना होगा।


    वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तान के शासकों की नीतियां अपने देश के जन्म के साथ ही विकास की जगह विध्वंसात्मक रही हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान में कभी लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सका और आजादी के बाद आधे से अधिक अवधि के दौरान पाकिस्तान पर सेना का शासन रहा है। गौरतलब है कि अंग्रेजों की चालबाजी एवं कुछ नेताओं के राजनीतिक स्वार्थ के परिणामस्वरूप अन्ततः भारत का विभाजन हुआ। विभाजन के बाद भी दोनों देशों के संबंधों में हमेशा तनाव बना रहा है। इस खटास ने दोनों देशों के बीच ऐसी खाईं पैदा कर दी है, जिसकी भरपाई होना नामुमकिन सा लगता है।

    भारत के प्रति पाकिस्तान का रवैया प्रारंभ से ही कटुतापूर्ण रहा है। स्वतंत्रता वर्ष में ही पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। इसमें उसकी शिकस्त हुई थी। चूंकि स्वतंत्रता के पूर्व ही अंग्रेजी हुकूमत ने यह घोषणा कर दी थी कि भारत की रियासतों को आजादी है कि वह अपने विवेकानुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं अथवा वे खुद को स्वतंत्र रख सकते हैं। इसी का लाभ उठाते हुए कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत का विलय भारत व पाकिस्तान में करने की जगह खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। लेकिन पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए उस पर हमला कर दिया। इस पर महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर का विलय भारत के साथ किया और भारत ने पाकिस्तान सेना को वहां से खदेड़ दिया।

    पाकिस्तान के शासकों और सत्ता में रहे तनाशाहों की विदेश नीति हमेशा भारत विरोध की ही रही है। अप्रैल, 1965 में जब पाकिस्तानी सेना की दो टुकड़ियों ने कच्छ के रन तथा कश्मीर में घुसपैठ प्रारम्भ की, तो दोनों देशों के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के कारण 22 सितम्बर, 1965 को युद्ध विराम हो गया। युद्ध की समाप्ति के बाद सोवियत रूस के प्रयत्नों के फलस्वरूप दोनों देशों के बीच 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौता हुआ। हालांकि इस समझौते के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई, जिसके पीछे राजनीतिक षड्यन्त्र होने की बात भी कही गई।

    पाकिस्तान की गलत नीतियों के चलते ही वर्ष 1971 में भारत-पाक के संबंधों की कटुता में पुनः बढ़ गई। इस वर्ष पूर्वी पाकिस्तान में याहवा खां के अत्याचारों के फलस्वरूप गृह-युद्ध छिड़ गया और लाखों की संख्या में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी लोग अपनी जान बचाने के लिए भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए। भारत में शरणार्थियों की संख्या लगभग 1 करोड़ तक पहुंच गई। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों के साथ मानवीय व्यवहार किया तथा उनके लिए भोजन एवं आश्रय की व्यवस्था की।

    इससे क्षुब्ध होकर 2 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तानी वायुयानों ने भारत के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी शुरू कर दी। विवश होकर भारत को जवाबी हमला करना पड़ा। कई दिनों तक दोनों देशों के बीच भयंकर युद्ध चलता रहा। अन्ततः पाकिस्तान की पराजय हुई एवं भारतीय प्रयासों से पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया। इसके बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से 3 जुलाई, 1972 को शिमला समझौता हुआ।

    शिमला समझौते के बाद 1976 में दोनों देशों के बीच फिर से राजनीतिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध कायम होने शुरू हुए, किन्तु 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत रूस के आक्रमण के बाद स्थिति पहले जैसी हो गई, क्योंकि भारत सोवियत रूस का पक्षधर था एवं पाकिस्तान अफगानिस्तान का। इसके बाद 1985 में दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के कुछ प्रयास हुए, किन्तु सफलता नहीं मिली।

    फरवरी, 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के माध्यम से भारत की ओर से मित्रता की पहल करने की कोशिश की, किन्तु उसी वर्ष अप्रैल में पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ कर अपनी मंशा जता दी। कारगिल में पाकिस्तान को तो उसके आक्रमण का जवाब मिल गया, किन्तु दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए। पाकिस्तान ने एक साजिश के तहत 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद पर आतंकी हमला किया। इस हमले के बाद लंबे समय तक दोनों देशों के बीच सम्बन्ध अत्यन्त तनावपूर्ण रहे।

    यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान कश्मीर सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देता रहा है। वहां जो भी प्रशासक आया, वह पाकिस्तान की जनता का ध्यान विकास से भटकाने के लिए हमेशा भारत से खुद को खतरा बताते हुए सीमा में ही नहीं बल्कि भारत के अंदर आतंकी गतिविधियों को प्रायोजित करता रहा। यही कारण है कि वहां की अर्थव्यवस्था बद से बदतर होती गई और वहां की स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी है। आर्थिक संकट से उबरने के लिए पाकिस्तान ने 30 अरब रुपये का अतिरिक्त कर लगाने का निर्णय किया है। तेल और गैस के भुगतान में चूक से बचने के लिए सरकार 100 अरब रुपये जुटाने का प्रयास कर रही है। इस संबंध में उसने आईएमएफ से एक समझौता कर लिया है। बीते कुछ महीनों में देश के कर्ज में 15 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है।

    कर्ज तले दबा पाकिस्तान अब कर्ज के लिए अपने कुछ इलाकों और कंपनियों को भी दांव पर लगाने की तैयारी में है। पाकिस्तान यूएई का दो अरब डालर का कर्जदार बना हुआ है। पाकिस्तान इसकी अदायगी नहीं कर पाया है। यूएई ने इसकी अदायगी की अवधि को मार्च 2022 में एक साल के लिए बढ़ाकर मार्च 2023 कर दिया है। दूसरी तरफ चीन द्वारा दिए गए कर्ज को पाकिस्तान को 27 जून से 23 जुलाई के बीच अदा करना था। पाकिस्तान को दो अरब डालर के कर्ज का भुगतान चीन को करना है। फिलहाल कुछ समय के लिए चीन ने इसे स्थगित कर दिया है जो पाकिस्तान के लिए राहत की बात है।

    चीन ने इस धनराशि की अदायगी के लिए अतिरिक्त समय दे दिया है। विदेशी मुद्रा भंडार बचाने एवं नकदी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को हाल ही में चीन ने एक बार फिर 2.3 अरब डालर का ऋण मुहैया कराया है। इससे पहले भी चीन ने 4.5 अरब डालर का कर्ज दिया था। पाक की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, आजीविका में सुधार और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन पाकिस्तान का समर्थन करता है। परंतु यह रणनीति दीर्घकाल में अब पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह साबित होती दिख रही है। चूंकि पाकिस्तान भारत का निकटतम पड़ोसी है, लिहाजा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की बदहाली को देखते हुए भारत की चिंता स्वाभाविक है। यहां ध्यातत्व है कि चीन सहित अन्य वैश्विक शक्तियों का हस्तक्षेप भारतीय उप महाद्वीप में बढ़ने से पहले भारत को इस गंभीर समस्या के लिए एक सशक्त कार्य योजना तैयार कर उसे लागू करना होगा ताकि भारत की अस्मिता और संप्रभुता अक्षुण्य बनी रह सके।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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