लंदन । पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमान भेदभाव के शिकार हैं और हर स्तर पर उनका उत्पीड़न हो रहा है। यह बात ब्रिटेन के सर्वदलीय सांसदों के समूह ने अपनी 168 पन्नों की रिपोर्ट में कही है। पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमानों की दशा पर तैयार यह रिपोर्ट उनके जीवन से जुड़े हर पहलू को छूती है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस शांतिप्रिय समुदाय को भारत से बंटवारे के बाद किन मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कानून से अहमदिया विरोधी प्रावधानों को हटाने और समुदाय के लोगों को मतदान का अधिकार अविलंब दिए जाने की मांग की गई है।
उल्लेखनीय है कि अहमदिया मुस्लिमों का पाकिस्तान के गठन में अहम योगदान था। वे सोचते थे कि पाकिस्तान बनने के बाद उन्हें ज्यादा सहूलियतें और मौके मिलेंगे। वह सेकुलर राष्ट्र होगा, जहां हर धर्म को बराबरी का दर्जा हासिल होगा लेकिन यहां अब तक ऐसा नहीं हुआ है । अब पाकिस्तान में सबसे ज्यादा पीडि़त समुदायों में अहमदिया मुस्लिमों का समुदाय है। इन्हें मुसलमान खासतौर पर पंजाबी, मुसलमान ही नहीं मानते और न ही इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देते हैं।
इसके चलते मुस्लिम राष्ट्र में अहमदिया को न तो शिक्षा हासिल हो रही है और न ही सरकारी नौकरी। कारोबार और प्राइवेट नौकरी में भी इनका कम उत्पीड़न नहीं है। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में अहमदिया विरोधी अभियान को तब और मजबूती मिली-जब सरकार ने भी समुदाय के लोगों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार शुरू कर दिया। इसके लिए सरकार ने बाकायदा संविधान में संशोधन तक कर डाला।
सांसदों की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सत्ता और कानून का दुरुपयोग था। इस समय में पाकिस्तान में अहमदिया विरोधी भावना और हिंसा अब तक के सबसे ऊंचे मुकाम पर पहुंच चुकी है। रिपोर्ट में 28 मई, 2010 की घटनाओं का खासतौर पर उल्लेख किया गया है, जब कट्टरपंथियों की भीड़ ने लाहौर में अहमदिया मुसलमानों की दो मस्जिदों पर हमला किया और उनमें भारी तोड़फोड़ की। जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी ।
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