- शहर में पेंटरों पर रोजी-रोटी का संकट
उज्जैन। पेंटिंग को एक कला माना जाता है और बच्चों को भी पेंटिंग सिखाने के प्रति अभिभावक प्रेरित करते हैं लेकिन इस कला को व्यवसाय में बदल पाना मुश्किल है। शहर में जो पेंटिंग करने वाले कलाकार हैं उन्हें अब अपने घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है।
शहर के अधिकांश पेंटर आज भले ही चित्रकारी का धंधा छोड़कर दीवारों पर विज्ञापन लिख रहे हों, किन्तु एक समय था जब उनकी संख्या और महत्ता यहाँ इतनी रही कि उज्जैन की गली-गली में पेंटरों की दुकान हुआ करती थी लेकिन बदलते वक्त ने फ्लेक्स प्रिंटिंग को बढ़ावा दिया है। इसका नतीजा है कि पेंटर या उनकी पेंटिंग कला विलुप्त होती जा रही हैं। कई ने तो पेंटिंग का धंधा बंद करके दूसरे काम काज शुरू कर दिए हैं। बहादुरगंज निवासी पेंटर राजेश सोनी ने अग्रिबाण को बताया कि आधुनिकता के इस दौर में आज पेंटर बिरादरी का कारोबार अपने अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। ऐसे में चित्रकारी करने वाले शहर के तकरीबन 200 पेंटरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। कभी भोजन के लिए वक्त भी नहीं निकाल पा रहे इन पेंटरों की दुकानों में अब इक्का-दुक्का ग्राहक भी नजर नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि फ्लेक्स का चलन बढऩे से हमें काम मिलना बंद हो गया हैं। जिससे पेंटरों की बिरादरी एक तरह से खत्म ही हो रही हैं। एक समय था जब हम 5 हजार रु रोज कमाते थे, अब दिनभर बैठे ठाले गुजरता है। इस पेशे से जुड़े कलाकार अब अन्य कामों के जरिए अपना गुजर बसर कर रहे हैं। श्री सोनी ने बताया कि सरकार और प्रशासन की ओर से अब तक कोई मदद नहीं मिल पाई है जिससे इस कला से जुड़े हुए लोगों को अपने परिवार को पालने की चिंता सताने लगी है।