अहमदाबाद। हादसे (accidents), मौतें (deaths) और फिर दोषियों को ढूंढकर कोर्ट कचहरी (court) का चक्कर। कुछ दिन तक सुर्खियां और इसके बाद अपनों को खोने वालों का जिंदगीभर का दर्द। एक के बाद एक ऐसी घटनाएं सामने आती हैं और फिर हम सबकुछ भूलकर आगे के सफर पर निकल पड़ते हैं। अभी दो दिन पहले की ही तो बात है। साउथ कोरिया (south korea) में हैलोवीन (halloween) के दौरान मची भगदड़ में मारे गए सैकड़ों लोगों के बारे में जानकर हम दुखी थे। वैसी ही घटना हमारे देश में हो गई। जो लोग अपना भविष्य यानी बच्चों को लेकर उस पुल पर व्यस्त जिंदगी के कुछ पल निकालकर खुशियां बांटने पहुंचे थे, कब मातम की वजह बन गए, पता ही नहीं चला।
मोरबी की मच्छु नदी (Morbi’s Machu River) पर लटका पुल, फांसी के फंदे जैसा नजर आ रहा है। कई वीडियो सामने आ रहे हैं जिनको देखकर लगता है कि नदी खौफनाक सन्नाटे की चादर ओढ़कर मौत के तांडव का मातम मना रही है। जो नावें हादसे वाली रात शोर मचाते हुए दौड़ लगा रही थीं और नदी में खोए लोगों के परिजन सांस रोके किनारे पर खड़े थे। आज वहीं नावें ऐसी मंद गति से चल रही थीं, मानो वे भी मासूमों की लाशें देखकर अंदर से टूट गई हों और मजबूरी में अपनी ही परछाई के पीछे भाग रही हों।
हादसे से ठीक पहले का वीडियो देखा। लोग कितने खुश नजर आ रहे थे। सामने ही एक शख्स छोटे बच्चे को गोदी में लेकर खड़ा था। बच्चा इस बात से आश्वस्त रहा होगा कि पापा उसे कुछ नहीं होने देंगे। जो बच्चा घर में लड़खड़ाकर गिरता है तो उसके पिता चींटी मर गई कहकर उसे बहलाने लगते हैं, भला उसे काल के गाल में कैसे जाने देंगे। लेकिन अचानक एक झटका लगा और फिर उनकी पूरी दुनिया ही बदल गई। इस हादसे में 47 बच्चो की मौत गई जिसमें एक दो साल का बच्चा भी शामिल था।
मरने के बाद लोगों को मुआवजा, हादसे का जिम्मेदार कौन, शोकाकुल लोगों को ढांढस बंधाना ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो कि अब चल रही हैं। कुछ दिनों तक चलती रहेंगी। मच्छु नदी का वो पुल अब कभी आबाद नहीं हो सकेगा। शायद देश में ऐसे सभी पुलों से अब डर लगने लगेगा। बच्चों को लेकर झूलेदार पुल पर मनोरंजन करने की हिम्मत नहीं होगी। या फिर सब भूल जाएंगे बीते हुए पल की तरह। मासूमों की मौत की खबरों वाले अखबारों को रद्दीवाले को देकर फिर से इस ‘कचरे’ से छुट्टी पा लेंगे?
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