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    पद्म अवॉर्ड: पंडवानी गायिका आज दो वक्त की रोटी को भी मोहताज तीजन बाई

  • December 17, 2024

    रायपुर। छत्तीसगढ़ की पहचान पंडवानी गायिका तीजन बाई (Pandwani singer Teejan Bai) किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. उन्होंने प्रदेश की लोककला का परचम दुनिया में लहराया है. तीजन बाई को छत्तीसगढ़ के नाम से नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ को तीजन बाई के नाम से जाना जाता है. अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही तीजन बाई ने पंडवानी को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया था. इस महिला दिवस पर तीजन बाई के संघर्ष से भरे जीवन और उनकी उपलब्धियों के बारे में जानते हैं.

    देश में ऐसे बहुत से लोक कलाकार हैं जो असाधारण प्रतिभा से धनी होने और बड़ी सफलताओं को छूने के बाद भी आज दुर्दिन देखने को मजबूर हैं. तीजन बाई इसका जीता जागता उदाहरण हैं.

    78 साल की तीजन बाई ने अपनी कला के लिए तीनों पद्म पुरस्कार हासिल किए लेकिन अब वह अपनी पेंशन के लिए जूझ रही हैं. 2023 में उनके छोटे बेटे के निधन के बाद, पैरालिसिस ने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया, तब से वह बिस्तर पर हैं और अपने बच्चों पर निर्भर हैं.

    पेंशन के लिए दर-दर भटक रहे बेटे
    उनके बच्चे पिछले 8 महीनों से लंबित पेंशन पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. छत्तीसगढ़ में सभी प्रसिद्ध कलाकार राज्य सांस्कृतिक विभाग द्वारा 2000 रुपये की मासिक पेंशन और चिकित्सा व्यय के लिए 25000-50000 रुपये पाने के हकदार हैं.

    झेलनी पड़ी कई परेशानियां
    13 साल की उम्र में पंडवानी को मंच पर प्रस्तुत करने वाली तीजन के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए. उनका जीवन संघर्षों भरा रहा. पारधी जनजाति में जन्म लेने वाली तीजन ने जब पंडवानी गायन में कदम रखा तो उन्हें समाज से निष्कासन भी झेलना पड़ा.



    नाना सिखाते थे पंडवानी गाना
    तीजन के इस हुनर को उनके नाना बृजलाल ने सबसे पहले पहचाना था. वह तीजन को पंडवानी गाना सिखाते थे. बृजलाल छत्तीसगढ़ी लेखक सबल सिंह चौहान की महाभारत की कहानियां तीजन को सुनाते थे, जिसे वह याद करती जातीं थीं. वह अपने जीवन में कभी पढ़ाई-लिखाई भी नहीं कर पाईं. दुर्ग जिले के चंद्रखुरी गांव में तीजन ने पंडवानी को पहली बार मंच पर उतारा था.

    कापालिक शैली में गाने वाली पहली महिला
    तीजन पहली महिला थी, जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी गायन किया. पहले के समय में पंडवानी को महिलाएं सिर्फ बैठकर गा सकती थीं, जिसे वेदमती शैली कहा जाता है. इसके साथ ही पुरुष वर्ग खड़े होकर पंडवानी गायन करते थे, जिसे कापालिक शैली कहा जाता है. तीजन के पंडवानी गायन शैली से देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी प्रभावित हुईं थीं.

    विदेशों में लहराया पंडवानी का परचम
    पंडवानी में दुशासन वध के प्रसंग पर तीजन का पॉवरफुल प्रदर्शन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. वहीं तीजन की लोकप्रियता छत्तीसगढ़ के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी है. 1980 में तीजन बाई ने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मॉरीशस की यात्रा की.

    तीजन को मिले कई पुरस्कार

    1988 में पद्मश्री सम्मान मिला.
    1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार.
    2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गईं.
    2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है.
    2019 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
    2017 में खैरागढ़ संगीत विवि से डी लिट की मानद उपाधि.
    अब तक 4 डी लिट सम्मान मिले.
    जापान में मिला फुकोका पुरस्कार.

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