नई दिल्ली। प्रलय, कयामत, या सामूहिक विनाश- जब एक साथ पूरी की पूरी प्रजाति धरती (Earth) से गायब हो जाती है, इसे समझने की शुरुआत हम पहले विनाश (destruction) से करते हैं. लगभग 443 मिलियन साल पहले पहला प्रलय आया था. इसे एंड-ऑर्डोविसियन (End-Ordovician) कहा गया. इस दौरान धरती पर जितना पानी था, सब बर्फ में बदलने लगा. समुद्र और उससे बाहर ठंड से जीव मरने लगे. इस दौरान लगभग 86 प्रजातियां खत्म हो गईं. जो बाकी रहीं, उन्होंने नए क्लाइमेट के अनुसार खुद को ढाल लिया था. साल 2017 के करंट बायलॉजी जर्नल में इस बारे में विस्तार से बताया गया है.
दूसरी बार प्रलय लगभग 359 से 380 मिलियन साल पहले आई. एकदम पक्का अंदाजा वैज्ञानिकों (scientists) को भी नहीं है. इसे एंड डेवोनियन कहा गया. धरती पर ज्वालामुखियों के अचानक एक्टिव होने से ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगा, और स्पीशीज खत्म होने लगीं. ये इतना भयानक था कि तब मौजूद 75 प्रतिशत से ज्यादा प्रजातियां खत्म हो गईं. इस दौरान कई मछलियां और कोरल खत्म हुए. दिलचस्प ये रहा कि छोटे कद और वजन वाली स्पीशीज जैसे टेट्रापॉड बच गईं. यहीं से एंफिबियन, रेप्टाइल और मैमल (Amphibian, Reptile and Mammal) का बंटवारा शुरू हुआ.
अब बात करते हैं तीसरी प्रलय (third holocaust) की, जिसे एंड पर्मिअन कहते हैं. लगभग 251 मिलियन साल पहले हुए इस सामूहिक विनाश के जिम्मेदार साइबेरिया के ज्वालामुखी (siberia volcano) थे. वे फटने लगे. समुद्र और हवा में जहर और एसिड फैलने लगा. यहां तक कि ओजोन की परत भी फट गई. इससे खतरनाक यूवी किरणें निकलीं. इसी दौरान निकले रेडिएशन से जंगल से जंगल जलकर खत्म हो गए. इस दौर को चारकोल गैप भी कहा जाता है. तब फंगस के अलावा ज्यादातर प्रजातियां खत्म हो गईं.
लगभग 210 मिलियन साल पहले चौथी बार धरती पर तांडव मचा, जिसे एंड ट्रिएसिक दौर कहा गया. इस बार भी ज्वालामुखी फटे, लेकिन साइबेरिया में नहीं, बल्कि धरती की बाकी जगहों पर. इस विनाश में भी तब मौजूद लगभग 80 प्रजातियां खत्म हो गईं. बचे तो डायनासोर और क्रोकोडाइल के पूर्वज, जिन्हें क्रोकोडिलोमार्फ्स नाम दिया गया.
आखिरी और पांचवा सामूहिक विनाश एंड क्रिटेशिअस कहलाया. ये वही समय है, जब डायनासोर धरती से गायब हो गए. लगभग 65.5 मिलियन साल पहले आए इस प्रलय के थ्योरी पर लंबे समय से बहस चल रही है कि आखिर इसकी वजह क्या थी. इस दौरान एक एस्टेरॉयड धरती से टकराया, ये बात सभी मानते हैं, लेकिन क्या उसके टकराने-भर से ऑक्सीजन खत्म हो गई? क्या उसकी वजह से डायनासोर जैसी मजबूत प्रजाति खत्म हो गई?
वजहों पर बहस के बीच ये बात भी सबने मानी कि वातावरण (atmosphere) में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ा और ऑक्सीजन का स्तर एकदम नीचे चला गया. इस दौरान 76 प्रजातियां मर गईं.
अब बारी आती है छठवें विनाश की, जिसकी बात साइंटिस्ट करने लगे हैं. ये कैसे होगा? क्यों और कब होगा? नब्बे की शुरुआत में मशहूर जीवाश्म वैज्ञानिक रिचर्ड लीके ने चेताया था कि इंसान ही छठवें विनाश के जिम्मेदार होंगे. यहां याद दिला दें कि इससे पहले आ चुकी पांचों ही आपदाएं प्राकृतिक थीं. किसी जीव-जंतु की वजह से नहीं. लेकिन इस बार खतरा ज्यादा है क्योंकि इंसानी एक्टिविटी धरती पर ऑक्सीजन कम कर रही है.
इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. दरअसल प्रलय के बिना भी धरती से लगातार कई स्पीशीज खत्म होती रहती हैं. इसे बैकग्राउंड रेट कहते हैं. फॉसिल रिकॉर्ड्स अक्सर ही इस बारे में बात करते हैं. ये तो हुई सामान्य बात, लेकिन इंसानों की वजह से धरती पर स्पीशीज के गायब होने की रफ्तार लगभग 100 गुना तेज हो चुकी है. यानी हमारी वजह से 100 गुनी स्पीड से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है.
प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में वैज्ञानिकों का समूह लगातार इस बारे में स्टडीज दे रहा है. वैसे बता दें कि छठवें सामूहिक विनाश को होलोसीन या एंथ्रोपोसीन एक्सटिंक्शन कहा जा रहा है. डर है कि इसमें बैक्टीरिया, फंगी और पेड़-पौधे ही नहीं, इंसान, रेप्टाइल्स, पंक्षी, मछलियां सब खत्म हो जाएंगी. और इसकी वजह बनेगा क्लाइमेट चेंज.
जिस तेजी से धरती गर्म हो रही है, और महासागरों की बर्फ पिघल रही है, वैज्ञानिक इसकी तुलना ज्वालामुखियों के अचानक फटने से कर रहे हैं. इससे पानी इतना गर्म हो जाएगा कि उसमें ऑक्सीजन का स्तर घटने लगेगा. नतीजा, समुद्री जीव-जंतु मरने लगेंगे. शुरुआत पानी से होगी, फिर इसका असर हवा में पहुंचेगा और धीरे-धीरे बहुत सारी प्रजातियां एक साथ खत्म हो जाएंगी. हम-आपको मिलाकर.
ये दावा हवा-हवाई नहीं, बल्कि बैकग्राउंट रेट के 100 गुना होने से ये शुरू हो चुका. वातावरण में गर्मी और जहरीली हवा की बात हो ही रही है. बढ़ते तापमान से लगातार कई देशों में जंगल आग पकड़ रहे हैं. बीते साल गर्मियों में ठंडे यूरोपियन देश भी गर्मी से त्राहि-त्राहि कर उठे थे. यहां तक कि दफ्तर बंद करने पड़े. मिट्टी उतनी उपजाऊ नहीं रही.
दुनिया के बहुतेरे देश बेमौसम ही कभी तूफान, कभी सूखा तो कभी भूकंप देख रहे हैं. इसपर सबसे खराब बात कि अब भी संभलने की बजाए जंगल काटे जा रहे हैं. यूएन फूड एंड एग्रीक्लचर ऑर्गेनाइजेशन के हिसाब से साल 2015 के बाद से हर साल लगभग 24 मिलियन एकड़ जंगल काटे जा रहे हैं.
अब तक ये पता नहीं लग सका कि अगली प्रलय कब आएगी लेकिन कई वैज्ञानिक अलग-अलग दावे कर रहे हैं. साइंस एडवांसेज में मेसाचुसेट्स प्रौद्योगिक संस्थान के प्लानेटरी साइंसेज विभाग ने अपने शोध के आधार पर कहा कि साल 2100 के करीब ऐसा होगा. साथ में ये भी माना कि जिस हिसाब से धरती गर्म हो रही है, विनाश इसके पहले भी आ सकता है.
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