देशभर में हो रहा है मरीजों का इलाज और प्रदेश शासन का स्वास्थ्य विभाग जबरन की गाइडलाइन थोपने पर तुला
इंदौर। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) मोदी सरकार (Modi government) से बात कर अगर एक लाख इंजेक्शन (Injection) इंदौर को उपलब्ध करवा दें तो 40 से 50 प्रतिशत समस्या अगले 24 से 48 घंटों में हल हो सकती है। इंजेक्शनों की सहज उपलब्धता से जहां ऑक्सीजन (Oxygen) की खपत में कमी आएगी, वहीं बेड की चल रही मारामारी से भी निजात मिल सकती है। अभी अधिकांश मरीजों को ऑक्सीजन-बेड की ही जरूरत पड़ रही है, क्योंकि संक्रमण तेजी से फैल रहा है, जिसकी तुरंत रोकथाम के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection) ही कारगर साबित हुए हैं। इंदौर में भी हजारों मरीजों की जान इससे बची है और देशभर में लाखों मरीजों को ये इंजेक्शन (Injection) लगाए जा चुके हैं। इसके बावजूद मप्र शासन का स्वास्थ्य विभाग सप्लाय की कमी के चलते गाइड लाइन थोप रहा है।
दुनियाभर में कोरोना मरीजों के लिए अभी कोई मान्य दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं, बल्कि जो मौजूदा एंटीबॉयोटिक, लाइवसेविंग ड्रग्स, एंटीवायरल और निमोनिया से लेकर अन्य बीमारियों में काम आने वाली दवाइयों से ही कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है और जान भी बच रही है। यही कारण है कि पहले औसत मृत्यु दर डेढ़ से दो फीसदी थी, जो अब एकाएक बढ़ गई। इंदौर में अधिकांश मरीज और उनके परिजन पिछले एक हफ्ते से रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection) के लिए ही मारे-मारे फिर रहे हैं और दूसरी तरफ शासन-प्रशासन बेड-ऑक्सीजन से लेकर अन्य व्यवस्थाओं में जुटा है। मुख्यमंत्री सारे काम छोडक़र सिर्फ इंजेक्शनों की आपूर्ति बहाल करवा देें। इसके लिए सीधे प्रधानमंत्री से बात करना पड़ेगी। यहां तक कि कल रात महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी आज से जो लॉकडाउन की सख्ती लागू की, उसके साथ प्रधानमंत्री से ऑक्सीजन (Oxygen) और इंजेक्शन की ही मांग की है। अभी इंदौर में तेजी से जो मरीज संक्रमित हो रहे हैं और उनके फेफड़ों में 20 से 25 प्रतिशत या उससे अधिक संक्रमण हो रहा है, जिसके चलते उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। अगर शुरुआत में ही इंजेक्शन मिल जाए तो इंफेक्शन बढऩा तो रूकेगा, वहीं 5 से 6 दिन में मरीज स्वस्थ होने लगता है, जिससे लम्बे समय तक अस्पताल में भती होने या ऑक्सीजन (Oxygen) की जरूरत नहीं पड़ती। सरकारी अस्पतालों के साथ बाजार में भी इन इंजेक्शनों की आपूर्ति सामान्य करा दी जाए तो ब्लैक मार्केटिंग तो रूकेगी, वहीं मरीजों के परिजन आसानी से खरीदकर लगवा भी लेंगे। लेकिन शासन का स्वास्थ्य विभाग फिजुल की गाइडलाइन थोप रहा है, जिसमें 40 फीसदी से अधिक संक्रमित और अस्पतालों में भर्ती मरीजों को ही इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी जा रही है। जबकि उसके पहले इंदौर में ही हजारों मरीजों को इंजेक्शन लगाकर डॉक्टरों ने ठीक कर दिया है। यहां तक कि ये इंजेक्शन कोविड डे-केयर सेंटरों और होम आइसोलेशन में भी मरीजों को लगा दिए जाएं तो भी अस्पतालों का लोड कम हो जाएगा।
सरकारी अस्पतालों के लिए आज और मिलेंगे इंजेक्शन
दो दिन पहले शासन ने 25 हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection) सरकारी अस्पतालों के लिए इंदौर भिजवाए थे। मेडिकल कॉलेज को नोडल एजेंसी बनाया गया है, जो इन इंजेक्शनों को इंदौर सहित संभाग और प्रदेश के अस्पतालों को भिजवा रही है। एमजीएम मेडिकल कालेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित के मुताबिक कल 2000 इंजेक्शन आए थे और आज भी कुछ इंजेक्शन प्राप्त होंगे। सभी जिलों को ये इंजेक्शन आबंटित किए जा रहे हैं और इंदौर के सरकारी अस्पतालों को भी दिए गए हैं, जहां भर्ती मरीजों को नि:शुल्क लगाए भी जा रही है। दूसरी तरफ भर्ती मरीजों और उनके परिजनों का कहना है कि आसानी से ये इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो रहे और परिजनों को इधर-उधर से जुगाड़ करना पड़ रही है। बचे हुए इंजेक्शनों को निजी अनुबंधित अस्पतालों को भी दे देना चाहिए, क्योंकि अभी निजी अस्पतालों को भी जरूरत के मुताबिक इनकी सप्लाय नहीं हो रही है।
अस्थायी अस्पतालों का आइडिया भी फिजूल
अभी कई जनप्रतिनिधि स्टेडियम से लेकर अन्य खुले स्थानों पर अस्थायी अस्पताल बनाने का आइडिया भी दे रहे हैं। वहीं राधास्वामी सत्संग हॉल में भी इस तरह के अस्थायी अस्पताल की तैयारी की जा रही है। जबकि यह पूरी कवायद ही फिजुल है, क्योंकि इंदौर में वैसे ही हजारों बेड होटल, मैरिज गार्डन, होस्टल से लेकर अन्य संस्थाओं में उपलब्ध हैं। जरूरत है, ऑक्सीजन (Oxygen), इंजेक्शन (Injection), मेडिकल स्टाफ और उससे जुड़े संसाधनों की, जिसकी पूर्ति शासन करवाए तो उपलब्ध बेडों पर ही बेहतर तरीके से इलाज मरीजों का हो सकता है।
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