इंदौर, निलेश राठौर। कल गणतंत्र दिवस (Republic day) पर शहर की सेंट्रल जेल से रिहा हुए 18 कैदियों में किसी ने क्रोध के वशीभूत होकर अपनों का खून बहाया तो किसी ने बेगुनाह होने पर भी दूसरों के हिस्से की सजा पाई… मगर इन कैदियों में दो ऐसे भी कैदी थे, जिनमें से जेल में रहते हुए एक ने मास्टर डिग्री (master’s degree) हासिल की, वहीं दूसरा ग्रेजुएट (Graduate) हो गया। गणतंत्र दिवस पर रिहा हुए इन कैदियों के चेहरे पर अपनी आजादी की चमक देखते ही बनती थी, क्योंकि इन्होंने बरसों पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए समयरूपी जल से हाथों में लगा लाल रंग (खून) छुड़ाया। अपराध से तौबा करते हुए अब यह सभी जीवन की नई पारी का आगाज करेंगे।
कल का दिन कैदियों के लिए आजादी की वो नई सुबह लेकर लौटा, जिसे पाने के लिए उन्होंने बरसों इंतजार कर जेल की काल कोठरी (Dungeon) में पल-पल गुजरा। गुनाहों की सजा काटने के लिए किसी ने जेल में रहते हुए कंबल बनाए तो किसी ने स्टील फैक्ट्री (steel factory) में बर्तन बनाए, वहीं किसी ने जेल में साफ-सफाई का जिम्मा उठाया तो किसी ने तलाशी गैंग में अपना फर्ज निभाया। जेल में अनुशासन का पाठ पढ़ जेल से रिहा हुए इन कैदियों के लिए जीवन की नई पारी की शुरुआत करना कठिन तो होगा, मगर अगर हम इन्हें समाज की मुख्य धारा (Mainstream) से जोड़ेंगे तो शायद ये सभी फिर कभी अपराध की ओर नहीं देखेंगे, क्योंकि अपराध से घृणा करनी चाहिए, अपराधी से नहीं।
बेगुनाह होते हुए भी हत्या की सजा पाई, 8वीं पास से बना ग्रेजुएट
कहते है कि ग्रहदशा खराब हो तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट (dog bite) लेता है। ऐसा ही कुछ हुआ था 14 साल पहले बाणगंगा थाना क्षेत्र (Banganga Police Station Area) की गंगाबाग कालोनी में रहने वाले रामलाल मालवीय के साथ। गणपति विर्सजन (ganpati immersion) के दौरान दोस्तों के बीच हुए विवाद में क्षेत्र में हत्या हो गई थी। उस हत्या में दोस्तों के साथ उसका नाम भी कातिलों में दर्ज हो गया। निर्दोष होते हुए हत्या की सजा पाई। सजा के दौरान जेल में रहते हुए 8वीं पास रामलाल ने 10वीं, 12वीं के बाद फाइनल तक पढ़ाई की और स्टील कारखाने में बर्तन बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। अब वह खुद का कारखाना खोलेगा, जिससे उसके परिवार में आर्थिक सम्पन्नता आएगी।
हत्या का दाग जेल में मास्टर डिग्री से धोया
क्षणिक आवेश हत्या जैसा अपराध दो परिवारों का जीवन खराब कर देता है। कुछ ऐसा ही हुआ खरगोन में रहने वाले मोतीराम यादव के साथ। रास्ते को लेकर हुई कहासुनी में विवाद इतना बढ़ा कि उससे पड़ोसी की हत्या हो गई। हत्या के बाद जेल में मोतीराम ने पढ़ाई कर समाजशा में मास्टर डिग्री हासिल कर अपने कातिल होने के दाग को 15 साल 2 माह रहकर धोया। कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त कर जेल में आत्मनिर्भर बना यादव अब अपराध से तौबा कर धंधा कर अपने परिवार के साथ सुखी जीवन बिताएगा।
आवेश में मामा के लडक़े का हत्यारा बन बैठा
सम्पत्ति को लेकर हुए विवाद ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि उसने आवेश में आकर अपने ही मामा के लडक़े को मौत के घाट उतार दिया। अपने भाई की हत्या का अफसोस उसे जीवनभर रहेगा। जेल में रहते हुए सश्रम मिली सजा (hard-won punishment) के दौरान भुंदरू पिता तेरू ने मशीन चलाई और कपड़े बनाए। अब जेल से रिहा होने पर वह फिर से खेती संभालेगा और अपराध से कोसों दूर रहेगा।
पत्नी की आत्महत्या ने हत्यारा बना दिया
करे कोई और भरे कोई कहावत कल जेल से रिहा हुए रमेश पिता कैलाश (Ramesh father Kailash) और रामसिंह पिता मकतुलसिंह (Ram Singh father Maktul Singh) पर फीट बैठती है, क्योंकि दोनों की पत्नियों ने पारिवारिक विवाद के चलते खुद को आग के हवाले करते हुए जान दे दी थी। निर्दोष होकर हत्या जैसे अपराध की सजा पाई। जेल में रमेश ने सिलाई का काम किया। अब वह जेल से आजाद होकर खुद का धंधा करेगा।
मामूली विवाद में भाभी को मौत के घाट उतारा
विवाद के चलते देवर को भाभी (sister-in-law to brother-in-law) ने अनाप-शनाप कहा तो उसने आवेश में आकर भाभी को मौत के घाट उतार दिया। यह कहानी है रूपसिंह पिता मांगीलाल (Roopsingh father Mangilal) की, जिसने 16 साल पहले मामूली कहासुनी में गाली-गलौज कर रही भाभी को पहले समझाया, मगर नहीं मानी तो उसकी हत्या कर दी। रिहाई के बाद अब वह मेहनत-मजदूरी कर जीवन-यापन करेगा।
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