• img-fluid

    हमारा लोकतंत्र और अपराधी नेता

  • September 12, 2020

    – डॉ. वेदप्रताप वैदिक

    आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे माननीय सांसदों और विधायकों में से 4442 ऐसे हैं, जिनपर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। इनमें पूर्व सांसद और विधायक भी हैं। सांसदों और विधायकों की कुल संख्या देश में 5 हजार भी नहीं है। वर्तमान संसद में 539 सांसद चुनकर आए हैं। उनमें से 233 ने खुद घोषित किया है कि उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं, जिनपर 100 से अधिक मुकदमे चल रहे हैं।

    यदि देश की संसद में लगभग आधे सदस्य ऐसे हैं तो क्या हमारी दूसरी संस्थाओं में भी यही हाल चल सकता है? यदि देश के आधे शिक्षक, आधे अफसर, आधे पुलिसवाले, आधे फौजी जवान और आधे न्यायाधीश हमारे सांसदों- जैसे हों तो बताइए हमारे देश का क्या हाल होगा? संसद और विधानसभाएं तो हमारे लोकतंत्र की श्वासनलिका है। यदि वही रुंधि हुई है तो हम कैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं? हमारा लोकतंत्र अंदर ही अंदर कैसे सड़ता जा रहा है, उसका प्रमाण यह है कि अपराधी नेतागण चुनाव जीतते जाते हैं और निर्दोष उम्मीदवार उनके खिलाफ टिक नहीं पाते हैं। यदि नेताओं को जेल हो जाती है तो छूटने के बाद वे मैदान में आकर दुबारा खम ठोकने लगते हैं। ऐसे नेताओं के खिलाफ अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाकर मांग की है कि जो नेता गंभीर अपराधी सिद्ध हों, उन्हें जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने से क्यों नहीं रोक दिया जाए, जैसा कि सरकारी कर्मचारियों को सदा के लिए नौकरी से निकाल दिया जाता है।

    यह ठीक है कि साम, दाम, दंड, भेद के बिना राजनीति चल ही नहीं सकती। भ्रष्टाचार और राजनीति तो जुड़वां भाई-बहन हैं। लेकिन हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे संगीन अपराधों में लिप्त नेताओं को पार्टियां उम्मीदवार ही क्यों बनाती हैं? इसीलिए कि उनके पास पैसा होता है तथा जात, मजहब और दादागीरी के दम पर चुनाव जीतने की क्षमता होती है। वह जमाना गया, जब गांधी और नेहरू की कांग्रेस में ईमानदार और तपस्वी लोगों को ढूंढ-ढूंढकर उम्मीदवार बनाया जाता था। जनसंघ, सोश्यलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टियां अपने उम्मीदवारों पर गर्व किया करती थीं। अब तो सभी पार्टियों का हाल एक-जैसा हो गया है। इसके लिए इन पार्टियों का दोष तो है ही लेकिन पार्टियों से ज्यादा दोष जनता का है, जो अपराधियों को अपना प्रतिनिधि चुन लेती हैं। यथा प्रजा, तथा राजा। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को इस संबंध में तलब तो किया है। लेकिन यदि वह सख्त कानूनी फैसला दे दे तो भी क्या होगा? यहां तो हाल इतने खस्ता हैं कि मुकदमों के फैसलों में भी तीस-तीस चालीस-चालीस साल लग जाते हैं।

    (लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

    Share:

    उत्तरप्रदेश में 50 साल से ज्यादा की उम्र वाले पुलिसकर्मियों को जबरन करेगी रिटायर

    Sat Sep 12 , 2020
    लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भ्रष्ट पुलिसवालों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की कार्रवाई शुरू की हैं। डीजीपी मुख्यालय ने पुलिस की सभी इकाइयों के प्रमुखों, सभी आईजी रेंज और एडीजी जोन को ऐसे नाकारा पुलिसवालों की सूची भेजने के लिए पत्र लिखा है। पत्र में 31 मार्च 2020 को 50 वर्ष की आयु पूरी […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved