मुंबई। सोशल मीडिया पर फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ से बेहतर ध्यान खींच रही तमिल फिल्म ‘विक्रम’ अपने सितारों कमल हासन, विजय सेतुपति और फहाद फासिल के चलते हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी काफी चर्चा में है। फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और फिल्म ‘मेजर’ के साथ हिंदी में भी रिलीज हो रही इस फिल्म को लेकर मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए कमल हासन ने हिंदी सिनेमा और दक्षिण भारतीय सिनेमा को लेकर चल रहे विवाद पर बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा सिनेमा सफल हो, इसमें सबको खुशी होनी चाहिए। जैसे हमारा राष्ट्रगान एक है। उसके लिए हमारा सम्मान एक जैसा है। वैसे ही हमारा सिनेमा भी एक है। भाषा कोई भी हो। भारतीय सिनेमा की हॉलीवुड फिल्मों के मुकाबले सफलता का जश्न हम सबको मनाना चाहिए।
‘अचानक’ से मिली निर्देशन की प्रेरणा
निर्देशक लोकेश कनगराज की फिल्म ‘विक्रम’ के प्रचार के लिए कमल हासन देश के तूफानी दौरे पर हैं। चेन्नई से दिल्ली होते हुए वह मुंबई पहुंचे। फिल्म का ट्रेलर सोशल मीडिया पर खूब धूम मचा रहा है। यहां मुंबई में उनसे फिल्म ‘रनवे 34’ की रिलीज के समय सुदीप किच्चा और अजय देवगन के ट्वीट्स से शुरू हुए भाषा विवाद पर खूब सवाल हुए। कमल हासन ने इस दौरान खुलासा किया कि साल 1973 में रिलीज हुई गुलजार की फिल्म ‘अचानक’ से वह बहुत ज्यादा प्रेरित हुए थे। और, तब एक बार तो उन्होंने अभिनय छोड़ निर्देशन में ही पूरा ध्यान लगाने का मन बना लिया था।
भारतीय सिनेमा की कामयाबी
हिंदी सिनेमा में अपनी ओरीजनल फिल्मों ‘एक दूजे के लिए’, ‘सदमा’ और ‘गिरफ्तार’ से शोहरत पाने वाले कमल हासन की डब फिल्मों मसलन ‘हिंदुस्तानी’ और ‘चाची 420’ ने भी हिंदी में खूब सफलता पाई। हिंदी सिनेमा से अपने प्रेम को कमल हासन ने ‘मुगल ए आजम’ और ‘शोले’ जैसी फिल्मों से जोड़ा। कमल हासन कहते हैं, ‘लोग कहते हैं कि साउथ की फिल्में सफल हो रही है। लेकिन मुझे लगता है कि ये हॉलीवुड सिनेमा के मुकाबले एक भारतीय फिल्म कामयाब हो रही है। भव्य और विशाल फिल्में कैसे बनती हैं, ये हमने ‘मुगल ए आजम’ और ‘शोले’ जैसी फिल्मों से सीखा। पहले तो हम ऐसी फिल्में बनाने की सोचते भी नहीं थे। हमें लगता था कि हम ऐसी फिल्में कैसे बना सकते हैं!’
हमारा सिनेमा एक है
भाषा विवाद पर कमल हासन ने कहा, ‘सिनेमा की अपनी खुद की भाषा है। हमारा देश विविधताओं का देश है और इसके बावजूद हमारे बीच एक कमाल की एकता है। तमिलनाडु के लोगों को बंगाली नहीं आती, लेकिन वे भी तो राष्ट्रगान गाते हैं और शान से गाते हैं। कुल मिलाकर देखें तो उन्हें बंगाली आती भी बस इतनी है। तो जैसे हमारा राष्ट्रगान एक है। वैसे ही हमारा सिनेमा एक है।’
ऐसा कभी नहीं सोचा था
कमल हासन कहते हैं, ‘हिंदी की तमाम कालजयी फिल्मों के निर्देशकों को तो वह पूजनीय माना करते थे। सपने में भी कभी नहीं आता था कि इन फिल्मों को बनाने वालों से कभी वह मिल भी पाएंगे। ‘शोले’ बनाने वालों के साथ मैंने काम किया (फिल्म ‘सागर’ में कमल हासन ने निर्देशक रमेश सिप्पी के साथ काम किया है)। हमें ये बात समझनी चाहिए और एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। अगर आपको कोई फिल्म अच्छी लगती है तो भाषा पर मत जाइए। उसकी तारीफ कीजिए। सिनेमा की अपनी खुद की भाषा होती है बाकी उसकी कोई भाषा नहीं होती।’
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