छत्रपति संभाजी नगर: रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार (19 अप्रैल) को महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर में एक कार्यक्रम के दौरान मुगल शासकों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि कुछ लोग आज भी औरंगजेब की तारीफ करते हैं, जो समझ से परे है. उन्होंने कहा, ‘अगर पाकिस्तान में बाबर, तैमूर, औरंगजेब, मोहम्मद गौरी और महमूद गजनवी की तारीफ की जाए तो वह समझ आता है क्योंकि उनकी नीति और राजनीति दोनों ही भारत विरोधी थीं.’
रक्षामंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र की यह धरती, वीरता और बलिदान की धरती है. यही वह धरती है, जिसने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान राष्ट्रनायक को जन्म दिया और आज हम जिन महाराणा प्रताप की प्रतिमा के सामने खड़े हैं, वे छत्रपति शिवाजी महाराज के भी प्रेरणास्रोत रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता और संस्कृति पर कोई बुरी नजर से देखता है तो कोई न कोई महापुरुष इस संकट को दूर करने के लिए धरती पर जन्म लेता है. महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जी महाराज और छत्रपति संभाजी जी महाराज जैसे वीरों का पूरा जीवन ही इस बात का प्रमाण है.
राजनाथ सिंह ने कहा, ‘महाराणा प्रताप अपने लिए नहीं लड़े थे. वो चाहते तो अकबर का आधिपत्य स्वीकार कर के सुख चैन से रह सकते थे, लेकिन अधीनता स्वीकार करना उनके खून में ही नहीं था. इसलिए उन्होंने मुगलिया सल्तनत को चुनौती दे डाली. उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ शौर्य और पराक्रम का ही प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि समाज को संगठित करने का भी काम किया.’
रक्षामंत्री ने कहा, ‘हमारे आदर्श इस्लाम और मुसलमान विरोधी बिल्कुल नहीं थे. हकीम खान सूरी हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ और मुगलों के खिलाफ लड़े. छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में भी मुस्लिम समाज के लोग थे.’
रक्षामंत्री ने मुगल शासक औरंगजेब को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि औरंगजेब को महिमामंडित करना गलत है. राजनाथ सिंह ने कहा, ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी किताबों में औरंगजेब को एक कट्टर शासक कहा है. उन्होंने लिखा है कि औरंगजेब ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया. राजपूतों, सिखों, मराठों और राष्ट्रकूटों जैसे समुदायों को दबाने की कोशिश की और कई हिंदू मंदिरों को नष्ट करवाया.’ उन्होंने सवाल उठाया, ‘ऐसा शासक किसी का आदर्श या हीरो कैसे हो सकता है?’
राजनाथ सिंह ने आगे कहा, ‘हम मजहब की राजनीति नहीं करते हैं. हमारे लिए सभी भारतीय समान हैं. यही हमारा संस्कार है. यही हमारा विचार है. यह बात हमने अपने पूर्वजों से सीखी है. हमारे आराध्य छत्रपति शिवाजी महाराज से सीखी है. महाराणा प्रताप से सीखी है.’
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