यहां सबकी जान पर बनी है… और इनको अपने मान की पड़ी है
पूरा शहर मातम में डूबा हुआ है…सैकड़ों मर चुके हैं… हजारों जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं… अस्पताल भरे हुए हैं… कतारें लगी हुई हैं… व्यवस्थाएं छिन्न-भिन्न हैं… अफसर जी-जान से लग रहे हैं… स्वास्थ्य की जिम्मेदारी प्रशासनिक अफसर उठा रहे हैं… कहीं दवा तो कहीं ऑक्सीजन की किल्लतों से कान पके जा रहे हैं… देश के साथ हमारा शहर भी युद्धभू्मि बन चुका है… कोरोना से लड़ाई में बच्चा-बच्चा जी-जान से जुटा है… लोग ऑक्सीजन के सिलेंडर ला रहे हैं… कतारों में खड़े होकर भरवा रहे हैं, जिन्हें दवा की एक गोली का भी ज्ञान नहीं रहा, वो खुद डॉक्टर बनकर अपने परिजनों को बचा रहे हैं… ऑक्सीजन लेबल पर नजरें लगा रहे हैं… हर तरह के नुस्खे आजमा रहे हैं… डॉक्टर भी अपना घर-परिवार भूलकर मरीजों को बचाने और शहर को राहत पहुंचाने की जुगत भिड़ा रहे हैं… शहर को संभालने में गांव की हालत मौत के करीब जा रही है… अफसर वहां दौड़ लगा रहे हैं… कहीं गुर्रा रहे हैं तो कहीं समझा रहे हैं… ऐसे में चंद अधिकारी ऐसे भी हैं, जो अपने अहं की लड़ाई में मरे जा रहे हैं… इस्तीफा थमाकर रुतबा दिखा रहे हैं… फिर मंजूरी के डर से बगावत पर उतरे कलेक्टर को हटाने और हड़ताल कराने की धमकी से बाज नहीं आ रहे हैं… कलेक्टर की डांट से उन्हें लज्जा आ रही है… शब्दों की भाषा उन्हें लजा रही है… अपने रुतबे पर उन्हें लाशों का बोझ नजर नहीं आ रहा है… उन्हें उठती अर्थियों और मौतों की तादादों पर लज्जा नहीं आ रही… उन्हें बिलखती और बिखरती जिंदगियां नहीं लजा रहीं… जहां लोग जान गंवा रहे हैं, वहां वो बड़ी निर्लज्जता से अपने मान के लिए लड़े मरे जा रहे हैं… जिम्मेदारियां उनकी हैं… बोझ प्रशासन उठा रहा है… जो बन सके वो कर गुजरने की जुगत भिड़ा रहा है… अस्थाई अस्पताल खोलकर लोगों को प्राथमिक उपचार से ठीक करने और अस्पतालों का बोझ कम करने के तरीके आजमा रहा है और जिस स्वास्थ्य पदाधिकारी को यह जिम्मेदारी निभाना चाहिए, वो उस राहत पर अंगुली उठा रही है…उस पर होने वाला खर्च बेवजह बता रही है… अपने साथियों को भडक़ाकर उन्हें इस्तीफे के पाप में शामिल कर शहर को मुश्किल में डाल रही है… सरकार को धमका रही है… कलेक्टर को नहीं हटाया तो सबके घर बैठने और बिठाने का रौब दिखा रही है… सरकार को वाकई में इस हौसलाई अधिकारी की मांग मानना चाहिए… कलेक्टर को अवकाश पर भिजवाना चाहिए और इसी स्वास्थ्य पदाधिकारी को कलेक्टर बनाना चाहिए… और फिर यदि हालात बिगड़े, एक भी मौत हो तो उस पर हत्या का मुकदमा चलाना चाहिए… अपने मान-सम्मान की लड़ाई लडऩे वाली अधिकारी से ऐसा शपथ पत्र लेकर उसे जिम्मेदारी थमाना चाहिए… तब जिले के बोझ का भान उसे हो पाएगा… एक कलेक्टर की जिम्मेदारियों का अहसास हो जाएगा… महामारी से जूझते शहर में लोगों की जान बचाना… उनका इलाज करवा पाना… दवाओं से लेकर ऑक्सीजन तक की व्यवस्थाएं सुलभ कराना… अस्पतालों की लूट-खसोट पर लगामा लगाना… मरते हुए लोगों को बचाना जहां एक बड़ी जिम्मेदारी है, वहीं घरों में कैद लोगों को सुविधाएं मुहैया कराना… भीड़ को नियंत्रित कर लोगों तक अनाज, दूध, सब्जी पहुंचाना… कोरोना का कहर कम करने की हर जुगत भिड़ाना… दिन-रात काम की इस वर्जिश में घर-परिवार को भूलकर रातों को जागकर शहर को चैन की नींद दे पाना…पद की इस चुनौती के साथ इंसानियत के फर्ज को निभाना… बहुत कुछ पहली बार हो रहा है…शहर से लेकर प्रशासन और राज्य से लेकर देश तक पहली बार इन स्थितियों से गुजर रहा है…जब व्यवस्थाएं बिखरी पड़ी हैं, एक को संभालो तो दूसरी बिगडऩे पर तुली है… जब अदालतें मुख्यमंत्रियों को फटकार रही हैं… मुख्यमंत्री कलेक्टरों को निशाना बना रहे हैं…कलेक्टर अधिकारियों को जिम्मेदारियों का अहसास करा रहे हैं… तब शहर के स्वास्थ्य की जिम्मेदार अधिकारी काम या इस्तीफे में से किसी एक शर्त पर इस्तीफे को चुनती है और जब इस्तीफा मंजूर होने का डर सताए तो सबके इस्तीफा देने की धमकी देने की जुर्रत करती है तो वह इसी शहर, इस प्रदेश और इस राष्ट्र से गद्दारी की हद से गुजरती है… फैसला सरकार को करना है, बेबस लोगों की जिंदगी की डोर किसके हाथों में रखना है… ऐसी ताकतों से लडऩा है या इनके आगे झुकना है… और फैसला उन स्वास्थ्यकर्मियों को भी करना है कि उन्हें एक नाकारा अधिकारी के अभिमान की लड़ाई का मान रखना है या अपनी मौत से संघर्ष करते लोगों की जिंदगियों के लिए लडऩा है…
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