नई दिल्ली । एनजीटी को गंगा (Ganga to NGT)में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट(Uttarakhand Government Report) के हवाले से बताया गया कि नदी का उद्गम स्थल भी (the origin of the river)जलमल शोधन संयंत्र (sewage treatment plant) से छोड़े जा रहे जल से प्रदूषित (polluted)हो गया है। उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम को लेकर NGT में हो रही सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई। एनजीटी ने पहले राज्य सरकार एवं अन्य से रिपोर्ट मांगी थी। एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने सुनवाई में हस्तक्षेप के लिए याचिका दाखिल करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर संज्ञान लिया।
वकील ने राज्य सरकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री स्थित 10 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता वाले एसटीपी से लिए गए नमूने में सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) 540/100 मिली वाला फिकल कोलीफॉर्म पाया गया था। फिकल कोलीफॉर्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्मजीवों से होने वाले प्रदूषण को बताता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, नदी में स्नान करने के लिए जल में 500/100 मिली से कम एमपीएन होना चाहिए।
एनजीटी की पीठ ने पांच नवंबर को पारित आदेश में कहा है कि वकील का दावा है कि गंगा नदी का उद्गम स्थल भी एसटीपी के जल से प्रदूषित हो गया है। पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल हैं। NGT अब इस मामले पर अगली सुनवाई 13 फरवरी को करेगा। एनजीटी ने कहा कि 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 ही फंग्सनल थे जबकि 48 मानकों का अनुपालन नहीं कर रहे थे।
एनजीटी ने राज्य की रिपोर्ट की तुलना सीपीसीबी की रिपोर्ट से करते हुए कहा कि हमें लगता है कि उत्तराखंड राज्य की रिपोर्ट में किए गए खुलासे संदिग्ध हैं। हम मुख्य सचिव से मामले की उचित जांच करने और मुकम्मल स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने की मांग करते हैं। एनजीटी ने राज्यों में नालों की स्थितियों के बारे में कहा कि 63 नाले सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवेज छोड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि राज्य की अगली रिपोर्ट में उठाए गए कदमों को स्पष्ट करने की जरूरत है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved