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    Assembly Elections: क्या तुरुप का इक्का साबित होगी ‘पुरानी पेंशन’? एमपी की हर सीट पर 25 हजार वोट, समझें…क्या है गणित

  • November 11, 2023

    नई दिल्ली। ओल्ड पेशन स्कीम [Old Pension Scheme] अथवा पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा मध्यप्रदेश [Madhya Pradesh] , छत्तीसगढ़ [Chhattisgarh] और राजस्थान [Rajasthan] विधानसभा चुनाव [assembly elections] में सत्ता के समीकरण पर असर डाल सकता है। यही कारण है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया [India] के ज्यादातर सहयोगी दल पुरानी पेंशन बहाली के साथ खड़े दिखाए दे रहे हैं। हिमाचल प्रदेश [Himachal Pradesh ] और कर्नाटक [Karnataka] विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा अपना असर दिखा चुका है।


    -दिल्ली से संदेश
    पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर दिल्ली में पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर केंद्र और विभिन्न प्रदेशों के कर्मचारी संगठन भी लामबंद हो चुके हैं। रामलीला मैदान में तीन रैलियां आयोजित की गई हैं। चौथी रैली 10 दिसंबर को होगी। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम [National Movement for Old Pension Scheme] के राष्ट्रीय अध्यक्ष दावा करते हैं कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकारी कर्मियों का वोट, सत्ता का समीकरण बिगाडऩे के लिए काफी है। तीनों ही राज्यों में एनएमओपीएस के बैनर तले वोट फॉर ओपीएस कैंपेन और मतदाता जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। अगर, सरकारी कर्मियों और उनके परिवार को मिलाएं तो हर विधानसभा क्षेत्र में 25 हजार वोट टर्निंग प्वाइंट बनने जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में लगभग छह लाख ऐसे कर्मचारी हैं, जो एनपीएस में हैं। अगर रिटायर्ड कर्मियों की बात करें तो उनकी संख्या भी तकरीबन छह लाख है। भले ही रिटायर्ड कर्मी, ओपीएस में हैं, लेकिन वे भी एनपीएस कर्मियों का साथ दे रहे हैं। रेलवे और दूसरे केंद्रीय महकमों के कर्मियों व उनके परिजनों को मिलाकर यह संख्या डेढ़ दो लाख हो जाती है। वोटिंग के दौरान यह संख्या अपना असर दिखाएगी। इसी तरह अगर राजस्थान की बात करें तो यहां पर भी नौ से दस लाख सर्विंग/रिटायर्ड कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य हैं। चुनाव में सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाडऩे के लिए यह संख्या काफी है।

    – ऐसे समझें गणित
    एनएमओपीएस के पदाधिकारी कहते हैं कि अगर किसी गांव में दो टीचर हैं और वे अपना मुद्दा रखने में सक्षम हैं तो पूरा गांव, उनकी मांग यानी ओपीएस पर विचार कर सकता है। राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसी भी विधानसभा क्षेत्र को ले लें, वहां पर कम से कम पांच हजार सरकारी कर्मियों की संख्या है। कुछ रिटायर्ड कर्मी भी हैं। अगर हम केवल सर्विंग कर्मियों की बात करें तो उनके परिवार को मिलाकर वह औसत संख्या 25 हजार हो जाती है। विधानसभा चुनाव, जहां कांटे की टक्कर होती है, वहां पर 500 वोट भी जीत हार तय करने के लिए काफी होते हैं। यहां तो बात 25 हजार वोटों की हो रही है।

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