सियाराम पांडेय ‘शांत’
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें बेहतर काम कर रही हैं। विपक्ष आलोचना करने की बजाय सुझाव दे। केंद्रीय रक्षामंत्री की इस नसीहत का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन उनकी इस नसीहत ने आलोचना और सुझाव के अंतर को सुस्पष्ट करने को भी विवश कर दिया है। सुझाव की जाहिर तौर पर अपनी अलग जगह है लेकिन आलोचना में सुझाव सहज समाहित होता है। सत्तारूढ़ दल जब स्वतः निर्णय लेने लगते हैं और प्रतिपक्ष को लगता है कि उसकी बात, उसके सुझाव या तो सुने नहीं जा रहे या सुनकर भी उसे अनसुना किया जा रहा है, तब वे आरोप और आलोचना को ओर अग्रसर होते हैं।
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों मिलकर लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं। कमजोर विपक्ष हो, मजबूत सरकार हो तो भी और मजबूत विपक्ष हो, कमजोर सरकार हो तो भी लोकतंत्र मजबूत नहीं हो पाता। अगर सरकार हर किसी से सकारात्मक होने की ही अपेक्षा करने लगे और सारे लोग सकारात्मक ही देखने और दिखाने लगें तो यह किसी भी देश के लिए और अधिक त्रासद स्थिति होगी। सरकार अगर सुझावों पर अमल करती तो फिर आलोचना और आरोप की नौबत ही नहीं आती। आंखों पर गुलाबी चश्मा लगा लेना या फिर अपनी सुविधा का संतुलन देखना और बात है लेकिन जब बात जनहित की हो तो समग्रता में देखना ही उचित होता है।
इसमें शक नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना महामारी से निपटने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। लोगों को टीका लगवाने से लेकर ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए वह देश-विदेश से सहयोग प्राप्त कर रही है। यह और बात है कि इस देश के लोगों को अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर का अभाव झेलना पड़ा है। भाजपा के सांसद और विधायक भी अपने परिजनों को बेड नहीं दिला सके। अतिविशिष्ट लोग जब परेशान हुए तो आम जनता को कितनी परेशानी हुई होगी, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। जिस तरह से देश की अदालतों ने केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई है, उसे भी हल्के में नहीं लिया जा सकता।
यह सच है कि सरकार चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर बेहद संजीदगी से काम कर रही है। इस निमित्त उसने सेना को भी लगा दिया है। डीआरडीओ के स्तर पर जगह-जगह हजार बेड के कोविद अस्पताल बनाए जा रहे हैं। हर अस्पताल में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाए जा रहे हैं। देशभर के हज हाउसों को कोविड अस्पतालों में बदलना अच्छी बात है। फौरी तौर पर इससे राहत मिल सकती है, लेकिन हमें विकल्प से अधिक स्थायी विकास को तरजीह देनी चाहिए। हाल के दिनों में जिस कोरोना संक्रमितों की तादाद घटी है, वह अपने आप में सुखद है लेकिन जिस तरह कोरोना की तीसरी लहर की आशंका है। ब्लैक फंगस के खतरे बढ़ रहे हैं, उसमें सरकार को अपने प्रयासों को लेकर आत्ममुग्ध होने की जरूरत नहीं है। इस समय सरकार जो कुछ भी कर रही है, वह प्यास लगने पर कुआं खोदने जैसा है।
विपक्ष अगर यह कह रहा है कि सरकार के तर्कों और दलीलों से लाशों को छिपाया नहीं जा सकता तो उसके निहितार्थ को समझा जाना चाहिए। प्रयास किया जाना चाहिए कि विपक्ष को इस तरह की बात करने का अवसर ही न मिले। विपक्ष न तो सलाहकार है और न ही चारण। उससे ठकुरसुहाती की उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए। गंगा में लाशें चाहे बिहार में मिलें या उत्तर प्रदेश में, यह कहकर जिम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता कि लाशें उनके राज्य की नहीं हैं, दूसरे राज्य से बहकर आई हैं।
विपक्ष को सुझाव देना चाहिए या आलोचना करनी चाहिए, यह बहस और मुबाहिसे का विषय हो सकता है लेकिन जिसका जो दायित्व है, उसे उसी का निर्वाह करना चाहिए। विपक्ष सरकार का प्रशस्तिगान नहीं कर सकता। उसके द्वारा की जाने वाली आलोचना में ही सरकार का व्यापक हित निहित है। अपने देश में निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय वाली परंपरा रही है।आलोचना आत्मावलोकन का अवसर देती है जबकि प्रशंसा में व्यक्ति अक्सर खुद को ठीक से समझ न पाने की भूल कर बैठता है। इसलिए भी सरकार को चाहिए कि वह सुने सबकी, करे अपने मन की।निर्णय तो उसे स्वविवेक के आधार पर ही लेना है। सरकार को दूसरों से सकारात्मक होने की अपेक्षा करने की बजाय खुद सकारात्मक होना है। विपक्ष अगर सुझाव तक ही सिमट जाएगा तो उसका वजूद ही खत्म हो जाएगा। सुझाव देना वैसे भी विपक्ष का काम नहीं है। विरोधी दल तो विरोध ही करता है। विरोध तो विरोध होता है। चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। विपक्ष की भूमिका एक सशक्त आलोचक की होनी चाहिए। विरोध में भी दृष्टिबोध होना चाहिए। सुझाव देना सलाहकार का काम होता है और सरकार के पास सलाह देने वालों की कहीं कोई कमी नहीं। वह निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की भी सेवा लेती है। कौन क्या कह रहा है,यह उतना मायने नहीं रखता जितना यह कि हम क्या कर रहे हैं।
विपक्ष हमेशा गंभीर मुद्दों पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करता रहता है। सरकारें बहुधा ऐसा करती भी हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक के मुद्दों पर कितना अमल हो पाता है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। विपक्ष को विरोध का अवसर चाहिए और सरकार को जनहितकारी योजनाओं को आगे बढ़ने का। उसे आलोचनाओं और सुझावों की अपेक्षा किए बगैर केवल अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी है। अगर सब अपना-अपना काम करने लगें तो आधी समस्या का समाधान तो वैसे ही हो जाए। कोरोना काल में जागरूकता बहुत जरूरी है। इस मोर्चे पर तो काम करना ही है, जनता जनार्दन के हितों का ध्यान रखते हुए चिकित्सा सुविधाओं में इजाफा भी करते जाना है अन्यथा आनेवाला समय हमें माफ नहीं करेगा।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)