काबुल । दुनिया भर में वैसे तो अफीम तस्कर (Poppy smuggler) बहुत कड़ी सजा भुगतते हैं, लेकिन पश्चिमी अफगानिस्तान (Afghanistan) के इलाके को इस अपराध ने विधवाओं के गांव में तब्दील कर दिया है। अदरसकान जिले में स्थित काला-ए-बिवाहा नाम के इस गांव के ज्यादातर पुरुष सीमा पार ईरान में अफीम तस्करी (Opium smuggling in iran) के दौरान मारे जा चुके हैं।जिसके चलते अब यहां हर ओर विधवाएं ही नजर आती हैं। आलम यह है कि कुछ एक घरों में तो बाप बेटा और पोते, तीनों तस्करी में जान गंवा चुके हैं। वहीं पुरूषों के जाने के बाद खुद तस्करी का बीड़ा उठाने वाली कुछ महिलाओं की भी मौत हो गई है।
तस्करी या तालिबान का ही विकल्प
अदरसकान जिले के गवर्नर मोहम्मद अली फकीरयार बताते हैं कि आजीविका चलाने के लिए यहां पुरुषों के पास केवल दो ही विकल्प होते हैं। या तो वह तस्करी शुरू कर दे या फिर तालिबान से जुड़ जाए। सीमा पार एक बार अफीम या हीरोइन पहुंचाकर यह लोग करीब 20 हजार तक कमा लेते हैं। जो इनके लिए बड़ी रकम होती है। लिहाज ज्यादातर पुरुष गिरफ्तारी से लेकर सीमा पर सैनिकों द्वारा मारे जाने तक का जोखिम उठाते हैं।
कभी थी धनवान
गांव की एक विधवा नेक बीवी बताती हैं कि जब मेरे पति जिंदा थे तब तक जीवन अच्छा चल रहा था। तीनों बेटों ने भी अफीम से खूब पैसा कमाया, लेकिन अब वे सब मारे जा चुके हैं। यहां तक कि ईरान ने उनके शव तक नहीं भेजे। वहीं तस्करी में अपने पति को खो चुकी फातिमा कहती हैं कि वह अपने बच्चों को तस्करी में नहीं जाने देंगी, भले ही भूखी मर जाएं।
गांव में पहले 80 विधवाएं रह रही थीं, लेकिन करीब 50 ने कमाई के लिए दूसरी जगहों का रुख कर लिया है। इनमें अधिकांश ऊन के छोटे मोटे व्यापार, रिश्तेदारों या अन्य ममद से गुजारा करती हैं।
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