कम लक्षण वाले मरीज ठीक हो सकते हंै सस्ते इंजेक्शन से… लंबे समयसे हो रहा है उपयोग
इंदौर। ब्लैक फंगस (Black fungus) के इलाज में उपयोग किए जा रहे सस्ते इंजेक्शन कन्वेंशनल एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin-B) को लेकर मरीजों में साइड इफेक्ट आ रहे हैं। इसको लेकर सरकार अब इन इंजेक्शनों को वापस करने पर विचार कर रही है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि एंटीएलर्जिक दवाओं के साथ इस इंजेक्शन का इस्तेमाल ब्लैक फंगस (Black fungus) के कम लक्षण वाले मरीजों के इलाज में किया जा सकता है।
पोस्ट कोविड बीमारी में ब्लैक फंगस (Black fungus) की शिकायतें ज्यादा आ रही हैं और इसको लेकर सरकार ने सरकारी अस्पतालों में विशेष व्यवस्थ की है। पिछले दिनों इंजेक्शन की कमी होने पर सरकार ने हिमाचलप्रदेश की फार्मा कंपनी से एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin-B) की खेप मंगाई, जिसमें से 12 हजार 400 इंजेक्शन इंदौर के शासकीय और निजी अस्पतालों को भी दिए गए हैं, लेकिन तीन दिन बाद ही इसके साइड इफेक्ट सामने आने लगे और लोगों में उल्टी-दस्त के साथ-साथ जी घबराने जैसी शिकायतें आने लगीं। इसके बाद इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया। आईएमए अध्यक्ष डॉ. सतीश जोशी (Dr. Satish Joshi) का कहना है कि जिन मरीजों में ब्लैक फंगस के गंभीर लक्षण हैं, उनके इलाज में यह इंजेक्शन कारगर नहीं है, क्योंकि इसमें लाइपोसोमल ड्रग नहीं रहता है। यही ड्रग गंभीर मरीजों के इलाज में फायदा देता है, जबकि दो तरह के इंजेक्शन, जिनमें एक कन्वेंशनल एम्फोटेरिसिन और दूसरा लिपिड कॉम्प्लेक्स एम्फोटेरिसिन-बी है, ब्लैक फंगस (Black fungus) के इलाज में मदद नहीं कर पाते हैं। इसलिए साइड इफेक्ट हो रहे हैं। हालांकि इसमें लिपिड कॉम्प्लेक्स वाला इंजेक्शन थोड़ा बहुत उपयोगी है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि पूरी तरह से इसकी रिस्क नहीं ली जा सकती।
एंटीएलर्जिक दवाओं के साथ दिया जा सकता है
कन्वेंशनल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन (Amphotericin-B injection) जो सबसे सस्ता है, उसे कम लक्षण वाले मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यह इंजेक्शन लंबे समय से टीबी के मरीजों के फेफड़ों के इलाज में भी उपयोग किया जाता रहा है। इसके उपयोग में किडनी पर साइड इफेक्ट के चांसेस रहते हैं, लेकिन अगर इसे एंटीएलर्जिक दवा एविल एफकालिन के आधे घंटे बाद दिया जाए तो असर नहीं होता।
ओरल दवाओं से भी ठीक हो रहे मरीज: डॉ. जोशी
शैल्बी हॉस्पिटल के डॉ. विवेक जोशी (Dr. Vivek Joshi) ने बताया कि ऐसा नहीं है कि सभी मरीजों को इंजेक्शन ही लगाना पड़ रहा है। कुछ मरीज ओरल दवाओं से भी ठीक हो रहे हैं। इन मरीजों को पोसाकोनाजोल टेबलेट या सिरप दिया गया है और उसके अच्छे परिणाम मिले। दरअसल जब तक ब्लैक फंगस नाक या साइनस में रहता है तब तक इसे ओरल दवाओं से ठीक किया जा सकता है, लेकिन जब यह ब्रेन में पहुंच जाता है तब इसमें लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin-B) ही लगाना पड़ता है, जो मरीज के इलाज में मददगार साबित होता है।
तीन तरह के इंजेक्शन आते हैं
इलाज में तीन तरह के इंजेक्शन उपयोग में लाए जाते हैं। पहला सबसे सस्ता साढ़े तीन सौ रुपए तक में आने वाला कन्वेंशनल एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin-B) होता है। वहीं दूसरा इंजेक्शन लिपिड कॉम्प्लेक्स एम्फोटेरिसिन-बी आता है, जिसकी कीमत 2 हजार रुपए तक रहती है। ब्लैक फंगस अगर बढक़र मस्तिष्क तक पहुंच जाता है तो फिर तीसरे इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी की आवश्यकता होती है, जो 7 हजार रुपए तक आता है। इस इंजेक्शन के डोज एक दिन में मरीज की स्थिति के हिसाब से तीन से चार बार देना पड़ते हैं।
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