जबलपुर। पाटन विधानसभा क्षेत्र से विधायक अजय विश्नोई ने अपने तेवर बरकरार रखते हुए एक बार फिर से अपनी ही सरकारी की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। विश्नोई के इस रुख पर जनप्रतिनिधि चुप हैं तो प्रशासनिक अमला भी सकते में है। सवाल ये नहीं है कि किसने क्या कहा और किस पर अंगुली उठी है, प्रश्न केवल यही है कि हकीकत क्या है। क्या वाकई जांच प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी नहीं है और क्या ऐसा है कि अरबों की धान खरीदी डिफाल्टरों और संदिग्ध हाथों में रहेगी। धान खरीदी में पांच करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। 22 आरोपियों पर एफआईआर हुई है,जिनमें से कुछ गिरफ्तार भी हुए हैं। इस प्रकरण की जांच ईओडब्ल्यू द्वारा भी की जा रही है।
जांच जारी रहेगी या पूरी होगी
विधायक अजय विश्नोई ने सवाल उठाया कि नियमविरुद्ध मिलर्स को धान देने के मामले में जो आरओ जारी किए गये हैं, उनमें ट्रकों के नंबर दर्ज हैं। ट्रक जबलपुर से चलकर ग्वालियर, उज्जैन, मुरैना गये होंगे तो टोल नाकों से गुजरे होंगे। नाकों के सीसीटीवी देखकर बहुत आसानी से जांच की जा सकती है,लेकिन एक महीने में अधिकारियों से ये नहीं हो सका। श्री विश्नोई ने स्पष्ट किया कि कि मिलिंग के लिए धान उठाई जाती है, लेकिन उसे वे जबलपुर में ही बेच देते हैं। जबकि वे ट्रांसपोर्टेशन चार्ज ले लेते हैं। मिलिंग का चार्ज भी ले लेते हैं और प्रोत्साहन राशि भी ले लेते हैं। जांच टीम चाहे तो परिवहन के बिल भी देख सकती है।
हर बार डिफॉल्टर ही क्यों
विश्नोई ने इस बात पर एतराज जताया कि जिन सहकारी समितियों को गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया है,उन्हें ही बार खरीदी में क्यों लगा दिया जाता है। सरकार के पास इनका कोई विकल्प क्यों नहीं है। इन समितियों के कर्मचारी लगातार संदेहों के दायरे में हैं,लेकिन इनका बाल तक बांका नहीं किया जा सका। कहा कि समितियों में कम्प्यूटर ऑपरेटर 89 दिन के ठेके पर रखा जाता है। वह भी एक आउटसोर्स एजेंसी रखती है। कम्प्यूटर ऑपरेटर्स के कम्प्यूटर्स और आईडी की जांच अभी तक नहीं की गयी है।
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