उज्जैन। पीएचई विभाग शहर वासियों को ऐसा दूषित और गंदा पानी पिला रहा है जो नहाने के लायक तक नहीं है। इस बात को पीएचई के अधिकारी भी स्वीकार रहे हैं। शहर में किए जा रहे मौजूदा जलप्रदाय में गंभीर डेम से 70 प्रतिशत तथा शिप्रा नदी से 30 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जा रहा है। इस पानी से लोगों को कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती है। पिछले दिनों मकर संक्रांति स्नान पर्व पर त्रिवेणी पर बना मिट्टी का पाला टूट गया था। इसके बाद से लगातार कान्ह नदी का दूषित पानी शिप्रा में मिल रहा है। त्रिवेणी से लेकर रामघाट तक शिप्रा का पानी प्रदूषण के कारण बदबूदार और काला पड़ गया है। इसका कोई समुचित उपचार नहीं हुआ है। जबकि दो बार मिट्टी के डेम बनाए गए जो ढह गए और अभी भी कान्ह नदी का दूषित और केमिकल युक्त पानी काफी मात्रा में शिप्रा में मिल रहा है। इसके कारण शिप्रा का पानी प्रदूषित होकर काला पड़ गया है। पिछले दिनों प्रदूषण विभाग ने शिप्रा के पानी की जाँच की सिलसिलेवार 5 रिपोर्ट सार्वजनिक की थी जिसमें स्पष्ट बताया गया था कि कान्ह नदी का पानी मिलने के बाद शिप्रा नदी के पानी में सीओडी और बीओडी दोनों की मात्रा काफी बड़ी हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मापदंडों के अनुसार पानी में सीओडी की मात्रा का लेवल अगर 40 रहता है तो यह नहाने और पीने तथा मछली पालन के लायक बेहतर स्थिति में होता है। इससे अधिक लेवल बढऩे पर यह दूषित हो जाता है। पिछली बार की प्रदूषण विभाग की जाँच रिपोर्ट में शिप्रा नदी के पानी में सीओडी का लेवल 70 तक पाया गया था। तब इस पानी को नहाने लायक भी नहीं बताया गया था। बावजूद इसके अब पूरी तरह दूषित हो चुके शिप्रा के इसी पानी को गऊघाट के प्लांट में प्रतिदिन 3 एमजीडी जल प्रदाय के लिए उपयोग किया जा रहा है। शहर में जल प्रदाय के लिए प्रतिदिन 28 से 30 एमजीडी पानी लगता है और इसमें से 3 एमजीडी अर्थात 10 प्रतिशत पानी शिप्रा नदी का लिया जा रहा है। यह दूषित पानी शहरवासी पेयजल में उपयोग ले रहे हैं। इस पानी में औद्योगिक अपशिष्ट के रूप में प्रयोग होने वाले कई खतरनाक रसायन भी मिले हुए हैं। जिससे कैंसर, किडनी, गला व आतों संबंधी कई बीमारियाँ होना स्वाभाविक है। वर्तमान में शहर में जो जल प्रदाय में यही पानी पीएचई शहरवासियों को पिला रहा है जिससे शहर वासियों को पेट संबंधी बीमारियों की तकलीफ में बढ़ रही है।
नहर बनने में लगेगा समय
पिछले दिनों शिप्रा शुद्धिकरण की माँग को लेकर संतों ने आंदोलन किया था और मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की थी जिस पर सीएम ने संतों की मांग के अनुरूप कान्ह नदी का डायवर्शन ओपन नहर बनाकर करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। अब मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद भी 500 करोड़ की लागत से बनने जा रही डायवर्शन नहर को तैयार होने में भी काफी समय लगेगा। तब तक इसी तरह शायद कान्ह नदी शिप्रा को दूषित करती रहेगी।
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