इंदौर (Indore)। 21 साल बाद अदालत ने भी मेघदूत उपवन घोटाले (Meghdoot Upvan Scam) के आरोपियों को 3-3 साल की सजा सुना दी। मजे की बात यह है कि इस घोटाले की खबर अग्निबाण में प्रकाशित होने के बाद तत्कालीन महापौर ने स्वयं एक जांच कमेटी बनाई, जिसमें शामिल महापौर परिषद् सदस्य और दो भाजपा पार्षद भ्रष्टाचारी घोषित हो गए और ताबड़तोड़ सभी को जमानतें भी कराना पड़ी।
21 साल पहले अग्निबाण ने मेघदूत उपवन में ढाई करोड़ रुपए के निगम द्वारा कराए गए सौंदर्यीकरण के बाद दिए गए ठेके की गड़बडिय़ों को उजागर किया था, जिसको लेकर निगम परिषद् सम्मेलन में भी हल्ला मचा और फिर बाद में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष छोटू शुक्ला ने लोकायुक्त में इसकी शिकायत दर्ज करवाई। इस पूरे मामले में असल आरोपी तो बच निकले, क्योंकि लोकायुक्त ने पूर्व में ही उनके नाम अलग कर दिए। लेकिन बाद में जो जांच कमेटी और संचालन-संधारण समिति बनी उसमें शामिल पूर्व पार्षद और अधिकारी फंसा दिए गए।
पत्नी का हार गिरवी रखना पड़ा जमानत के लिए पूर्व भाजपा पार्षद को
कल जब कोर्ट ने सजा सुनाई तो आठ आरोपियों ने तो जमानत की राशि नकद बुलवाकर भर दी। मगर पूर्व भाजपा पार्षद कैलाश यादव के पास नकद राशि नहीं थी, जिसके चलते उनकी पत्नी के सोने के हार को गिरवी रखना पड़ा और 25 हजार 500 रुपए की जमानत राशि जमा की गई। कोर्ट ने हर धारा पर 5-5 हजार रुपए की जमानत राशि तय की थी। श्री यादव के मुताबिक सजा की घोषणा से उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वे तो भ्रष्टाचार बचाने गए थे, मगर षड्यंत्र का शिकार होकर खुद फंस गए। इस मामले में अधिकारियों पर गाज गिरनी थी, लेकिन जांच से उनके नाम ही निकाल दिए गए। इस कारण उन नेताओं पर गाज गिरी, जिनका दोष प्रमाणित नहीं था।
एक इंजीनियर की हो चुकी है मौत, तो दूसरे ने कर ली थी प्रताडि़त होकर आत्महत्या
कुल 10 आरोपियों में से एक अशोर बेजल जो वरिष्ठ इंजीनियर नगर निगम थे, उनकी कुछ वर्ष पूर्व ही मौत हो चुकी है। जबकि एक युवा सब इंजीनियर नरेशल नहलानी ने इसी घोटाले की प्रताडऩा से त्रस्त होकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि निगम से ही जुड़े नेताओं और अधिकारियों ने उन पर जबरदस्त मानसिक दबाव घोटाले से जुड़ी फाइलों को लेकर बनाया था।
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