डेस्क: तकनीकि के दौर में इंटरनेट का इस्तेमाल इतना ज्यादा बढ़ गया है कि किसी भी जानकारी या अपडेट को इसी के जरिए हम ले पाते हैं. ऐसे में देश के स्कूलों में इसके इस्तेमाल करने को लेकर हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूडीआईएसई डेटा के मुताबिक, देश के केवल 57 प्रतिशत स्कूलों में ही ऐसे कंप्यूटर हैं जो ठीक तरह से काम करते हैं. इन 57 प्रतिशत कंप्यूटरों में 53 प्रतिशत में इंटरनेट की सुविधा दी गई है.
हालांकि, पहले की तुलना में देश के स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट की स्थिति में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन इसपर व्यापक तौर पर अभी भी काम करने की जरूरत है. शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली प्लस एक डेटा एकत्रीकरण प्लेटफॉर्म है. ये शिक्षा मंत्रालय देश भर से स्कूली शिक्षा के आंकड़ों और उससे जुड़ी जानकारियों को जुटाता है. इसके मुताबिक, देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा स्कूल बिजली और अलग-अगल शौचालय जैसे बुनियादी सुविधाओं से लैस हैं.
बेसिक सुविधाओं के इतर इन स्कूलों में ठीक तरह से काम करने वाले डेस्कटॉप, इंटरनेट एक्सेस और हैंडरेल के साथ रैंप जैसी उन्नत सुविधाएं सीमित हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 57.2 प्रतिशत स्कूलों में अच्छी तरह से चलने वाले कंप्यूटर हैं.
53.9 प्रतिशत में इंटरनेट की सुविधा दी गई है. इनमें 52.3 प्रतिशत रैंप से लैस हैं, जिसके माध्यम से दिव्यांग छात्रों को सविधा मिलती है. इसके साथ ही रिपोर्ट में रजिस्ट्रेशन के एरिया में भी बदलाव देखा गया है. पिछले साल की तुलना में देश में रजिस्ट्रेश संख्या में भी भारी कमी आई है. 2023-24 में छात्रों की कुल संख्या 37 लाख घटकर 24.8 करोड़ हो गई है. सकल नामांकन अनुपात ने शैक्षिक स्तरों में असमानताओं के बारे में बताया.
प्रारंभिक स्तर पर जीईआर 96.5 प्रतिशत है, जबकि आधारभूत स्तर पर यह मात्र 41.5 प्रतिशत है. मध्य और माध्यमिक स्तर पर यह 89.5 और 66.5 प्रतिशत है. उच्च शिक्षा स्तर पर भी ड्रॉपआउट दर में तेजी से बढ़त हुई है, जो मिडिल स्कूल में 5.2 प्रतिशत से बढ़कर माध्यमिक स्तर पर 10.9 प्रतिशत हो गई है.
शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रयासों के बावजूद, बुनियादी ढांचे की कमी सार्वभौमिक शिक्षा की दिशा में हमारी प्रगति में बाधा बन रही है. 2030 के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संसाधनों का अनुकूलन करना जरूरी है. NEP 2020, समावेशन और समानता को प्राथमिकता देता है.
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