इंदौर। अवैध कालोनियों (illegal colonies) को वैध करने के साथ ही कालोनाइजेशन (Colonization) के संबंध में भी नगरीय विकास एवं आवास मंत्रालय (Urban Development, Ministry of Housing) ने महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। गजट नोटिफिकेशन (Gazette Notification) के जरिए नियमों में किए गए इन संशोधनों को लागू भी कर दिया है। अब 31 दिसम्बर 2016 से पूर्व अस्तित्व में आई अवैध कालोनियों (illegal colonies) को ही वैध किया जाएगा। वहीं 10 प्रतिशत मकान बने होने की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी गई है। हालांकि इंदौर नगर निगम (Indore Municipal Corporation) 162 अवैध कालोनियों को ही वैध कर सकेगा, क्योंकि पिछली बार ये ही कालोनियां वैध होने लायक पाई गई थी।
प्रदेश शासन (State Government) सालों से अवैध कालोनियों को वैध करने की कवायद करता रहा है। पिछली दफा भी चुनाव से पहले अवैध कालोनियों (illegal colonies) को वैध करने की मुहिम जोर-शोर से शुरू हुई, मगर बाद में जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने पूरी प्रक्रिया को ही निरस्त कर दिया, जिसके चलते विगत वर्षों में वैध हुई सारी कालोनियां फिर से अवैध हो गई। लिहाजा अब नियमों में संशोधन करने के बाद नए सिरे से गजट नोटिफिकेशन किया गया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि नगर निगम 162 कालोनियों को ही वैध कर पाएगा, क्योंकि बाकी की 328 कालोनियों के प्रकरण निगम ने निरस्त कर दिए थे। ये कालोनियां नजूल, ग्रीन बेल्ट, हाउसिंग बोर्ड (Colonies Nazul, Green Belt, Housing Board) या प्राधिकरण की योजनाओं में शामिल जमीनों पर काबिज है। लिहाजा नियमों के मुताबिक उन्हें वैध नहीं किया जा सकता। अभी 31 दिसम्बर 2016 से पहले काबिज कालोनियों को वैध करने का प्रावधान शासन ने किया है। वहीं कालोनाइजेशन के जो लाइसेंस बनते थे वह अब इंदौर में नहीं बनेंगे। पूरे प्रदेश के लिए एक ही लाइसेंस बनेगा, जो भोपाल से बनेगा। इसके लिए ऑनलाइन कालोनाइजर-बिल्डर (Online Colonizer-Builder) को आवेदन करना पड़ेगा और इस एक लाइसेंस से प्रदेशभर में कहीं भी कालोनाइजेशन का काम किया जा सकेगा। आपराधिक तत्वों या गंभीर मामलों में आरोपी बने लोगों को लाइसेंस नहीं मिलेगा। आयुक्त नगरीय प्रशासन और विकास विभाग (Commissioner Urban Administration, Development Department) को लाइसेंस देने का जिम्मा दिया गया है। आवेदन के 30 दिन के भीतर यह लाइसेंस मिलेगा अन्यथा उसकी अपील की जा सकेगी। वहीं निगम की बजाय रहवासी संघ को कालोनी हस्तांतरित की जाएगी। हालांकि इसमें भी कई तरह की परेशानी आएगी।
तीन चरणों में छूट सकेंगे बंधक रखे भूखंड
एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह किया गया है कि विकास अनुज्ञा के साथ ही बिल्डिंग परमिशन यानी भवन अनुज्ञा भी प्राप्त हो जाएगी। वहीं धरोहर यानी बंधक के रूप में रखे गए भूखंडों को भी तीन चरणों में छुड़वाया जा सकेगा। सक्षम प्राधिकारी कालोनाइजर (Authority Colonizer) द्वारा दिए गए आवेदन और आतंरिक विकास कार्यों का आंकलन कर 50 प्रतिशत कार्य पूर्ण होने पर इतने ही 50 प्रतिशत भूखंड मुक्त कर सकेगा। इसी तरह 75 फीसदी काम पूरा होने पर शेष बचे 25 फीसदी भूखंड मुक्त हो जाएंगे और फिर शेष बचे 25 प्रतिशत भूखंड कार्यपूर्णता प्रमाण-पत्र यानी 100 फीसदी विकास कार्य होने पर छूट जाएंगे। विकास कार्य पूरा करने में अगर कालोनाइजर असफल रहता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने के प्रावधान भी किए गए हैं और अवैध कालोनाइजेशन भी सख्ती से रोका जाएगा।
आवेदन शुल्क के साथ आश्रयनिधि भी महंगी पड़ेगी
अभी आश्रयनिधि जमा करने के साथ-साथ ईडब्ल्यूएस (EWS) के भूखंड या मकान बनाने का भी प्रावधान बिल्डर-कालोनाइजरों को दिया जाता है। पंचायत क्षेत्र में तो हालांकि आश्रयनिधि जमा नहीं होती है, लेकिन नगरीय निकाय क्षेत्र में इसका प्रावधान किया गया है, लेकिन इसके बावजूद पहले 100 रुपए स्क्वेयर मीटर की दर से अतिरिक्त राशि ली जाती थी। उसे अब बढ़ाकर गाइडलाइन का एक प्रतिशत कर दिया है। इसके साथ ही आवेदन शुल्क की राशि भी बढ़ गई है। अभी ढाई लाख रुपए हेक्टेयर लगती थी, वह अब बढ़ाकर गाइडलाइन का आधा प्रतिशत कर दी गई है और यह विकास अनुज्ञा शुल्क पूरी जमीन के आधार पर वसूल किया जाएगा।
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