नई दिल्ली: देश में भले ही महिलाओं के सशक्तीकरण पर खूब चर्चा चल रही हो, लेकिन हकीकत कुछ और है. हाल ही में इसकी पड़ताल की और इसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. 2019-21 के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में आज भी 4 में से एक गर्भपात (Abortion) महिलाएं या लड़कियां घर पर ही खुद से कर लेती हैं.
यही नहीं, स्टडी में शामिल लगभग आधी महिलाओं का कहना है कि गर्भपात की मुख्य वजह अनियोजित गर्भावस्था (Unplanned Pregnancy) थी. सरकारी डेटा से यह जानकारी भी मिलती है कि महिलाओं के खुद घर पर गर्भपात करने के प्रतिशत में भी 2015-16 में किए गए विश्लेषण की तुलना में 1 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 की रिपोर्ट बताती है कि करीब एक चौथाई (27 फीसदी) गर्भपात घर में महिलाएं खुद से ही कर लेती हैं. घर में गर्भपात करने का यह अभ्यास शहरी क्षेत्रों (22.1 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में (28.7 फीसदी) ज्यादा पाया जाता है.
गर्भपात करने के लिए सबसे पहली पसंद डॉक्टर (55 फीसदी मामलों में) होती है. उसके बाद महिलाएं खुद से (27 फीसदी) गर्भपात घर में ही कर लेती हैं. 48 फीसदी महिलाओं ने इसके पीछे की अहम वजह अनियोजित गर्भावस्था को बताया. जिसके बाद आगे उनकी सेहत उन्हें फिर से गर्भधारण करने की इजाजत नहीं देती है. यही नहीं 10 फीसदी महिलाओं का कहना था कि गर्भपात करने की वजह उनके फिर से गर्भधारण करने के दौरान उनके पहले बच्चे की उम्र का बहुत कम होना था.
सार्वजनिक बनाम निजी
NHFS-5 के मुताबिक, ज्यादातर गर्भपात निजी स्वास्थ्य क्षेत्र (53 ) में करवाए जाते हैं. जबकि सार्वजिक क्षेत्र यानी सरकारी अस्पताल में गर्भपात किए जाने का प्रतिशत 20% है. 2015-16 के दौरान एक चौथाई से ज्यादा गर्भपात घर में महिलाओं ने खुद किये.
राज्यों की क्या दशा
भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में खुद से किए हुए गर्भपात की संख्या (34 फीसदी) सबसे ज्यादा थी. इसके बाद डॉक्टर, नर्स, एएनएम जैसे स्वास्थ्यकर्मियों से करीब 30 फीसदी लोगों ने गर्भपात कराया. गर्भपात की दो बड़ी अहम वजह में पहली अनियोजित गर्भावस्था (50 फीसदी) और गर्भावस्था के दौरान दिक्कतें (14 फीसदी) थी. ज्यादातर गर्भपात (39 फीसदी) घर में ही किए गए, इसके बाद निजी क्षेत्रों में करीब 38 फीसदी और निजी अस्पतालों में हुए.
राजस्थान में सबसे ज्यादा गर्भपात
राजस्थान में ज्यादातर गर्भपात (38 फीसदी) घर पर ही किए गए. इसके बाद डॉक्टर के पास जाकर गर्भपात कराने वालों की संख्या 36 फीसदी थी. गर्भपात कराने की तीन मुख्य वजह सामने आई- जिसमें पहली थी अनियोजित गर्भावस्था (61 फीसदी) और गर्भावस्था के दौरान दिक्कतें और स्वास्थ्य के अनुमति नहीं देने की वजह से गर्भपात करने वालों की संख्या 6 फीसदी थी.
दिल्ली में गर्भपात की दो वजह
दिल्ली में गर्भपात की दो अहम वजह सामने आई, पहली थी अनियोजित गर्भावस्था (74 फीसदी) दूसरी थी गर्भावस्था के दौरान होने वाली दिक्कतें (5 फीसदी). यहां करीब 49 फीसदी गर्भपात निजी अस्पताल में करवाए गए. वहीं, सार्वजनिक अस्पताल में होने वाले गर्भपात का आंकड़ा 16 फीसदी था. हालांकि, यहां आधे से ज्यादा गर्भपात डॉक्टर ने ही किए.
निजी अस्पताल पहली पसंद
इसी तरह तमिलनाडु में गर्भपात की वजह स्वास्थ्य का साथ नहीं देना (31 फीसदी) और अनियोजित गर्भावस्था (30 फीसद) थी. एक बड़ी संख्या (65 फीसदी) ने गर्भपात कराने के लिए निजी अस्पताल को चुना, वहीं, सार्वजनिक अस्पतालों में जाने वालों की संख्या 26 फीसदी थी. यहां 80 फीसदी गर्भपात डॉक्टरों ने किए.
मातृ मृत्यु दर के लिए असुरक्षित गर्भपात भी वजह
असुरक्षित गर्भपात मातृ मृत्यु दर के पीछे एक अहम वजह रही है. हालांकि, इसे रोका जा सकता है. 1971 से भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) को वैध भी कर दिया गया है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच खासकर दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में अभी भी एक चुनौती है.
मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) में असुरक्षित गर्भपात की हिस्सेदारी 8 फीसदी है. जो लोग सुरक्षित गर्भपात को नहीं अपनाते हैं, ऐसी महिलाओं के भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. जबकि देश में सुरक्षित गर्भपात को लेकर कई नीतियां बनाई गई हैं. यही नहीं गर्भपात कानूनी है और स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध भी होता है, इसके बारे में जागरूकता की कमी सबसे आम कारणों में से एक है; जिसकी वजह से महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालती हैं.
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