उज्जैन। सिंहस्थ 2016 में कान्ह नदी के गंदे पानी को डायवर्ट करने के लिए डेढ़ सौ करोड़ के पाईप बिछाए गए थे लेकिन आज यह पाईप लाईन बंद हो चुकी है और जमीन के नीचे पाईप ही नहीं मिल रहे हैं। करोड़ों के भ्रष्टाचार की जाँच की जानी चाहिए। सिंहस्थ में भाजपा की सरकार थी और उसी दौरान अधिकारियों ने कान्ह नदी के पानी को डायवर्ट करने के लिए योजना बनाई जिसके तहत त्रिवेणी से कालियादेह महल तक कान्ह नदी का पानी पहुँचाने के लिए बड़े पाईप बिछाए गए और उस समय यह दावा किया गया कि कान्ह नदी का पानी जिसमें कि इंदौर की फैक्टरियों के रसायनिक पदार्थ और औद्योगिक प्रदूषण वाला कचरा रहता है, जो शिप्रा में नहीं मिलेगा तथा शिप्रा शुद्ध रहेगी लेकिन कुछ समय बाद अधिकारियों के ट्रांसफर हो गए और डायवर्शन योजना पूरी तरह बेकार साबित हुई एवं आज भी इंदौर का गंदा पानी त्रिवेणी पर शिप्रा में मिल रहा है।
अभी त्रिवेणी पर शनिश्चरी अमावस्या का स्नान हुआ तो इस गंदे पानी को रोकने के लिए तत्काल कच्ची मिट्टी की पाल बांधी गई और अब फिर से कान्ह नदी के पानी को रोकने के लिए 50 करोड़ के स्टॉपडेम की तैयारी की जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब 100 से 150 करोड़ की राशि खर्च करने के बाद न किसी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ और न ही नदी साफ हुई तो 50 करोड़ का स्टॉपडेम बनाने से क्या ग्यारंटी है कि यह पानी रुकेगा। फिलहाल तो काला गंदा पानी इंदौर से आकर उज्जैन में मिल रहा है। ऐसे में शहर के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि वह कान्ह नदी डायवर्शन योजना के दोषियों को सजा दिलवाने के लिए मांग करे और दबाव बनाए। उज्जैन में करोड़ों रुपए की तरह कागजों पर फर्जी योजनाएँ बनाकर खर्च कर दिए गए और ढंग का शौचालय और पेशाबघर तक शहर में नहीं है..शिप्रा नदी में अभी भी गंदे नाले मिल रहे हैं और दावा किया जा रहा है कि भविष्य में नहीं मिलेेंगे लेकिन यदि फिर मिले तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। आज पदस्थ अधिकारी तो खर्च कर निकल जाएंगे।
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