उज्जैन। जिले के सरकारी अस्पतालों में लंबे समय से डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। यह स्थिति कोरोना महामारी के पहले से मौजूद है। शहर के 3 प्रमुख सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टर कम है। यही कारण है कि मातृ शिशु चरक अस्पताल, जिला अस्पताल और माधवनगर अस्पताल में मरीजों के उपचार के लिए औसतन 23 मरीजों का उपचार एक डॉक्टर को करना पड़ रहा है। इस साल की शुरुआत में हुए एक सर्वे में पूरे प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी सामने आई है। उज्जैन शहर भी इससे अछूता नहीं रहा है। यहाँ भी कई वर्षों से जिला अस्पताल, माधवनगर अस्पताल और मातृ शिशु चरक अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। सिंहस्थ 2016 से पहले जिला अस्पताल में मौजूद विभिन्न वार्डों में लगे 700 बिस्तर तथा सरकारी माधवनगर अस्पताल में तैयार 100 बिस्तर संभालने के लिए 59 डॉक्टरों का अमला था।
इसके बाद सिंहस्थ 2016 में आगर रोड पर 400 बिस्तरों वाला 7 मंजिला मातृ शिशु चरक अस्पताल भी बनाया गया था। इसे मिलाकर इन तीन सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या 1200 हो गई थी। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक इन तीनों अस्पतालों में अभी 52 डॉक्टरों की ड्यूटी लगी हुई है। अर्थात 1200 बिस्तरों पर भर्ती मरीजों के उपचार की जवाबदारी इन 52 डॉक्टरों पर है। कुल मरीज के बिस्तरों की संख्या और मौजूद चिकित्सकीय स्टाफ की संख्या का आंकलन किया जाए तो एक डॉक्टर को 23 मरीज अर्थात 23 बिस्तर संभालने पड़ रहे हैं। सीएमएचओ कार्यालय द्वारा समय-समय पर डॉक्टरों की कमी की पूर्ति के लिए स्वास्थ्य विभाग के मुख्यालय को पत्र लिखे गए हैं।
कोरोना में रखे थे अस्थायी चिकित्सक..इसी महीने हटाए गए
कोरोना की पहली तथा दूसरी लहर के साथ तीसरी लहर के दौरान भी शहर तथा जिले में कोरोना मरीज जब तेजी से बढ़ रहे थे और एक्टिव केस बढ़कर 400 तक पहुँच गए थे। उस दौरान सीएमएचओ कार्यालय ने 50 अस्थायी डॉक्टरों की भर्ती की थी। यह डॉक्टर निजी अस्पतालों में कार्यरत थे। अस्थायी रूप से नियुक्त किये गए इन डॉक्टरों की सेवाएँ इस साल 31 मार्च तक ली गई और 1 अप्रैल से उन्हें हटा दिया गया। अस्थायी नियुक्ति में चिकित्सकों के साथ-साथ नर्सिंग और पेरामेडिकल स्टाफ तथा लेब टेक्निशियनों को भी कोरोना काल में सेवा के लिए रखा गया था।
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