नई दिल्ली (New Delhi) । संसद (Parliament) के विशेष सत्र (special session) के ऐलान के साथ ही ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) की चर्चाएं शुरू हो गई थीं। अब खबर है कि सरकार ने इसकी पटकथा जून की शुरुआत से लिखना शुरू कर दी थी। साथ ही इस पूरी प्रक्रिया में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) बड़ी भूमिका निभाते नजर आए। बहरहाल, इससे जुड़ा बिल सत्र में पेश होगा या नहीं, यह अब तक तय नहीं है। लेकिन माना जा रहा है कि अगर देश में एक ही चुनाव के फैसले पर मुहर लगती है, तो विपक्ष को बड़ा झटका लग सकता है।
भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन के कुछ दिनों बाद ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कोविंद से मुलाकात की थी। उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव डॉक्टर पीके मिश्रा भी मौजूद थे। एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि इस बैठक में ही एक देश एक चुनाव पर बड़ी चर्चा शुरू हो गई थी। अटकलें हैं कि 18 सितंबर से शुरू रहे पांच दिवसीय संसद सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है।
कोविंद की क्यों?
शुक्रवार को आधिकारिक तौर पर पूर्व राष्ट्रपति के नाम ऐलान कर दिया गया। समिति उनकी अगुवाई में काम करेगी। इसके बाद सदस्यों की भी घोषणा कर दी गई थी। अब सवाल यह भी है कि सरकार ने कोविंद के नाम पर ही मुहर क्यों लगाई? इसकी भी कई वजहें गिनाईं जा रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सूत्र बताते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति जटिल कानूनी मामलों को आसानी से संभाल सकते हैं।
साथ ही उन्होंने पीएम मोदी का भी भरोसेमंद माना जाता है। रविवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने समिति से जुड़े कामों को लेकर मुलाकात की थी। खबर है कि पूर्व राष्ट्रपति बीते तीन महीनों में कम से कम 10 राज्यपालों से मुलाकात कर चुके हैं।
विपक्ष के लिए झटका कैसे
कहा जा रहा है कि यह विपक्ष को भी परेशान कर सकता है। दरअसल, अगर एक देश एक चुनाव होते हैं, तो उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में टीएमसी, कांग्रेस और वाम दलों के बीच लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों के लिए गठबंधन मुश्किल हो सकता है। साथ ही यही स्थिति आप और कांग्रेस के बीच पंजाब और दिल्ली में भी बन सकती है। इधर, समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश चुनाव में कुछ सीटों पर पहले ही उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुकी है।
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