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    लोकसभा में पेश हुआ ‘एक देश एक चुनाव’ विधेयक, जानें देश में कैसे और कब तक लागू होगा

  • December 17, 2024

    नई दिल्ली। ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) विधेयक (Bill) को मंगलवार को लोकसभा (Lok Sabha) में पेश कर दिया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) ने विधेयक को सदन के पटल पर रखा। सदन में चर्चा के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे बड़े विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते गुरुवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी थी।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने इस पर विचार रखा था।

    क्या है ‘एक देश एक चुनाव’?
    इस प्रस्ताव का उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना है। फिलहाल लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं, या तो पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद या जब सरकार किसी कारण से भंग हो जाती है। इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है। अलग-अलग राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है, उसी के हिसाब से उस राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं।

    हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हुए तो लोकसभा चुनाव खत्म होने के छह महीने के भीतर हरियाणा, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हुए।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से एक देश एक चुनाव के समर्थक रहे हैं। प्रधानमंत्री ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर एक देश एक चुनाव का मुद्दा उठाया था। तब से अब तक कई मौकों पर भाजपा की ओर एक देश एक चुनाव की बात की जाती रही है।

    एक देश एक चुनाव की बहस की वजह क्या है?
    दरअसल, एक देश एक चुनाव की बहस 2018 में विधि आयोग के एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। उस रिपोर्ट में आर्थिक वजहों को गिनाया गया था। आयोग का कहना था कि 2014 में लोकसभा चुनावों का खर्च और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान रहा है। वहीं, साथ-साथ चुनाव होने पर यह खर्च 50:50 के अनुपात में बंट जाएगा।

    सरकार को सौंपी अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा था कि साल 1967 के बाद एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई। आयोग का कहना था कि आजादी के शुरुआती सालों में देश में एक पार्टी का राज था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। धीरे-धीरे अन्य दल मजबूत हुए कई राज्यों की सत्ता में आए। वहीं, संविधान की धारा 356 के प्रयोग ने भी एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को बाधित किया। अब देश की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या काफी बढ़ी है। वहीं, कई राज्यों में इनकी सरकार भी है।


    कैसे पारित होगा ये प्रस्ताव?
    राज्यसभा के पूर्व महासचिव देश दीपक शर्मा ने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया, ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव के बारे में एक प्रक्रिया करनी होगी जिसमें संविधान संशोधन और राज्यों का अनुमोदन भी शामिल है। संसद में पहले इस विधेयक को पारित कराना होगा। एक अड़चन बताई जाती है कि इसे लागू करने से पहले विधानसभाओं को भंग करना होगा। हालांकि, ऐसा नहीं है जब राज्यसभा का गठन हुआ था और उसमें बहुत से सदस्य आये थे तो सवाल उठा था कि उनका एक तिहाई-एक तिहाई करने इन्हें रिटायर कैसे किया जाए। इसमें जरूरी नहीं है कि उनका कार्यकाल घटाया जाए, ऐसा भी हो सकता है कि जिन राज्यों का समय पूरा नहीं हुआ है उनको अतिरिक्त समय दे दिया जाए।’

    अब सवाल उठता है कि राज्यों की विधानसभा भंग कैसे होगी? इसके दो जवाब हैं- पहला कि केंद्र राष्ट्रपति के जरिए राज्य में अनुच्छेद 356 लगाए। दूसरा यह है कि खुद संबंधित राज्यों की सरकारें ऐसा करने के लिए कहें।

    कैसे लागू होगा एक देश एक चुनाव?
    इससे पहले अधिकारियों ने पीटीआई को बताया था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे। इनमें संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और राज्यों में राष्ट्रपति शासन को लागू करने से संबंधित अनुच्छेद 356 शामिल हैं। इसके साथ ही संविधान की संघीय विशेषता को ध्यान में सभी दलों की सहमति जरूरी होगी। वहीं यह भी अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त की जाए।

    सरकार और विपक्ष का क्या कहना है?
    एक देश एक चुनाव भाजपा के चुनावी एजेंडे में शामिल रहा है। भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए केंद्र में अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान इस विधेयक को पेश करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे होने से ठीक बाद कोविंद कमेटी की रिपोर्ट आई थी। इस साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने सभी से एक साथ चुनाव कराने के कानून के लिए एकजुट होने का अनुरोध किया था। इससे पहले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि संसद परिपक्व है और चर्चा होगी, घबराने की जरूरत नहीं है। भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, विकास हुआ है।

    वहीं, विपक्षी कांग्रेस ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि लोकतंत्र में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ काम नहीं कर सकता और कांग्रेस इसके साथ नहीं है। खरगे का तर्क है कि अगर हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र जीवित रहे तो हमें जब भी आवश्यकता हो चुनाव कराने की जरूरत है।

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