उज्जैन (Ujjain)। भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का नरसिंह अवतार (Narasimha Avatar) तो आप लोगों ने देखा ही होगा. जिनकी सभी नरसिंह भगवान के स्वरूप की पूजा करते हैं. भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है. ये ऐसा अवतार था जिसमें श्रीहरि विष्णु (Srihari Vishnu) के शरीर का आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था. इसीलिए इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा गया है.
भगवान ने ये अवतार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद के प्राण बचाने के लिए लिया था. नरसिंह भगवान एक खंभे को चीरते हुए बाहर आए थे. लेकिन क्या आपको पता है कि विष्णु भगवान ने नरसिंह अवतार किस दिन लिया था. जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख…
हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान नरसिंह खंबे को चीरकर बाहर निकले थे और उन्होंने दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था. तभी से हर साल होली से तीन दिन पहले द्वादशी के दिन नरसिंह भगवान की विशेष पूजा की जाती है और इस दिन को नरसिम्हा द्वादशी (Narasimha Dwadashi), नरसिंह द्वादशी (Narsingh Dwadashi) के रूप में जाना जाता है.
ऐसे करें पूजन
नरसिंह भगवान श्रीहरि का ही अवतार हैं इसलिए उनकी पूजा भी उसी तरह होती है. नरसिंह द्वादशी के दिन सुबह ब्रह्म मूहूर्त में उठकर निवृत होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें.
इसके बाद भगवान नरसिंह की तस्वीर सामने रखकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद सभी भक्त पूजा के समय नरसिंह भगवान को अबीर, गुलाल, चंदन, पीले अक्षत, फल, पीले पुष्प, धूप, दीप, पंचमेवा, नारियल आदि अर्पित करें.
भगवान की पूजा करते हुए ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥ मंत्र का जाप करें. इस मंत्र का 108 बार जाप करना अधिक शुभ रहेगा.
भगवान से घर के समस्त संकट दूर करने की प्रार्थना करें और भूल चूक के लिए क्षमा याचना करें. संभव हो तो दिन भर निराहार रहकर व्रत करें.
भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की कथा पढ़ी जाती है और भगवान विष्णु की आरती गाकर पूजा का समापन होता है.
व्रत वाले दिन नमक का सेवन न करें और अगले दिन स्नान करने के बाद किसी जरूरतमंद को दक्षिणा और सामर्थ्य के अनुसार दान देकर व्रत खोलें.
जानें इस व्रत का महत्व
नरसिंह द्वादशी के दिन ये व्रत करने से परिवार के सभी संकट दूर होते हैं और खुशियां और बरकत आती है. ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद नरसिंह भगवान ने प्रहलाद को भी वरदान दिया था कि जो भी भक्त इस दिन उनका श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करेगा, उनका पूजन या व्रत करेगा, उसके जीवन के शोक, दुख, भय और रोग दूर होंगे. उसकी हर मनोकामना पूरी होगी.
ये है व्रत कथा
प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर. इस वरदान को पाने के बाद वो खुद को अमर समझने लगा. लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा. उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था. उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी.
इससे नाराज हिरण्यकश्यम ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया. कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया. उसने अपनी बहत होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई.
अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यम ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा. तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ. उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर के बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु. भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया.
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