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उल्टे अमेरिकी लैब की जांच करवाने की मांग कर रहा है चीन, दावा- ‘यहां पहले बना घातक वायरस’

August 08, 2021

डेस्‍क। अमेरिका की साइंटिफिक जर्नल PNAS में अक्टूबर 2008 में वायरॉलजिस्ट्स (virologists) की एक टीम ने SARS जैसे कोरोना वायरस (Corona Virus) को बनाने की रिपोर्ट छापी। चीन (China) की शिन्हुआ न्यूज एजेंसी (xinhua news agency) के मुताबिक इस रिपोर्ट में नॉर्थ कैरलीना यूनिवर्सिटी (Carolina University) के प्रफेसर राल्फ बैरिक ने लैब में इस वायरस को डिजाइन करने और पैदा करने की क्षमता का दावा किया। आज जब कोरोना वायरस की महामारी डेढ़ साल से दुनियाभर में कहर बरपा रही है, चीन ने अमेरिका की इस लैब और वैज्ञानिकों को कठघरे में खड़ा किया है।

दरअसल, दुनिया के कई देशों के साथ मिलकर अमेरिका ने महामारी की शुरुआत से चीन पर वायरस फैलने और इसकी जानकारी दुनिया से छिपाने का आरोप लगाया है और अब चीन अमेरिका पर पलटवार करने में लगा है। चीन की ओर से पिछले कई हफ्तों में बैरिक की टीम और फोर्ट डेटरिक लैब की जांच की मांग की जा रही है। चीन ने इस लैब पर वायरस लीक होने का आरोप लगाया है जहां इबोला, स्मॉलपॉक्स, SARS, MERS और कोरोना जैसे घातक वायरस रखे जाते हैं।

खुद अपना डेटा छिपाकर रखने वाले चीन के सरकारी मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा है कि कोविड-19 फैलने में अमेरिका की इस लैब की भूमिका का सच भी सामने लाया जाए। चीन के प्रॉपगैंडा अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक लाखों लोग ने ऑनलाइन याचिका साइन की है और जांच की मांग की है। अखबार का कहना है कि इसमें चीन के लोगों के साथ-साथ अब दुनियाभर के लोग शामिल हैं।


पीपल्स डेली चाइना ने भी मांग की है कि अमेरिका WHO को अपने यहां जांच करने दे ताकि यह पता चले कि कोरोना वायरस रिसर्च में बना है या बन सकता है। अखबार का दावा है कि अमेरिका दुनिया में कोरोना वायरस स्टडी सबसे ज्यादा प्रैक्टिस और स्पॉन्सर किया जाता है। इसमें बारिक की टीम को मुख्य बताया गया है जो वायरस को मॉडिफाई कर सकती है और बना सकती है।

शिन्हुआ के मुताबिक 1983 से बारिक ने 400 पेपर छापे हैं और इनमें से 268 पेपर कोरोना वायरस पर हैं। चीन का कहना है कि बारिक की रिसर्च और डेटरिक लैब के कारण ही सबसे पहले वायरस से इन्फेक्शन के केस सामने आए थे। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने अमेरिका से जुलाई 2019 में विस्कॉनसिन में फेफड़ों से जुड़ी बीमारी और सर्दियों में फ्लू के मरीजों पर डेटा जारी करने की मांग की है।

झाओ का कहना है कि यह पता लगाया जाना चाहिए कि इनमें से कितने लोगों को असल में कोविड-19 था। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक उसी साल अमेरिका के CDC ने डेटरिक लैब से काम बंद करने को कहा था। झाओ ने मांग की है कि 2019 में वुहान मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स में आए सैनिकों का डेटा भी जारी किया जाए। झाओ का आरोप है कि ऐसे रिसर्च में अमेरिका सबसे ज्यादा फंड करता है और अब वुहान लैब से वायरस लीक होने की कहानी गढ़ रहा है। इसके लिए वैज्ञानिकों पर दबाव डाल रहा है और मुखर वैज्ञानिकों को धमका रहा है जो ‘आतंकवाद’ है।

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