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खंडवा में किशोर कुमार की जयंती पर समाधि पर लगता है दूध जलेबी का भोग

August 02, 2022

खंडवा: भारतीय फिल्म जगत (Indian film industry) की में कई ऐसे महान कलाकार हुए हैं, जिनके बिना ये फिल्मी दुनिया शायद उतनी रंगीन नहीं होती. ऐसे ही कलाकारों में शुमार (one of the artists) किए जाते हैं हरफनमौला कलाकार स्वर्गीय किशोर कुमार (Kishore Kumar). आगामी 4 अगस्त को किशोर कुमार की जयंती (Kishore Kumar Birth Anniversary) है और इस दिन खंडवा (Khandwa) में गौरव दिवस मनाया जाएगा. बता दें कि किशोर कुमार मध्य प्रदेश के खंडवा में पैदा हुए और यहीं पर उनका बचपन बीता.

किशोर कुमार (Kishore Kumar) की अंतिम इच्छा के मुताबिक उनके देहांत के बाद उनके पार्थिव शरीर को मुंबई से खंडवा लाया गया और यहीं पर उनका अंतिम संस्कार किया गया. बाद में उनके चाहने वालों ने यहीं पर उनकी समाधि बना दी. जिसे उनके चाहने वाले भगवान की तरह पूजते हैं. किशोर कुमार की समाधि पर हर साल हजारों की संख्या में उनके प्रशंसक माथा टेकने पहुंचते हैं. किशोर दा को खंडवा से बड़ा लगाव था और वह जब भी खंडवा आते थे तो अपने दोस्तों के साथ शहर की गलियों, चौपालों पर गप्पे लड़ाना नहीं भूलते थे. किशोर कुमार को दूध जलेबी खाने का बड़ा शौक था. खंडवा में उनकी ज्यादातर महफिलें जलेबी की दुकान पर ही सजती थीं. यही वजह है कि आज भी उनके समर्थक जब उनकी समाधि पर जाते हैं तो वहां दूध जलेबी का भोग लगाने के बाद ही श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.


किशोर कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह रिटायरमेंट के बाद मुंबई छोड़कर खंडवा में बसना चाहते थे लेकिन कुदरत को ये मंजूर न था और वह बीच मे ही दुनिया छोड़ कर चले गए. उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उन्हें खंडवा लाया गया और यहीं उनका अन्तिम संस्कार किया गया. किशोर कुमार अक्सर फिल्मों में खंडवा का जिक्र करते थे. कई बार तो उन्होंने फिल्मों में अपने घर का पता भी बताया है. किशोर कुमार ने खुद को खंडवा में ही तराशा और मुंबई जाकर दुनियाभर में नाम कमाया. अपने करियर में किशोर दा ने 16 हजार फ़िल्मी गाने गाए और उन्हें 8 बार फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया. किशोर कुमार मुम्बई गए तो थे हीरो बनाने लेकिन वह हीरो के साथ ही महान गायक बन गए. जिद्दी फ़िल्म से उन्होंने गाना गाने का सफ़र शुरू किया था.

किशोर कुमार का पुश्तैनी मकान खंडवा में आज भी मौजूद है. किशोर कुमार के पिता खंडवा के एक नामी वकील थे. उनके बेटों अशोक कुमार, अनूप कुमार के बाद किशोर कुमार सबसे छोटे थे. किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को खंडवा में ही हुआ था. खंडवा से ही किशोर कुमार की स्कूली शिक्षा हुई और बाद में आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंदौर भेज दिया गया. किशोर कुमार के स्कूल के दोस्त बताते थे कि वह शुरू से ही बड़े चुलबुले थे और स्कूल में डेस्क बजाना और उस पर खड़े होकर नाचना उनका शौक था. पढ़ाई में कमजोर रहे किशोर कुमार अक्सर अपने टीचर्स की नकल उतारते थे.अब किशोर कुमार के दोस्त भी नहीं रहे हैं लेकिन युवा पीढ़ी में भी उनके प्रशंसकों की कमी नहीं है.

खंडवा में मौजूद किशोर कुमार का पैतृक मकान (Kishore Kumar family House) है, जो सालों से वीरान पड़ा है. पिछले 45 साल से एक चौकीदार इस मकान की रखवाली कर रहा है. देशभर में फैले किशोर कुमार के प्रशंसक लगातार इस मकान को संग्रहालय बनाने की मांग कर रहे हैं. खंडवा के लोगों की भी यही मांग है. उनका कहना है कि किशोर कुमार खंडवा के गौरव हैं और सरकार को उनके मकान को संग्रहालय बनाने की पहल करनी चाहिए. किशोर कुमार के पुश्तैनी घर में रखा सामान मानों आज भी उनकी प्रतिक्षा कर रहा है. हालांकि अब मकान की हालत को देखते हुए उसके अंदर जाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. कुछ दिन पहले किशोर कुमार के पुश्तैनी मकान के बिकने की खबरें भी आईं थी लेकिन बाद में किशोर कुमार के बेटे अमित कुमार ने समाचार पत्रों में नोटिस देकर इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया था. अब स्थिति ये है कि यह मकान ज्यादा दिनों तक नहीं खड़ा रह सकता और जिस दिन यह मकान गिरेगा, उसी दिन लाखों संगीत प्रेमियों का दिल भी टूट जाएगा.

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