ओरछा। बुंदेलखंड की अयोध्या कही जाने वाली ओरछा में रामनवमी (Ram Navami) पर इस बार कुछ खास होने जा रहा है। पहले वाराणसी, अयोध्या, उज्जैन के बाद अब ओरछा में भी दोपोत्सव का आयोजन होगा। रामनवमी (Ram Navami) पर यहां 5 लाख दीपों से रामराजा की नगरी चमक उठेगी।
बता दें कि उज्जैन में नागरिकों ने 1 मार्च को महाशिवरात्रि पर क्षिप्रा के घाटों और घर घर में दीप जलाकर कीर्तिमान बना दिया था। सीएम चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश के नागरिकों की भागीदारी के बेहतर परिणाम सामने आते हैं।
ओरछा के शासक मधुकरशाह हैं कृष्ण भक्त
इसी तरह पर्वों और त्योहारों में आमजन की भागीदारी जन-उत्साह और जन-उमंग का उदाहरण है. पौराणिक कथाओं में ओरछा के शासक मधुकरशाह को कृष्ण भक्त बताया गया है और उनकी महारानी कुंवरि गणेश को राम उपासक। इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली। तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। इस पर महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं। अयोध्या में 21 दिन तप करने के बाद भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी।
3 शर्तों पर अयोध्या से ओरछा आए थे राम
कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए. तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं। पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी, ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी।
तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी। महारानी ने ये तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली. इसके बाद ही रामराजा ओरछा आ गए। तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं। राम के अयोध्या और ओरछा, दोनों ही जगहों पर रहने की बात कहता एक दोहा आज भी रामराजा मन्दिर में लिखा है कि, “रामराजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास”।
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