नई दिल्ली. केंद्र (Centre) की मोदी सरकार (modi government) ने पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों (Government employees) के भाग लेने पर लगे 58 साल पुराने प्रतिबंध (ban) को हटा दिया था. इस फैसले की जहां विपक्ष ने आलोचना की तो वहीं सत्ता पक्ष ने इसे एक बेहतर फैसला बताया. अब इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (High Court) ने भी टिप्पणी की है. गुरुवार को हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को अपनी इस चूक का अहसास करने में करीब पांच दशक लग गए.
हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को यह एहसास होने में करीब पांच दशक लग गए कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरीखे विश्व प्रसिद्ध संगठन’ को सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रतिबंधित संगठनों की सूची में गलत तरह से शामिल किया गया था.
गलती का अहसास होने में लग गए पांच दशक
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस गजेंद्र सिंह की पीठ ने सेवानिवृत्त केंद्रीय सरकारी कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता की रिट याचिका का निपटारा किया. गुप्ता ने पिछले साल 19 सितंबर को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों के साथ-साथ केंद्र के कार्यालय ज्ञापनों को चुनौती दी थी, जो सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने से रोक रहे थे.
पीठ ने कहा, “अदालत इस बात पर अफसोस जताती है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में करीब पांच दशक लग गए; यह स्वीकार करने में कि आरएसएस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से देश के प्रतिबंधित संगठनों में रखा गया था.”
कोर्ट का बड़ा आदेश
अदालत ने आगे कहा, ‘इस प्रतिबंध के कारण इन पांच दशकों में देश की सेवा करने की कई केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की आकांक्षाएं कम हो गईं, जो तभी दूर हुईं जब इसे वर्तमान कार्यवाही के माध्यम से इस अदालत के संज्ञान में लाया गया.’
पीठ ने केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वे अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर 9 जुलाई के कार्यालय ज्ञापन को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें, जिसके माध्यम से सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध हटा दिया गया था.
“इसलिए, हम कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और गृह मंत्रालय, भारत सरकार को निर्देश देते हैं कि वे अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर प्रतिबंध को लेकर पूर्व में जारी आदेशों में 9 जुलाई 2024 को जो संशोधन किया गया है, उसकी सूचना प्रमुखता से जारी करें. अदालत ने कहा कि यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि सभी सरकारी कर्मचारी और आम जनता नीति में बदलाव के बारे में जान सकें.
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