उन्होंने धूप में बाल सफेद नहीं किये हैं। माशा अल्लाह अस्सी बरस के हैं। अल्ला नजऱेबद से बचाये…आज बी मियां तन के चलते हैं। चेहरे पे मासूमियत भरी मुस्कान हमेशा रहती है। अख़लाक़ इत्ता नरम, मिज़ाज़ इत्ता नफीस के इनसे जो बी मिलता हेगा इनी का होके रे जाता हेगा। सहाफत (पत्रकारिता) की इस हस्ती का नाम है ओमप्रकाश मेहता। ओमजी अपने पेशे के अलावा जि़ंदगी के नशेबोफराज़ के तजर्बों की खान हैं। 1962 में इंन्ने उज्जैन से पत्रकारिता की इब्तिदा करी। उज्जैन में प्रेमनारायण पंडित और रामकिशोर गुप्ता प्रजादूत रोजऩामचा शाया करते थे। कोतवाली रोड पे कंठाल चोराये पे अखबार का दफ्तर था। पढ़ाई के साथ साथ ओम मेहता यहां रिपोर्टर हो गए। तनख्वाह थी महज 15 रुपये। अखबार में हेंड कंपोजि़ंग होती और ट्रेडिल मशीन पे छपता। 1967 मे उज्जैन में गोवर्धन लाल मेहता और उनके भाइयों ने दैनिक अवंतिका अखबार की इफ्तेताह करी तो मेहताजी इससे जुड़ गए। तनख्वाह भी 60 रुपये हो गई। अवंतिका को पूरा मेहता परिवार ही चलाता था। अनिल मेहता अकाउंट देखते तो गोपाल दादा प्रिंटिंग का काम संभालते। शिवमंगल सिंह सुमन और उज्जैन के सांसद और मरकज़ी मिनिस्टर प्रकाशचंद्र सेठी ने अवंतिका का उद्घाटन किया था। उस वक्त तक ओम मेहता साब के कने साइकिल तक नईं थी। पूरे शहर में ये पैदल रिपोर्टिग करते। 1972 में आप इंदौर वाली नईदुनिया के उज्जैन ब्यूरो में चीफ अवन्तिलाल जैन साब के साथ हो गए। उस वक्त नईदुनिया की पूरे सूबे में तूती बोलती थी। वो अभय छजलानी, बसंतीलाल सेठिया के अलावा सहाफत के नामवर राहुल बारपुते, राजेन्द्र माथुर और मशहूर इलेस्ट्रेटर विष्णु चिंचालकर का दौर था।
ओम जी के खबर लिखने के अंदाज़ से राजेन्द्र माथुर बहुत मुतास्सिर थे। उन्ने ओमजी को 1982 में उज्जैन से इंदौर नईदुनिया बुला लिया। उस वक्त नईदुनिया में शाहिद मिजऱ्ा, प्रकाश हिंदुस्तानी को चार बरस हुए थे। उनके साथ ही शिवअनुराग पटेरिया, राजेश बादल और विभूति शर्मा भी नईदुनिया में कमाल दिखा रहे थे। ओमजी ने नईदुनिया में 13 बरस की लंबी पारी खेली और पूरे सूबे में अच्छा नाम कमाया। 1985 में इंन्ने भोपाल का रुख करा। यहां ये नवभारत में स्पेशल कोररस्पोंडेंट हो गए। 1989 में ओम मेहता ने हिंदुस्तान अखबार का रुख किया और भोपाल में रहते हुए एमपी और छत्तीसगढ़ का काम संभाला। अपनी जानदार सियासी पकड़ और लपक अंदाज की एक्सक्लुसिव खबरों से सहाफी की अनूठी पहचान बन चुकी थी। यहां साल 2003 तक भेतरीन पारी खेली। दैनिक भास्कर में भी ओम मेहता साब ने अपनी सियासी खबरों से सूबे में अलग पहचान बनाई। 2008 में ये भोपाल में दैनिक नईदुनिया में एडिटर हो गए और 2014 तक यहां रहे। फिलहाल मेहताजी किसी अखबार में तो नहीं हैं लेकिन हर करंट मौज़ू पे हफ्ते में दो दिन इनके आर्टिकल किसी न किसी अखबार में शाया होते हैं। गुजिश्ता 8 बरसों से मेहताजी हर दिन फेसबुक पे जीवन मंत्र पोस्ट करते हैं। अपने हाथ से लिखी जीवन मंत्र की चार पांच सतरें सहाफत से हटके जि़न्दगी के तजर्बों को बयां करती हैं। मेहता साब शिवाजीनगर के सरकारी बंगले में रहते हैं। आपकी दो बेटियां और एक बेटा है। शरीके हयात का दस साल पहले इंतकाल हो चुका है। बेटा इंजीनियरिंग कॉलेज में फेकल्टी है। बहु भी प्राइवेट कालिज में पढ़ाती है। दोनो बेटियां मुंबई में रहती हैं। एक दामाद चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और दूसरे टीवी सीरियल में स्क्रिप्ट लिखते हैं। मेहता साब अपने बच्चों और नाती पोतों के साथ जि़न्दगी का बेहतरीन वक़्त गुज़ार रहे हैं।