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    कागजों में सिमटकर रह गया ओंकारेश्वर नेशनल पार्क

  • December 25, 2021

    • बाघों की सुरक्षित पनाहगाह के लिए दो साल का इंतजार
    • छह साल पहले प्रस्ताव बना, दो साल पहले प्रक्रिया आरंभ हुई, लेकिन कार्रवाई अधर में
    • नेशनल पार्क बनाने की शर्त पर ही मिली थी इंदिरा सागर बांध की अनुमतिं

    भोपाल। इंदिरा सागर परियोजना और ओंकारेश्वर की बलि चढ़े लाखों पेड़ों का हर्जाना आज तक नहीं भर पाया है। ओंकारेश्वर नेशनल पार्क बनाने की शर्त पर ही इंदिरा सागर बांध परियोजना को अनुमति मिली थी। बांध बनने के 15 साल बाद भी ओंकारेश्वर नेशनल पार्क सिर्फ कागजों में ही अटका हुआ है। छह साल पहले इसका प्रस्ताव भी बनाया गया था। दो साल पहले प्रस्ताव पर प्रक्रिया भी आरंभ हुई, तब लगा कि जल्द ही नेशनल पार्क की सौगात मिलेगी, लेकिन दो साल बाद भी कार्रवाई अधर में है। इंदिरा सागर बांध और ओंकारेश्वर बांध परियोजना में सैकड़ों गांव प्रभावित हुए थे। साथ ही करीब 125 वर्ग किमी जंगल और गांवों, मैदानों में लगे लाखों पेड़ भी बांधों की बली चढ़े थे। इंसानों, जानवरों का तो पुनर्वास हो गया, लेकिन पर्यावरणीय क्षति को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है।


    दोनों बांधों की अनुमति में नेशनल पार्क बनाए जाने की शर्त भी शामिल थी। बांध बने, बिजली, पानी (सिंचाई) भी मिलने लगा, लेकिन नेशनल पार्क आज भी प्रस्तावों में बन रहा है। इन बांधों से 1500 मेगावॉट बिजली पैदाकर प्रदेश को रोशन किया जा रहा है, लेकिन पर्यावरण का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करवाने में कोई रूचि सरकार की नहीं दिख रही है।

    दो जिलों में 625 वर्ग किमी जंगल प्रस्तावित
    ओंकारेश्वर नेशनल पार्क के लिए खंडवा जिले में 450 वर्ग किमी और देवास जिले में 225 वर्ग किमी जंगल प्रस्तावित है। सबसे अच्छी बात ये है कि ओंकारेश्वर नेशनल पार्क की जद में कोई भी गांव नहीं आ रहा है। ओंकारेश्वर नेशनल पार्क बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह भी साबित हो सकता है। यहां एक ओर इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर बांध के बैक वाटर की सुरक्षा, दूसरी ओर ऊंची-ऊंची पहाडिय़ां इसे पूरी तरह से सुरक्षित बनाती है। खंडवा जिले में धार्मिक पर्यटन के रूप में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। एंडवेंचर एक्टिविटीस के लिए हनुवंतिया टापू प्रसिद्ध हो चुका है। ऐसे में ओंकारेश्वर नेशनल पार्क बनने से जंगल सफारी भी पूरी हो जाएगी। ये पर्यटकों के लिए एक संपूर्ण पैकेज के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके साथ ही यहां से महेश्वर, मंडलेश्वर, बावनगजा (बड़वानी) और मांडू (धार) भी एक ही रूट पर होने से पर्यटन पथ भी बन सकता है।

    लिंक परियोजना ने रोकी राह, दो साल ओर इंतजार
    दरअसल ओंकारेश्वर नेशनल पार्क की राह काली-सिंघ लिंक परियोजना ने रोक रखी है। परियोजना के तहत पाइप लाइन बिछाने का कार्य किया जा रहा है। पाइप लाइन प्रस्तावित नेशनल पार्क से ही होकर गुजर रही है। सूत्रों के मुताबिक परियोजना को पूरा होने में करीब दो साल लग सकते है। जिसके चलते नेशनल पार्क की की कार्रवाई दो साल तक कागजों में सिमटी रहेगी।

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