इंदौर। शहर में ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variants) दस्तक ही नहीं दे चुका, बल्कि घरों में भी घुस चुका है, पर समस्या यह है कि कोरोना के मरीजों में फैल रहे वेरिएंट की जांच नहीं किए जाने के चलते इस बात का पता नहीं चल पा रहा है कि शहर में ओमिक्रॉन के मरीजों की स्थिति क्या है। हालांकि पिछले एक सप्ताह (one week) का चक्र देखें तो समझ में आएगा कि इन दिनों में ही 3436 मरीज शहर में बढ़ गए, जबकि इसके पहले एक माह में मरीजों का आंकड़ा दहाई से आगे नहीं बढ़ा था। शहर में ओमिक्रॉन वेरिएंट के बढ़ते मरीजों की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 16 मरीजों के सैंपल की जांच में 6 मरीज ओमिक्रॉन वेरिएंट के पाए गए और इनकी रिपोर्ट जब तक आती, तब तक वे सभी ठीक हो गए थे।
शहर में कोरोना के बढ़ते मामलों की स्थिति पता लगाने के लिए जरूरी है कि उसकी गंभीरता को भी आंका जाए। उसके लिए कोरोना के वेरिएंट की जानकारी होना आवश्यक है, लेकिन स्थिति यह है कि जिला प्रशासन द्वारा केवल सैंपल (sample) के तौर पर कुछ मरीजों के वेरिएंट की जांच की जाती है, जबकि शहर के अरबिंदो मेडिकल कॉलेज (Aurobindo Medical College) में वेरिएंट का पता लगाने के लिए जिनोम सीक्वेंसी मशीन (genome sequencing machine) आ चुकी है। आलम यह है कि अव्वल तो इस मशीन का उपयोग नहीं किया जा रहा है और यदि कुछ सैंपल की जांच की भी जाती है तो उसकी पुष्टि के लिए बाहरी लैब में भेजा जाता है। अरबिंदो मेडिकल कॉलेज में 16 सैंपलों के वेरिएंट की जांच की गई, जिनमें से 6 सैंपल ओमिक्रॉन वेरिएंट के पाए गए। इसकी पुष्टि के लिए सैंपलों को बाहरी लैब में भेजा गया, तब तक सब मरीज ठीक हो चुके थे। अभी भी शहर में कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या जहां हजारों में है, वहीं अस्पतालों में मरीजों की तादाद बेहद सीमित है। इस तथ्य से यह बात साबित होती है कि शहर में कोरोना का ओमिक्रॉन वेरिएंट ही है, लेकिन इस तथ्य की पुष्टि के लिए जांच नहीं की जा रही है।
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