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बूढ़े शास्त्री ब्रिज को बैसाखी मिलेगी…

  • April 08, 2025

    • 1953 में बने शहर के सबसे व्यस्ततम ब्रिज को चूहों ने कर दिया खोखला…
    • नगर निगम धंस रहे हिस्सों का करेगा भराव… कांच भरकर सीमेंट से बंद करेंगे कई खुले पैचेस

    इंदौर, सुनील नावरे। सन् 1953 में शास्त्री ब्रिज का निर्माण किया गया था। 448 मीटर लंबे इस ब्रिज की हालत अब दिनोंदिन खस्ता होती जा रही है। सरवटे और रीगल के आसपास के ब्रिज वाले हिस्सों में चूहों की फौज ने कई जगह बिल बना लिए हैं और उनके कारण कई जगह ब्रिज के हिस्से क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। ऐसी स्थिति 4 से 5 स्थान पर है।पश्चिम क्षेत्र को पूर्वी क्षेत्र से जोडऩे वाला यह शास्त्री ब्रिज कई महीनों से अलग-अलग हिस्सों में लगातार जर्जर होता जा रहा है । दो माह पहले ही रीगल से शास्त्री ब्रिज आने वाले शुरुआती हिस्से में कई जगह लगी इंटरलॉकिंग टाइल्स धंस गई थीं और फिर नगर निगम के आला अधिकारियों ने सूचना मिलने के बाद वहां आसपास के हिस्सों का मौका निरीक्षण किया था। शास्त्री ब्रिज की एक भुजा रेलवे स्टेशन की ओर जाती है।

    ब्रिज के इस हिस्से में बड़ी संख्या में कुछ महीनों पहले तक कई यायावर और असहाय लोग ब्रिज के फुटपाथ पर ही गुजर-बसर करते थे। बाद में प्रशासन द्वारा भिक्षुकों को पकडऩे की मुहिम चलाई गई थी, जिसके चलते अब वहां इक्का-दुक्का लोग ही फुटपाथ पर बैठे मिलते हैं। पूर्व में वहां बैठने वाले कई लोगों को शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए लोग खाना और अन्य खाद्य पदार्थ दे जाते थे और खाने के बाद बची सामग्री उन लोगों द्वारा वहीं पटक दी जाती थी, जिसके कारण वहां चूहों की संख्या लगातार बढ़ती रही। अब हालात यह हैं कि रेलवे स्टेशन के अंतिम छोर पर ब्रिज की भुजा के आसपास तल क्षेत्र में ब्रिज के नीचे कई जगह चूहों ने बिल बना लिए हैं और वे लगातार ब्रिज के कई आंतरिक हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर रहे हैं । इसके साथ ही रीगल सिनेमा के सामने वाले और रानी सराय के सामने ब्रिज के तल के भी कई हिस्से जगह-जगह से खुदे हुए हैं।

    अब निगम 40 लाख की लागत से क्षतिग्रस्त हिस्सों को सुधारेगा
    नगर निगम के पुल प्रकोष्ठ विभाग द्वारा इस मामले में प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। पहले दौर में ब्रिज के बोगदों के आसपास के खुले हिस्सों को बंद किया जाएगा और साथ ही जहां चूहों की फौज की अधिकता है वहां के हिस्से सीमेंट से बंद किए जाएंगे।

    अब तो दिखने लगे हैं सरिए
    ब्रिज में 10 से ज्यादा ऐसे हिस्से हैं, जहां प्लास्टर उखड़ चुका है और सरिए बाहर निकले हुए हैं। कमजोर हिस्से में धीरे-धीरे निर्माण सामग्री भी टूटती रहती है। गांधी हॉल प्रांगण की तरफ ब्रिज की दरारों को आसानी से देखा जा सकता है। ब्रिज की मरम्मत को लेकर अभी तक कभी प्रयास नहीं किए गए। उसके बोगदे वाले हिस्से में भी दरारें आ चुकी हैं।

    61 साल पहले बना था ब्रिज
    इस ब्रिज का निर्माण वर्ष 1953 में किया गया था। 448 मीटर लंबे ब्रिज के निर्माण में तब 1 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इतना पुराना ब्रिज होने के बावजूद दूसरे ब्रिजों की अपेक्षा इसकी स्थिति थोड़ी ठीक है। रोज इस पर से लाखों वाहनों का आवागमन होता है, लेकिन रखरखाव में लापरवाही बरतने से ब्रिज के कुछ हिस्से धीरे-धीरे कमजोर हो रहे हैं।

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