नई दिल्ली: इंडियन ऑयल, बीपीसीएल जैसी सरकारी तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को सस्ता पेट्रोल-डीजल बेचने के लिए महंगी कीमत चुकानी पड़ी है. ग्लोबल इन्वेस्टर्स सर्विस मूडीज ने दावा किया है कि सरकारी तेल कंपनियों को पेट्रोल-डीजल के दाम कम रखने के लिए 7 अरब डॉलर (करीब 56 हजार करोड़ रुपये) का घाटा सहना पड़ा है.
मूडीज ने बताया कि सरकारी तेल कंपनियों ने नवंबर 2021 से अगस्त 2022 तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर बनाए रखा. हालांकि, बीच में मार्च-अप्रैल में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 10.20 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी, लेकिन सरकार के उत्पाद शुल्क घटाए जाने के बाद फिर कीमतें नीचे आ गईं थी. ऐसे में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को इस दौरान करीब 56 हजार करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा. लिहाजा इस साल तेल कंपनियों का मुनाफा कमजोर रहेगा, क्योंकि वे पहले इस घाटे की भरपाई करेंगी.
सरकार ने भी की थी घाटे की भरपाई
कोरोनाकाल में आर्थिक रूप से कमजोर तबके और उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को एलपीजी सिलेंडर दिलाने और उन्हें आर्थिक मदद देने पर भी तेल कंपनियों को खर्चा करना पड़ा था. इस घाटे की भरपाई के लिए हाल में ही केंद्र सरकार ने 22 हजार करोड़ रुपये का ग्रांट पास किया है. इस मदद से इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को राहत मिलेगी. हालांकि, यह सरकारी मदद पेट्रोल-डीजल से हुए घाटे की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं होगी.
इंडियन ऑयल को सबसे ज्यादा नुकसान
मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रखने से सबसे ज्यादा नुकसान इंडियन ऑयल को हुआ है. अगर मार्च, 2021 से अगस्त, 2022 तक की बिक्री को देखें तो इंडियन ऑयल को 3 अरब डॉलर का सीधा नुकसान हुआ, जबकि बीपीसीए और एचपीसीएल का घाटा 1.6 से 1.9 अरब डॉलर के बीच रहा है. मूडीज के अनुसार, सरकार की ओर से दी गई 22 हजार करोड़ की मदद से इन कंपनियों को अपना कैश फ्लो बनाए रखने में मदद मिलेगी, लेकिन चालू वित्तवर्ष में उनकी कमाई पर इसका असर जरूर पड़ेगा.
दुनियाभर में बढ़ रही कीमत
मूडीज का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमतों में बड़ा उछाल आया है और दुनियाभर के बाजारों पर महंगे पेट्रोल-डीजल का दबाव है. बावजूद इसके भारत में सरकारी तेल कंपनियों ने कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की. देश में बिकने वाले कुल पेट्रोलियम उत्पादों में 55 फीसदी हिस्सेदारी सिर्फ पेट्रोल-डीजल की रहती है. लिहाजा इनके दाम नहीं बढ़ाए जाने से कंपनियों को बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ा.
अगर कच्चे तेल की बात करें तो नवंबर, 2021 में क्रूड का औसत भाव 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था, जो इसके बाद अगस्त, 2022 तक 104 डॉलर प्रति बैरल के औसत भाव पर पहुंच गया था. ऐसे में रिफाइनरी कंपनियों पर महंगे क्रूड का दबाव दिखा. बावजूद इसके सरकारी कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर बनाए रखा और खुद बड़ा घाटा सहा.
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