भोपाल: फाइलों को चूहों ने कुतरा, ऑफिस से अहम दस्तावेज चोरी, रहस्मय तरीके से फाइलें गायब, आपने ऐसी कई हेडलाइन्स अखबारों में पढ़ी होंगी या टीवी पर सुनी होंगी. फिर भी यह खबरें कम नहीं होती हैं. वजह है फाइलों या पब्लिक रिकॉर्ड की देखरेख के लिए कोई कानून न होना. दस्तावेजों के गायब होने की लगातार हो रही घटनाओं के बाद राज्य सूचना आयोग ने मध्यप्रदेश सरकार को पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट बनवाने के लिए निर्देशित किया है.
यही नहीं, जब तक एक्ट बन कर लागू नहीं होता है, तब तक केंद्र सरकार के पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट के अनुरुप गाइडलाइंस तैयार करने के लिए सूचना आयोग ने कहा. मध्यप्रदेश सूचना आयोग के आयुक्त राहुल सिंह ने एक मामले में सुनवाई करते हुए यह व्यवस्था दी. उन्होंने कहा कि गाइडलाइंस में फाइलों का प्रबंधन और उसके गायब होने पर दोषी कर्मचारियों या अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही होना चाहिए. इसमें 5 साल तक का कारावास और ₹ 10000 तक का जुर्माना लगाया जाना चाहिए.
आरटीआई आवेदन ही गायब कर दिया
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के पास एक अपील प्रकरण आया था, जिसमें जाति प्रमाण पत्र की जानकारी मांगी थी. इस प्रकरण में ना केवल जाति प्रमाण पत्र दफ्तर से गायब है, बल्कि इसकी जानकारी मांगने के लिए जो आरटीआई आवेदन दायर हुआ था वह भी गायब हो चुका है. यही नहीं, पिछले तीन साल से इस प्रकरण में गुम हुए कागज के लिए किसी की जवाबदेही भी तय नहीं की गई है. इस प्रकरण में सूचना आयोग ने तीन दोषी SDM अधिकारियों पर 58000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है. इसी केस की सुनवाई के दौरान सिंह ने पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट बनाने के लिए निर्देश दिए.
किसी की जमीन के रिकॉर्ड गायब तो किसी की नियुक्ति के
आयुक्त राहुल सिंह अपने आदेश में कहा कि राज्य सूचना आयोग में दस्तावेजों के गायब होने के कई प्रकरण सामने आते रहे हैं. इन गायब कागजों के चलते कई मामलों में तो लोगों का जीवन और कैरियर तक दांव पर लग जाते हैं. किसी के जमीन के कागज तो किसी की नियुक्ति में गड़बड़ी की नस्ती गायब है. जांच संबंधित दस्तावेज हो या भ्रष्टाचार व घोटाले से संबंधित प्रकरण, किसी व्यक्ति या संस्था को प्रभावित करने वाला कोई महत्वपूर्ण आदेश हो या कहीं किसी शासकीय अधिकारी के विरूद्ध की गई कार्रवाई की कागज गायब है.
एफआईआर के लिए कहा तो कागज अवतरित हो गए
सिंह ने आदेश में लिखा कि कई मामलों में जब सूचना आयोग संबंधित लोक प्राधिकारी को पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहता है तो यह गायब कागज वापस अवतरित हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ आम नागरिक गुम कागजों की वजह से परेशान होते हैं, बल्कि राजकीय अधिकारियों कर्मचारी भी इसका शिकार हो जाते हैं. शासकीय कर्मचारी अधिकारियों के विभागीय रिकॉर्ड गुम हो जाने से उनके सेवाकाल एवं सेवानिवृत्ति के समय अधिकारी कर्मचारियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
दस्तावेजों के गायब और चोरी होने पर पुलिस में दर्ज हो रिपोर्ट
सिंह ने कहा कि गायब या गुम कागजों को लेकर संबंधित दोषी अधिकारी कर्मचारी की जवाबदेही तय की जानी चाहिए. साथ ही उनके खिलाफ विभागीय स्तर पर समयबद्ध तरीके से कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए. अगर जानबूझकर किसी के द्वारा कागज गायब करवाया गया है तो पुलिस में उक्त अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध FIR दर्ज कर कार्रवाई होनी चाहिए.
66 सालो में पहली बार गायब होते दस्तावेजों के लिए चिंता
सूचना आयुक्त ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य के गठन से लेकर अब 66 साल बीत जाने के बाद पहली बार पता चल रहा है कि मध्यप्रदेश में दस्तावेजों के रखरखाव, प्रबंधन के लिए पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट ही नहीं है. जाहिर है कि राज्य के अधिकारियों ने गायब होते दस्तावेजों को कभी गंभीरता से नहीं लिया.
केंद्र एवं अन्य राज्यों में होती है फाइल गायब होने पर होती है यह कार्रवाई
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश में सरकारी दफ्तरों में रिकॉर्ड गुम या चोरी होने, गलत तरीके से नष्ट करने पर दोषी अधिकारी या कर्मचारी पर कार्रवाई के लिए पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट ही नहीं है. कागजों के गायब होने पर अधिकारियों के उदासीन रवैए के पीछे एक बड़ी वजह यह एक्ट न होना है. जबकि केंद्र एवं अन्य राज्यों में यह उपलब्ध है. केंद्र के पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट के तहत रिकॉर्ड गायब होने होने पर दोषी अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ 5 साल तक के कारावास और 10000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है.
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