– योगेश कुमार सोनी
कोई समझे या न समझे पर गुजरे शुक्रवार को भड़के दंगों की कहानी पहले ही लिखी जा चुकी थी। जुमे की नमाज का तो बहाना था। असल में इसका मकसद देश को जलाना था। ऊपरी तौर पर तो यही लगा कि पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के विरोध और नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल की गिरफ्तारी को लेकर नमाज के बाद देशभर में मुस्लिम संगठन सड़क पर उतरें हैं। मगर इसके पीछे की कहानी कुछ और ही है। इसे गंभीरता से समझने पर उपद्रवियों का खेल स्पष्ट रूप से समझ में आ रहा है। सभी दंगाइयों को एक समय और एक ही दिन कमांड मिली। यह सब किसके इशारे पर हुआ? कैसे हुआ? क्यों हुआ? अभी इसकी तस्वीर सामने आनी बाकी है। लेकिन यह सब कुछ शुक्रवार को नमाज अदा करने के बाद हुआ। एक साथ कई राज्यों में हुआ। इससे बहुत कुछ समझ में आता है। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में बवाल हुआ। राजस्थान के भी कई जिलों में भी प्रदर्शन किया गया। दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर भड़काऊ नारेबाजी और प्रदर्शन किया गया।
पुलिस के अनुसार सबसे ज्यादा हिंसक प्रदर्शन झारखंड की राजधानी रांची में हुआ। कोलकाता को भी उपद्रवियों ने प्रभावित किया । मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में भी दंगाइयों ने विरोध प्रदर्शन किया। प्रयागराज में दंगाइयों ने हिंसा की। कुछ लोगों की मौत हो गई। तमाम पुलिस अफसर जख्मी हुए। हिंदुओं के पूजास्थलों को निशाना बनाया गया। राह चलते लोगों पर नाम पूछकर हमला किया गया। बिहार के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन की गाड़ी को आग के हवाले कर दिया गया। दंगाइयों ने कोलकाता से सटे हावड़ा में भाजपा के दो कार्यालयों पर पथराव किया और वहां उस समय जितने भी लोग मौजूद थे उनको पीटा । डोमजूर थाने को भी निशाना बनाया गया। इससे साबित होता है कि देश में दंगाइयों को ऑपरेट करने वाला नेटवर्क बहुत स्ट्रांग है। चूंकि पूरे देश के दंगाई मुसलमानों ने एक साथ जिस तरह हमला किया वह बेहद आश्चर्यचकित करने वाला है। यहां देश के शासन-प्रशासन को इस पूरे प्रकरण से यह तो सीख मिल गई होगी कि यदि ऐसे लोगों को नियंत्रित करने के लिए शक्ति नही बढ़ाई गई तो निश्चित तौर पर देश का भविष्य संकट में हैं।
अब दंगाइयों के हौसले बुलंद हैं। उनमें भय नाम की चीज नहीं है। जरा सी बात पर देश को जला देते हैं। और जिस तरह हमला करते हैं उससे एक बात तो स्पष्ट है कि इन लोगों को निश्चित तौर पर ट्रेनिंग दी जाती है। एक आम इंसान आसानी से पत्थर व हथियार नहीं उठा सकता और जिस तरह शुक्रवार को दंगों के वीडियो और फोटो सामने आए उससे स्पष्ट है कि यह ट्रेनिंग के बिना संभव नहीं। इससे यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि यह दंगे सुनियोजित थे। देश में नागरिकों के रूप में रह रहे बहुत सारे ‘आतंकी’ पनप रहे हैं। इससे देश की स्थिति बेहद चिंताजनक होती जा रही है। यह संकेत अच्छा नहीं है क्योंकि इसमें देश के तमाम मुसलमान युवाओं को धर्म के नाम पर भड़काया जा रहा है। हम इस तरह की बातें कश्मीर के लिए करा करते थे लेकिन अब यह खेल पूरे देश में होने लगा। अब तो पहले ज्यादा लव जिहाद व आतंकी घटनाएं सामने आ रही हैं। देश में मुसलमानों को जितनी स्वतंत्रता से जीने की आजादी है, उतनी कहीं नही हैं। दरअसल हमारे देश में राजनीति किसी भी चीज पर एक्सपेरीमेंट कर सकती है। यहां छोटी सी घटना पर मुसलमानों के आका पूरी कौम को इस तरह भड़काते हैं मानो उनके साथ बड़ा अत्याचार किया जा रहा है। वह दूसरे देशों की स्थिति नही देखते। यदि पड़ोसी देश की कुछ घटनाओं को लेकर चर्चा करें तो चीन उइगर मुस्लिमों का पिछले कई वर्षों से सुनियोजित तरीके से शोषण करता रहा है। चीन पर उइगर मुस्लिमों के नरसंहार से लेकर जबरन मजदूरी कराने, जबरन नसबंदी कराने और महिलाओं से दुष्कर्म के आरोप हैं।
मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि चीन ने नजरबंदी कैंपों में बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के दस लाख से भी ज्यादा उइगर मुस्लिमों को बंदी बना रखा है। चीन सरकार के आंकड़ों के मुताबिक उइगर मुस्लिमों के ज्यादातर इलाकों में 2015-18 के दौरान जन्म दर साठ प्रतिशत से ज्यादा गिर गई। 2019 में शिनजियांग में जन्म दर में चौबीस प्रतिशत की गिरावट आई। चीन पर 2014 से लगभग सात सौ इमाम और अन्य मुस्लिम धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार करने का आरोप है। इनमें से 18 की हिरासत में मौत हो चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन न केवल शिनजियांग बल्कि चीन के बाहर भी उइगर मुस्लिमों पर नजर रखने के लिए लगातार उनकी ट्रैकिंग करता है। इतना ही नहीं चीन उइगर मुस्लिमों को दाढ़ी कटाने के लिए भी बाध्य करता रहा है। साथ ही चीन उइगर प्रवासियों से उनकी निजी जानकारी सौंपने को मजबूर करता रहा है और उनके परिवार को धमकियां देता रहा है। चूंकि चीन किसकी सुनता नहीं तो उस किसी का जोर नही चलता लेकिन भारत में एक बयान को बहाना बनाकर पूरे देश को झुलसाया जाता है। यदि सरकार ने ऐसी घटनाओं को लेकर कोई ठोस नीति नही बनाई तो आने वाले समय में तस्वीर और भी भयावह हो सकती है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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