ओडिशा | चोरी की लकड़ी बरामद करने के लिए ओडिशा में नयागढ़ के ज़िला वन अधिकारी (डीएफ़ओ) ने देर रात को उस तालाब में छलांग लगा दी, जहां चोरों ने उसे छुपा रखा था.
यह घटना सोमवार की शाम की है. नयागढ़ के डीएफ़ओ धमधेरे धनराज हनुमंत भुवनेश्वर में एक मीटिंग में हिस्सा लेने के बाद नयागढ़ वापस जा रहे थे जब एक मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि चोरों का गढ़ धसमा गाँव में कुछ चोरी की लकड़ी ले जाया जा रहा है.
हनुमंत ने तत्काल अपने फ़ॉरेस्ट रेंजर को इस बारे में इत्तला दी और चोरों का पीछा करने का आदेश दिया. साथ ही उन्होंने वन विभाग में तैनात कुछ पुलिस कर्मियों को तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना होने के आदेश दिए और अपने कर्मचारियों को लकड़ी घसीटे जाने के निशान का पीछा करते हुए उस स्थान पर पहुँचने को कहा, जहां चोरी की लकड़ी छुपाई गई थी.
हनुमंत ने बीबीसी से बताया, “पुलिस भेजने की सूचना मैंने रेंजर को भी दी, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया कि मैं भी साथ आ रहा हूँ. जब तक मैं वहाँ पहुँचा तब तक शाम के आठ बज चुके थे. रेंजर और फ़ॉरेस्ट गार्ड ने बताया कि उन्हें गाँव के अंदर लकड़ी घसीटे जाने के कोई निशान नहीं मिले. तब मैंने उनके साथ दोबारा खोज शुरू की और आखिरकार वो जगह ढूंढ ही ली जहां चोरी की लकड़ी कुछ देर के लिए रखी गई थी.”
“शायद चोरों को हमारे आने की सूचना मिल गई थी और वे लकड़ी वहाँ से कहीं और ले गए थे. लेकिन टार्च की रोशनी में लकड़ी के बड़े-बड़े गट्ठर घसीटे जाने के निशान स्पष्ट देखे जा सकते थे. मैंने अपने साथियों के साथ निशान का पीछा किया जो कुछ दूर तक जाकर एक तालाब के पास पहुँचकर खत्म हो गए थे.”
गाँव वालों का विरोध, माफ़िया का डर…
”मैंने अपने स्टाफ़ को तालाब के अंदर जाकर मुआयना करने का आदेश दिया लेकिन उन्होंने आनाकानी की. तब तक गाँव के 60-70 लोग वहाँ जमा हो चुके थे और हमारे तालाब के अंदर जाने का विरोध कर रहे थे.”
“स्थानीय सरपंच भी वहाँ उपस्थित थे. मैंने सरपंच को समझाया कि वे जन प्रतिनिधि हैं और उन्हें ऐसे ग़ैरक़ानूनी काम का समर्थन नहीं करना चाहिए. अपने साथियों को हिम्मत देने के लिए मैं खुद तालाब के अंदर घुसा. मेरी देखादखी बाकी लोग भी तालाब में कूदे. रात के 10 बजे से लेकर दो बजे तक चले इस अभियान में हमने लगभग 200 क्यूबिक फुट लकड़ी के लॉग बरामद किए जिसकी कीमत करीब चार लाख रुपये होगी.”
गाँव के लोगों के विरोध के और वन विभाग के कर्मचारियों की आनाकानी के बावजूद ख़ुद तालाब में कूदते समय क्या उन्हें डर नहीं लगा?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “डर तो था लेकिन वहाँ से खाली हाथ वापस आना केवल मेरे लिए ही नहीं वल्कि पूरे विभाग के लिए एक शर्मनाक हार होती. मेरे साथियों का डर जायज था क्योंकि कुछ साल पहले इसी गाँव में लकड़ी माफ़िया ने एक फोरेस्टर की हत्या कर दी थी और वन विभाग के पाँच अन्य कर्मचारियों को घायल कर दिया था.”
“इस घटना के बाद वन विभाग के कर्मचारी वहाँ जाने से कतराते हैं. इसलिए उनका मनोबल बढ़ाने के लिए यह कदम उठाना ज़रूरी. साथ ही मेरे पास यह आश्वासन था कि मेरे साथ पुलिस और विभाग के अन्य कर्मचारी थे. मैंने गाँव में पहुँचने से पहले ही कलेक्टर, एसपी, स्थानीय विधायक और मीडिया को इस बारे में सूचना दे दी थी.”
हर तरफ़ तारीफ़ें
ओडिशा के प्रमुख वन संरक्षण अधिकारी संदीप त्रिपाठी ने डीएफ़ओ के इस साहसिक कदम की तारीफ़ की है.
उन्होंने कहा, “डीएफ़ओ ने नेतृत्व की एक ऐसी मिसाल प्रस्तुत की है जो विभाग के अन्य कर्मचारियों को प्रेरित करेगी.”
नयागढ़ वन संरक्षण अभियान के जाने-माने कार्यकर्ता उदयनाथ बेहेरा ने भी हनुमंत के इस कदम की प्रशंसा की है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “उस इलाके में टिम्बर माफ़िया का डर इतना ज्यादा है कि वन विभाग के कर्मचारी वहाँ जाने से कतराते हैं. इस घटना के बाद उनका डर ज़रूर कम हुआ होगा. साथ ही लकड़ी माफ़िया भी समझ गए होंगे कि उनकी मनमानी हमेशा नहीं चलेगी.”
ये विडंबना ही है कि नयागढ़ ज़िला एक तरफ जहां वन संरक्षण के लिए पूरे देश में जाना जाता है वहीं ज़िले के कई इलाकों में लकड़ी माफिया का बोलबाला है. हालाँकि उदयनाथ बेहेरा की माने तो हनुमंत के कार्यकाल में लकड़ी की चोरी काफ़ी हद तक कम हुई है.
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